देश में चुनाव का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसका कॉरपोरेट जगत, आमजन और बाजार पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
विशेषज्ञों की मानें तो इस बार हो रहे लोकसभा के चुनाव में किसी भी एक दल का बहुमत मिलने की संभावना नजर नहीं आ रही है। यही नहीं, विश्लेषकों का कहना है कि अभी यह कहना कि किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी, जल्दबाजी होगी।
वैसे, बाजार आगामी लोकसभा चुनाव और नई सरकार को लेकर काफी संजीदा है, क्योंकि मौजूदा हालात में अर्थव्यवस्था में स्थिरता और सुधार कार्यक्रमों को जारी रखना बेहद जरूरी है और देश की विकास दर भी इन्हीं पहलुओं पर टिका हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि नई सरकार अगर सुधार कार्यक्रमों को जारी रखती है तो बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत होगा।
ऐसे में चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जाएगी, बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। यही नहीं, अगर चुनाव के बाद सरकार बनाने में किसी तरह की अनिश्चितता का माहौल नजर आया, तो मई में बाजार में एक और बड़ी गिरावट देखी जा सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं होगा, बल्कि इतिहास भी इस बात का गवाह है।
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जब सत्तासीन भाजपा गठबंधन (एनडीए) की सरकार को हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार सत्ता में आई थी, तब भी बाजार में इसका व्यापक असर देखा गया था। वैसे, 2004 में बाजार को उम्मीद थी कि एनडीए सरकार ही सत्ता में बनी रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
वाममोर्चा के समर्थन से संप्रग की सरकार बनी तो नई सरकार और उसकी नई नीतियों को लेकर बाजार में असर दिखा और वह गिर गया। 17 मई, 2004 को सेंसेक्स में दिनभर उतार-चढ़ाव का खेल जारी रहा और अंत में बाजार करीब 16 फीसदी गिरकर 4,227 अंक पर बंद हुआ। जबकि 14 मई को बाजार 5,070 अंकों पर बंद हुआ था।
हालांकि बाद में जब यह स्पष्ट हो गया कि भविष्य में विकास दर में सुधार होने की उम्मीद है, तो बाजार में अच्छी तेजी देखी गई। मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक सुधार के ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे विकास दर प्रभावित न हो और इसका बाजार पर भी सकारात्मक असर पड़े। इसके लिए जरूरी है कि स्थिर सरकार बने। आइए जानते हैं, लोकसभा चुनावों के बाद संभावित परिदृश्य और बाजार पर पड़ने वाले उसके असर के बारे में :
कांग्रेस नेतृत्व वाला गठबंधन
कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार को वामदलों, लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल, शरद पवार की एनसीपी और डीएमके का समर्थन मिला था। खास बात यह कि कांग्रेस के पास केवल 145 सांसद ही थे, फिर भी उसने पांच साल तक सरकार चलाई। हालांकि इस बार संप्रग से वामदल बाहर निकल कर तीसरे मोर्चे में चले गए हैं।
इधर, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को मायावती की बसपा से कड़ी टक्कर मिलेगी। संप्रग सरकार में शामिल रहे लालू प्रसाद और शरद पवार भी कांग्रेस को समर्थन देने को राजी हो सकते हैं, लेकिन उनका रुख चुनाव के बाद बने समीकरण पर आधारित हो सकता है। वैसे, विश्लेषकों का कहना है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस को भी कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है।
एंजल ब्रोकिंग के फंड मैनेजर पी. फणिशेखर का कहना है कि वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस ने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और बिहार में कुल 45 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार की स्थिति को देखते हुए लगता है कि पार्टी को इन राज्यों में नुकसान उठाना पड़ सकता है और इन क्षेत्रों में उसकी सीटों की संख्या घटकर 22 तक रह जाने की उम्मीद है।
वैसे, बाजार कांग्रेस नेतृत्व वाले संग्रग सरकार के पक्ष में दिखता है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में आर्थिक सुधार और उच्च विकास दर को प्राथमिकता सूची में रखा गया है। साथ ही, घोषणा पत्र में कहा गया है कि कृषि और आधारभूत क्षेत्रों पर ज्यादा निवेश किया जाएगा।
जानकारों का कहना है कि परमाणु ऊर्जा और इससे संबंधित अन्य मुद्दों पर कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार की नीति से फायदा हो सकता है। उनका मानना है कि संप्रग की बीमा, दूरसंचार और रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाने की नीति उद्योग जगत के हित में हो सकती है। हालांकि इस सरकार के काम-काज और नीतियों को लेकर कुछ सवाल भी उठता है। जानकारों का कहना है कि आर्थिक सुधार के लिए अब तक उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं।
