साधारण बीमा कंपनियों के अनुसार भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) को वरिष्ठ नागरिकों की पॉलिसियों के लिए एक पूल बनाना चाहिए।
पिछले वर्ष ऐसा ही सुझाव नेशनल हाउसिंग बैंक के पूर्व अघ्यक्ष के एस शास्त्री के नेतृत्व वाली एक कमेटी ने भी दिया था।वरिष्ठ नागरिकों की पॉलिसी एवं स्वास्थ्य बीमा से जुड़े मसलों के लिए वर्ष 2007 के मई महीने में इरडा ने सात सदस्यीय एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने एक बीमा पूल बनाने का सुझाव दिया था।
जिसकी शुरुआत सरकारी अनुदान से की जाने की बात की गई थी और बाद में इसमें सभी हिस्सेदारों की प्रतिभागिता होती जिसमें बीमा कंपनियां और पॉलिसी धारक शामिल होते।
सरकारी क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि कुछ वरिष्ठ नागरिकों को उद्योग मानकों के अनुसार आसानी से बीमित नहीं किया जा सकता है इसके लिए मेडिकल परिस्थितियां जिम्मेदार होती हैं, उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति का 70 वर्ष से अधिक उम्र का होना।
अधिकांश बीमा कंपनियां वरिष्ठ नागरिकों को पॉलिसी देने में दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं क्योंकि इस व्यवसाय में उन्हें लाभ नहीं होता है। पिछले कुछ दशकों में चिकित्सा विज्ञान काफी आगे बढ़ चुका है जिससे औसत जीवन प्रत्याशा में वृध्दि हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक जीवन प्रत्याशा अगले दशकों में 77 से बढ़ कर 85 हो सकती है। बीमा कंपनियां 50 वर्ष से अधिक आयु के वैसे ग्राहकों से दूर ही रहना पसंद करते हैं जो पहली बार बीमा उत्पाद की खरीदारी करना चाहते हैं और अगर उनके पास पहले से पॉलिसी है तो उसके नवीकरण के लिए प्राय: शत प्रतिशत अतिरिक्त प्रीमियम ले रहे हैं। इसके अलावा बीमाकर्ता 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तिओं का बीमा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।
बीमा कंपनियों ने अपने अभिकर्ताओं को मिलने वाले कमीशन में इसलिए कटौती कर दी है कि वे जनसंख्या के ढलती उम्र या बुजुर्गों को लक्ष्य न कर सकें। सरकारी बीमा कंपनी के अभिकर्ता ने स्वीकार किया कि 45 वर्ष से अधिक के उम्र के व्यक्तियों की पॉलिसी के मामले में कमीशन में कटौती की गई है। 45-55 वर्ष के व्यक्तियों के बीमा के लिए अभिकर्ताओं को कुल 10 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता है जबकि यह पहले 15 प्रतिशत था।
एक तरफ जहां किसी भी बीमा कंपनी ने वरिष्ठ नागरिकों के मामले में अंडरराइटिंग संबधी पक्षपात को नहीं स्वीकारा है वहीं एक सरकारी बीमा कंपनी के अधिकारी ने बताया कि पिछले कई वर्षों में ‘प्रीमियम दरों में कोई वृध्दि नहीं की है जबकि हेल्थकेयर के मूल्यों में काफी बढोतरी हुई है।’
उन्होंने बताया, ‘इसके अलावा प्रीमियम के रुप में प्राप्त होने वाले प्रत्येक 100 रुपये पर दावे की राशि के तौर पर हमें 140 रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है। दावे का ऐसा उच्च अनुपात को कई बीमा कंपनी अधिक समय तक नहीं झेल सकती है।’
शास्त्री कमेटी के सुझावों के अनुसार बीमा पूल बना कर इस मसले को सुलझाया जा सकता है। कमेटी ने यह भी पाया कि अगर बीमा प्रीमियम को सेवा कर (लगभग 12 प्रतिशत उपकर सहित) के मामले में छूट नहीं मिलती है तो सेवा कर का कम से कम 50 प्रतिशत बीमा पूल में जाना चाहिए।
भारत में साधारण बीमा व्यवसाय से जुड़ी कंपनियों के जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के महासचिव के एन भंडारी मानते हैं कि बीमा पूल बनने से बीमा कंपनियों के विचार बदलेंगे।उनका कहना है कि इस पूल से वरिष्ठ नागरिकों की पॉलिसियां भी सस्ती होंगी।