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बड़ी मुश्किल है इस राह में…

Last Updated- December 10, 2022 | 12:21 AM IST

वैश्विक मंदी का प्रभाव भारतीय शेयर बाजार पर भी पड़ा है। इसका असर कितना व्यापक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2008 में निवेशकों को करीब 40 लाख करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा है।
गिरावट की सबसे ज्यादा मार पूंजीगत वस्तु, अचल संपत्ति, धातु, वाहन और तेल एवं गैस सेक्टर पर पड़ी है। बंबई स्टॉक एक्सचेंज की बात करें, तो इन सूचकांकों की बीएसई में सूचीबद्ध कुल कंपनियों की बाजार पूंजी का करीब एक-तिहाई हिस्सा है, जबकि इनके शेयरों में करीब 55 से 82 फीसदी की गिरावट आई है।
वर्ष 2009 शेयर बाजार के लिए उम्मीदों भरा हो सकता है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए ऐसा कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि नए साल में भी इन खास सूचकांकों में गिरावट का रुख देखा जा रहा है।
बहुत सी कंपनियों ने अपने विकास के लिए विस्तार की ढेरों योजनाएं बनाई हैं, लेकिन मांग में आई तेज गिरावट औरनकदी की किल्लत ने कंपनियों को कीमतों में कटौती करने को जहां बाध्य कर दिया है, वहीं कई कंपनियों को अपनी परिसंपत्तियां तक बेचनी पड़ रही है, साथ ही उन्हें अपने कर्ज के ढांचे को भी पुनर्गठित करना पड़ रहा है।
बिक्री में आ रही गिरावट और कंपनियों के घटते मुनाफे को देखते हुए स्मार्ट इन्वेस्टर इस बात की पड़ताल कर रहे हैं कि अखिर इन कंपनियों की संकट की वजह क्या है। देश में इस साल लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में विश्लेषकों की नजरें सरकार पर टिकी हैं कि वह बाजार में रोजगार पैदा करने और मांग बढ़ाने के लिए कुछ मौद्रिक कदम उठा सकती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर ऐसा हुआ, तो बाजार में एक बार फिर तेजी आने के आसार हैं। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि बाजार में निवेशकों का भरोसा कायम करने में कम से कम दो तिमाही और लग सकते हैं।
सारणी में बताए गए कंपनियों के शेयरों की कीमत में तेज गिरावट आई है, लेकिन ब्याज दरों में कमी और कच्चे माल की लागत घटने से इन क्षेत्रों में विकास की संभावना है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बाजार में मांग बढ़े, क्योंकि मौजूदा मांग की स्थिति को देखते हुए कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर रहने की उम्मीद कम ही है।
वाहन क्षेत्र

