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नकदी है तो बॉन्ड में निवेश करें

Last Updated- December 08, 2022 | 10:08 AM IST

निवेश सलाहकार कहते हैं कि अगर आपके पास नकदी है तो बेहतर होगा कि आप उसे इनकम फंड में निवेश कर 10 प्रतिशत का प्रतिफल अर्जित करें।


उनका मानना है कि ब्याज दरें घटने से निवेशकों को बॉन्ड पर मिलने वाले प्रतिफल में बढ़ोतरी होगी। इसलिए अगर निवेशक 6 महीने से लेकर 1 साल तक की समयावधि के लिए अपने पैसे बॉन्ड में लगाएं तो सौदा फायदे का रहेगा। ब्याज और इनकम फंड से मिलने वाले प्रतिफल में उल्टा रिश्ता है।

इसलिए अगर एक में गिरावट होती है तो दूसरे में बढ़ोतरी। इनकम या बॉन्ड फंड, प्रतिभूतियों, बॉन्ड्स, सरकारी प्रतिभूतियों और ऐसे ही ऋण उपकरणों में निवेश करते हैं। जोखिम उठाने से परहेज करने वाले लोग ऐसे फंडों में निवेश करते हैं।

सेंट्रम एफसीएच वेल्थ मैनेजमेंट के प्रमुख श्रीराम वेंकटसुब्रमण्यन कहते हैं, ‘हमारे अधिकांश ग्राहक नकदी लेकर बैठे हुए हैं। ये पैसे या तो अक्टूबर में फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान से निकाले गए हैं या फिर शेयर बाजार से घाटा उठाने के बाद इनकी निकासी की गई है।’

निवेश विशेषज्ञ अपने ग्राहकों को सलाह दे रहे हैं कि ब्याज दरों में होने वाली कटौती से अधिकतम लाभ उठाने के लिए वे मध्यम और दीर्घावधि के इनकम फंडों में निवेश करें।

एक म्युचुअल फंड विशेषज्ञ आशुतोष वाखड़े ने कहा, ‘पोर्टफोलियो में शामिल पत्र की परिपक्वता अवधि जितनी अधिक होगी, प्रतिफल उतना ही बढ़िया होगा। वैसे फंड का चयन करें जिसके पोर्टफोलियो की औसत परिपक्वता अवधि कम से कम 7 वर्षों की हो।

योजनाओं का चयन कैसे करें

पोर्टफोलियो की औसत परिपक्वता अवधि 7 साल से अधिक होनी चाहिए

फंड का कोष कम से कम 100 करोड़ रुपये होना चाहिए ताकि बेहतर विशाखण हो सके

नये लॉन्च हुए फंडों से परहेज करना चाहिए

पोर्टफोलियो में सरकारी कंपनियों के बॉन्ड को तरजीह दी गई होनी चाहिए


आदर्श तौर पर देखा जाए तो मध्यावधि वाले बॉन्ड फंड के पोर्टफोलियो की औसत परिपक्वता अवधि 3 से 5 वर्षों की होती है। दीर्घावधि वाले बॉन्ड फंडों के लिए यह अवध 5 सालों से अधिक की होती है।

वास्तव में इन दोनों योजनाओं की औसत परिपक्वता अवधि ब्याज दर की परिस्थितियों के अनुसार घटती या बढ़ती है। अधिकांश सलाहकारों का विश्वास है कि ब्याज दरों में आगे और कमी आएगी।

सेंट्रम एफसीएच का मानना है कि 10 साल वाले सरकारी बॉन्ड से मिलने वाला लाभ घट कर 5 से 5.5 प्रतिशत तक आ जाएगा। फिलहाल इन बॉन्ड पर 5.98 प्रतिशत का लाभ मिल रहा है।

वास्तव में, म्युचुअल फंडों की दीर्घावधि बॉन्ड योजनाओं में निवेश का प्रवाह काफी बढ़ा है। एसबीआई म्युचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम के प्रमुख पारिजात अग्रवाल कहते हैं, ‘कई योजनाओं की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों में पिछले महीने 50 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।

आम तौर पर इन योजनाओं में औसत कोष 100 रुपये का होता है।’ सितंबर और अक्टूबर में इनकम फंडों से क्रमश: 28,964 रुपये और 33,169 करोड़ रुपये विशुध्द रुप से निकाले गए। नवंबर में, इस श्रेणी के फंडों में विशुध्द तौर पर 18,897 करोड रुपये का निवेश किया गया।

बॉन्ड फंड प्राय: निजी कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और बैंकों के पत्रों में निवेश करते हैं। ये जोखिम भरे होते हैं क्योंकि इनमें डीफॉल्ट की संभावना होती है। रुढ़िवादी निवेश, जो जोखिम से परहेज करने वाले होते हैं, गिल्ट फंडों में निवेश कर सकते हैं।

ये फंड केवल सरकारी प्रतिभूतियों में ही निवेश करते हैं। लेकिन निवेश सलाहकार कहते हैं कि इन फंडों में निवेश करने से पहले सब चीजें जान समझ लेना जरूरी है। वे कहते हैं कि पहले फंड के पोर्टफोलियो को देख लेना चाहिए।

प्रमाणित वित्तीय योजनाकार विश्राम मोदक कहते हैं, ‘वैसे पोर्टफोलियो जिनमें सरकारी कंपनियों जैसे ग्रामीण विद्युतीकरण निगम और पावर फाइनैंस कॉर्पोरेशन के पत्र शामिल हों, अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हैं। निवेशकों को वैसे फंडों से बचना चाहिए जो रियल एस्टेट कंपनियों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पत्रों में निवेश करते हैं।’

इनकम और गिल्ट फंड सतत खुले फंड होते हैं और निवेशक लाभांश और ग्रोथ में से किसी विकल्प का चयन कर सकते हैं। अगर निवेशक लाभांश विकल्प का चयन करते हैं तो उन्हें 14 प्रतिशत लाभांश वितरण कर के तौर पर देना होता है। ग्रोथ के मामले में पूंजीगत अभिलाभ कर का भुगतान करना होता है, यह निवेश की अवधि पर निर्भर करता है।

First Published - December 21, 2008 | 9:49 PM IST

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