वाहन क्षेत्र की बात करें, तो ऊंची ब्याज दरें और आर्थिक मंदी की वजह से इस क्षेत्र की विकास दर प्रभावित हुई है। लेकिन पिछले पांच महीनों के दौरान ब्याज दरों में कटौती की गई है, वहीं बैंक भी ऋण देने में उदारता बरते रहे हैं, ऐसे में उम्मीद है कि वाहन क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार आ सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि जनवरी 2009 में वाहन उद्योग की बिक्री के आंकड़ों पर नजर डालें, तो यह बात स्पष्ट है कि वाहनों की मांग में इजाफा हो रहा है, जो इस क्षेत्र के लिए सकारात्मक संकेत है। हालांकि मंदी की वजह से वाहन क्षेत्र की दोपहिया वाहन निर्माताओं पर खास असर नहीं पड़ा है।
लेकिन कार निर्माता कंपनियों की बात करें, तो इसकी बिक्री में जबरदस्त गिरावट आई है। जिसके चलते इन कंपनियों को भारी पैमाने पर छंटनी भी करनी पड़ी है। लेकिन ब्याज दरों में कटौती और कंपनियों की ओर से नए-नए मॉडलों को लॉन्च करने से इस क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार की उम्मीद है।
व्यावसायिक वाहन खंड की बिक्री पर भी इस दौरान असर पड़ा है और पिछले 10 माह में इस सेंगमेंट की बिक्री करीब 15 फीसदी घटी है।
टाटा मोटर्स : पिछले एक साल से टाटा मोटर्स की स्थिति अच्छी नजर नहीं आ रही है। नकदी की किल्लत के चलते कंपनी को जगुआर-लैंडरोवर के अधिग्रहण सौदों के लिए 3 अरब डॉलर की राशि जुटाना भारी पड़ रहा है।
टाटा की बहुप्रतीक्षित कार नैनो को लॉन्चिंग भी 6 माह पीछे हो गई है। वहीं मंदी की वजह से व्यावसायिक वाहनों की बिक्री भी प्रभावित हुई है। हालांकि नैनो की लॉन्चिंग और राहत पैकेज से टाटा मोटर्स की स्थिति में सुधार आ सकती है। जगुआर-लैंडरोवर के लिए जहां टाटा को भारी कर्ज लेना पड़ा है, वहीं दुनियाभर में इसके मॉडलों की बिक्री घटी है, जो कंपनी के लिए चिंता का विषय है।
मारुति सुजुकी : ए 3 सेंगमेंट (स्विफ्ट डिजायर और एसएक्स4) और मारुति के चर्चित मॉडल, यानी ए 2 सेगमेंट (अल्टो, वैगन आर, जेन, स्विफ्ट और ए-स्टार) की बिक्री में जनवरी माह में आई तेजी से कंपनी की सेहत पर जरूर असर पड़ेगा।
एसएक्स 4, स्विफ्ट डिजायर और ए स्टार की कीमतों में 5000 से 10,000 रुपये का इजाफा करने से भी कंपनी को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। बावजूद इसके आने वाली तिमाहियों में कंपनी के नतीजों पर दबाव देखा जा सकता है।
हीरो होंडा : वाहन क्षेत्रों में आई गिरावट के बावजूद हीरो होंडा का बाजार में हिस्सा और राजस्व में इजाफा हुआ है। ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ने और लोन पर कम निर्भरता की वजह से कंपनी की बिक्री पर खास असर नहीं पड़ा है। कंपनी का परिचालन मुनाफा और आय में भी इस दौरान इजाफा हुआ है।
पूंजीगत वस्तु

मांग में इजाफा और आसानी से कर्ज मिलने की वजह से पिछले पांच सालों से पूंजीगत वस्तु सूचकांक का प्रदर्शन बेहतर रहा है। इसकी वजह से इस क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों का भाव भी तेजी से चढ़ा, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है।
बढ़ती लागत, ऊंची ब्याज दर और मांग में आई गिरावट की वजह से इस क्षेत्र के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। मंदी की वजह से इस क्षेत्र की कंपनियों को नए ऑर्डर मिलने में परेशानी आ रही है, वहीं कई परियोजनाओं को या तो रद्द कर दिया गया है या फिर उसकी रफ्तार धीमी करनी पड़ी है।
ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश करना जोखिम का सौदा हो सकता है। लेकिन ब्याज दरों में कटौती और जिंसों की कीमतों में नरमी से इस क्षेत्र में विकास की संभावनाएं भी नजर आ रही है। सरकारी राहत पैकेज से भी इस क्षेत्र को बल मिला है।
लेकिन अगले तीन-चार तिमाहियों तक इस क्षेत्र पर दबाव बना रह सकता है। अगर घरेलू मांग के साथ-साथ विदेशी मांग में भी इजाफा होता है, तो इस क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार आने के आसार हैं।
एबीबी : औद्योगिक मांग मेंकी वजह से एबीबी के उत्पादन पर असर पड़ा है, जिससे कंपनी के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2008 की तीसरी तिमाही में कंपनी के ऑर्डर में 13.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, वहीं इस क्षेत्र के राजस्व में 10.3 फीसदी का इजाफा हुआ।
इस दौरान कंपनी के शुद्ध मुनाफे में 9.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। कुल मिलाकर कहा जाए, तो एबीबी की आय पर असर बहुत ज्यादा नहीं पड़ा है और यह कम समय के लिए ही है।
बीएचईएल : सरकारी कंपनियों के लगभग 80 फीसदी ऑर्डर कंपनी को मिलने की वजह से भेल का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा है। ऐसे में निवेशकों को भी इस क्षेत्र में बेहतर रिटर्न मिला है। ऊर्जा उत्पादन में बढ़ते निवेश की वजह से भेल के ऑर्डर में भी इजाफा हुआ है और तीसरी तिमाही में यह 38 फीसदी की दर से विकास हुआ। कच्चे माल की लागत में गिरावट की वजह से भेल अगले दो साल में 25 से 30 फीसदी की दर से विकास कर सकता है।
एलऐंडटी : लार्सन ऐंड टुब्रो को करीब 40 से 45 फीसदी ऑर्डर औद्योगिक क्षेत्रों से मिलता है। लेकिन वैश्विक स्तर पर मांग घटने की वजह से एलऐंडटी पर भी दबाव बना हुआ है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनी के ऑर्डर बुक में 12.3 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि वित्त वर्ष के नौ माह में यह वृद्धि दर 30 फीसदी है। बावजूद इसके कंपनी के पास करीब 68,800 करोड़ रुपये का ऑर्डर है।
धातु सूचकांक

चीन समेत दुनियाभर में मांग में आई गिरावट की वजह से प्रमुख धातुओं की कीमतों पर भी असर पड़ा है। स्टॉक की बात करें, तो मांग घटने की वजह से एल्युमिनियम में 11 फीसदी, तांबा 68 फीसदी और जिंक में 10 फीसदी का इजाफा हुआ है।
कच्चे इस्पात की बात करें, तो इसके स्टॉक में अकेल 24 फीसदी का इजाफा हुआ है। अधिक स्टॉक और मांग कम होने से पिछले कुछ महीनों के दौरान धातुओं की कीमतों में करीब 40-60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। वहीं कोयला और लौह अयस्क जैसे प्रमुख कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से धातु उत्पादक कंपनियों के मुनाफे पर भी असर पड़ा है।
वित्तीय संकट और ऊंची ब्याज दरों के कारण इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए फंड जुटाना और भी कठन हो गया। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही की बात करें, तो लौह धातु उत्पादक कंपनियों की आय में करीब 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि उनका मुनाफा करीब 50 फीसदी घटा है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस क्षेत्र पर अगले एक साल तक दबाव देखा जा सकता है। दूसरी ओर, कंपनियां अपना उत्पादन घटा रही हैं, वहीं मांग बढ़ाने के लिए कीमतों में कटौती जैसे उपाय भी अपना रही हैं। कच्चे माल की कीमतों में हाल के दिनों में आई गिरावट और ब्याज दरों में कटौती से इस क्षेत्र को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। जानकारों का कहना है कि निवेशकों को इन क्षेत्रों में पैसा लगाने के लिए एक साल इंतजार करना चाहिए।
जेएसडब्ल्यू स्टील : मांग में गिरावट की वजह से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जेएसडब्ल्यू स्टील की आय 15 फीसदी बढ़ी, लेकिन कंपनी को करीब 190 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा है। इसकी वजह से कंपनी ने अपने उत्पादन में करीब 20 फीसदी की कटौती करने की घोषणा की है, वहीं विस्तार योजनाओं को भी टालने का निर्णय किया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोयले और अन्य कच्चे माल की कीमतों में कमी से कंपनी को कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन आने वाले समय में कंपनी के राजस्व पर दबाव बना रहेगा। जानकारों का कहना है कि ऐसी स्थिति में निवेशकों को बेहतर रिटर्न के लिए इंतजार करना चाहिए।
टाटा स्टील : अन्य कंपनियों की तरह ही टाटा स्टील को भी मांग में कमी से जूझना पड़ रहा है। इसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनी के मार्जिन में करीब एक-चौथाई की गिरावट दर्ज की गई।
हालांकि टाटा स्टील दुनियाभर में सबसे अधिक मुनाफा देने वाली स्टील कंपनी रही है। इसकी वजह कंपनी के पास पर्याप्त मात्रा में लौह-अयस्क और कोयले के भंडार होना है। मांग में गिरावट को देखते हुए विश्लेषकों का कहना है कि कंपनी की आय में अगले दो साल के दौरान 40 से 60 फीसदी की गिरावट की आशंका है।
कंपनी की इकाई कोरस भी मांग में कमी से जूझ रही है, जिससे टाटा स्टील पर दबाव बना हुआ है। लागत घटाने के लिए कोरस ने अपने उत्पादन में 30 फीसदी की कटौती की है। लेकिन मांग बढ़ने से कंपनी की स्थिति में सुधार होने के पूरे आसार हैं।
ऐसे में निवेशकों अगर बड़ी गिरावट के समय कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो एक से दो साल में उन्हें अच्छा मुनाफा हो सकता है।
स्टरलाइट इंडस्ट्रीज : मांग में कमी और धातुओं की कीमतो में कटौती की वजह से स्टरलाइट के शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि  लंबे समय के निवेश के लिहाज से स्टरलाइट बेहतर विकल्प है।
तेल और गैस

बीएसई में तेल और गैस सूचकांक की कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहा है। निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी आरआईएल के मुनाफे में करीब 57 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि कच्च तेल की कीमतों में आई तेज गिरावट से तेल उत्पादक कंपनियों को कुछ राहत मिली है।
तेल की कीमतों में गिरावट का मतलब हैसब्सिडी खर्च में कमी। वहीं कुछ तेल मार्केटिंग कंपनियों को डीजल और पेट्रोल की बिक्री से मुनाफा भी हो रहा है। इससे पहले उन्हें काफी नुकसान हो रहा था। लेकिन केरोसिन और रसोई गैस पर कंपनियों को अभी भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। चुनावी साल होने की वजह से सरकार की ओर से पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों में कटौती करने से कंपनियों का मुनाफा भी घट गया है।
आरआईएल : चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनी के शुद्ध मुनाफे में करीब 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। गैस उत्पादन में देरी और बाजार में नरमी की वजह से कंपनी के शेयरों में तेज गिरावट दर्ज की गई। हालांकि मार्च 2009 में कंपनी की ओर से केजी बेसिन से गैस उत्पादन शुरू करने की उम्मीद है, इससे अगले वित्त वर्ष में कंपनी की स्थिति में सुधार आ सकता है।
ओएनजीसी : कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से कंपनी को नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं डॉलर के मजबूत होने से कंपनी को फायदा हुआ है। तेल विपणन कंपनियों को कच्चे तेल पर छूट देने से भी कंपनी को नुकसान उठाना पड़ता है। हालांकि विदेशों में कंपनी की शाखा ओवीएल की ओर से नए तेल ब्लॉक के अधिग्रहण से तेल उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकती है।
आईओसी : देश में कुल पेट्रो उत्पादों की बिक्री का 56 फीसदी आईओसी करती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनी को अच्छा मुनाफा हुआ है।
कंपनी को चिंता ऊंची ब्याज दरों को लेकर है, क्योंकि उसे महंगी दरों पर कर्ज लेना पड़ रहा है। लेकिन तेल की कीमतों में गिरावट की वजह से कंपनी की जहां कार्यशील पूंजी में कमी आएगी। ब्याज दरों में कटौती से कंपनी को लाभ की उम्मीद है।
अचल संपत्ति

वर्ष 2008 रियल्टी सेक्टर के लिए अच्छा नहीं रहा। जानकारों का कहना है कि अगले एक साल तक इस क्षेत्र में विकास की कम ही संभावनाएं हैं। नकदी की किल्लत और मांग में गिरावट की से रियल्टी सेक्टर पर दबाव बना हुआ है।
रिहाइशी, व्यावसायिक और रिटेल सभी सेगमेंट में मांग घटी है। नकदी की किल्लत के चलते कंपनियों को परियोजनाएं तक टालनी पड़ रही है। वहीं डेवलपरों को बैंकों और अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाना मुश्किल पड़ रहा है। एडल्वाइस कैपिटल के विश्लेषक आशीष अग्रवाल का कहना है कि मकानों की कीमतों में कटौती और परियोजना की लागत घटाने से डेवलपरों को कुछ राहत मिल सकती है।
वहीं कुछ कंपनियां किफायती मकानों के निर्माण में जुटी हैं, जिससे मांग में इजाफा होने की उम्मीद है। जानकारों का कहना है कि दो साल बाद अचछा रिर्टन मिल सकता है।
डीएलएफ : पैसे की किल्लत के चलते कंपनी को विस्तार योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। मांग में कमी की वजह से कंपनी की आय में भी करीब 62 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि साल-दर-साल मुनाफा 69 फीसदी घटा है।
कंपनी पर करीब 2,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जिसके भुगतान के लिए डीएलएफ को अपनी परिसंपत्तियां बेचनी पड़ सकती है या इक्विटी के जरिए पैसा जुटा होगा।
यूनिटेक : कंपनी करीब 9000 करोड़ रुपये के कर्ज के लिए परिसंपत्तियों को बेचने और इक्विटी के जरिए विदेशी निवेशक से पैसे की व्यवस्था करने में जुटी है। पैसे की किल्लत के चलते कंपनी को अपनी कई परियोजनाओं को टालना पड़ा है।
कंपनी की बिक्री में करीब 57 फीसदी की गिरावट आई है। इससे चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनी के  मुनाफे में करीब 74 फीसदी की गिरावट आई है। दूरसंचार कंपनी टेलीनोर से पैसा मिलने से कंपनी की सेहत में सुधार आ सकता है।

First Published - February 8, 2009 | 9:18 PM IST

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