साथ ही, ईंधन की कीमतों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश मुद्दे पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। चिंता इस बात की भी है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे को किस तरह पाटा जा सकता है। वैसे, जानकारों का कहना है कि ये सभी मुद्दे सरकार में शामिल सहयोगी दलों के रुख और उनकी नीतियों पर निर्भर करंगे। यह अन्य गठबंधन सरकारों के लिए भी बड़ी समस्या है। चाहे सरकार संप्रग की बने या फिर एनडीए या तीसरे मोर्चे की।
भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन
भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन राजग (एनडीए) भी नई सरकार की दौड़ में बड़ा दावेदार है। लेकिन विगत विधानसभा चुनावों में राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रदर्शन को देखते हुए राजग के समक्ष कुछ चुनौतियां भी नजर आ रही हैं। उड़ीसा में नवीन पटनायक का बीजू जनता दल राजग का साथ छोड़ चुका है। इससे भी भाजपा गठबंधन को झटका लगा है।
जानकारों का कहना है कि इससे राजग को कम से कम 11 सीटों का नुकसान हो सकता है। हालांकि राजग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती चुनाव बाद अन्य दलों का समर्थन हासिल करना होगी। राजग को बसपा से काफी उम्मीदें हैं, लेकिन चुनाव के बाद ही इस बारे में कोई निर्णय लिया जा सकेगा। फणिशेखर का कहना है कि अगर तीसरा मोर्चा कांग्रेस का समर्थन नहीं करता है, तो तीसरे मोर्चे में कुछ दरार आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में राजग को फायदा हो सकता है।
इस बीच, 3 अप्रैल को भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि व्यक्तिगत आयकर सीमा में छूट दी जाएगी और इसे बढ़ाकर 3 लाख रुपये तक किया जा सकता है। वहीं महिलाओं को लुभाने के लिए भाजपा ने 3.5 लाख रुपये तक कर छूट का वादा किया है। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों के पास काफी रकम करमुक्त होगी, जिससे खपत बढ़ने की उम्मीद है।
जानकारों का कहना है कि इस कदम से टिकाऊ उपभोक्ता सामान, पर्यटन, मनोरंजन, एफएमसीजी और वाहन उद्योग को फायदा हो सकता है। इसके साथ ही घोषणा पत्र में कहा गया है कि किसानों को कम ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध कराया जाएगा, साथ ही होम लोन की दरों में और छूट दी जाएगी। यही नहीं, फ्रिंज बेनिफिट टैक्स (एफबीटी) को भी हटाने की बात घोषणा पत्र में की गई है।
दरअसल, भाजपा ने अपने घोषणा पत्र के जरिए ग्रामीण वोटरों के साथ-साथ उद्योग जगत को लुभाने की भरसक कोशिश की है। जानकारों का कहना है कि कृषि, बुनियादी क्षेत्र और विनिवेश मुद्दे पर राजग की नीतियां भी संप्रग की तरह ही रही हैं। ऐसे में बाजार को उम्मीद है कि राजग की सरकार बनने से भी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकती है।
तीसरे मोर्चो का उदय
एडल्वाइस सिक्योरिटीज के निश्चल माहेश्वरी का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस के विरूद्ध तीसरे मोर्र्चे में शामिल हो रहे दलों को देखते हुए चुनाव में इसकी अहमियत से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि जानकार इस विकल्प को भी काफी गंभीरता से ले रहे हैं।
दरअसल, जानकारों का कहना है कि अगर सीधे तौर पर तीसरा मोर्चा सरकार नहीं बना पाया तब भी यह सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। शेखर का कहना है कि चुनाव के बाद वामदलों के साथ तीसरा मोर्चा बड़ी ताकत के रूप में उभरेगा और सरकार को समर्थन देने के एवज में वित्त मंत्रालय और विदेश मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग तीसरे मोर्चे में शामिल दलों की झोली में जा सकते हैं।
हालांकि तीसरे मोर्चे के साथ चिंता इस बात की है कि इसमें कई दल शामिल हैं, जिनकी अपनी-अपनी नीतियां और हित हैं। ऐसे में समर्थन देने की स्थिति में भी सरकार पर हमेशा अनिश्चितता के बदल मंडराते रहेंगे। साथ ही सरकार को अपनी नीतियों से भी समझौता करना पड़ सकता है।
1989 में वी.पी. सिंह सरकार और 1996-97 में एच.डी. देवगौड़ा सरकार में तीसरे मोर्चे की सरकार बन चुकी है। लेकिन दोनों ही सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और इस दौरान बाजार में अनिश्चितता का माहौल बना रहा। ध्यान देने की बात है कि तीसरे मोर्चे के घोषणा पत्र में कहा गया है कि दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर को फिर से लगाया जाएगा और एसटीटी को पूरी तरह से हटा दिया जाएगा।
इसके साथ ही आईटी जैसे क्षेत्रों को मिल रही कर छूट को भी समाप्त कर दिया जाएगा। इससे बाजार पर बुरा असर पड़ सकता है। हालांकि इस मोर्चे में शामिल दलों का भी मुख्य ध्यान बुनियादी ढांचा, ग्रामीण विकास, कृषि और निर्यात ही है। हालांकि जानकारों का कहना है कि इस मोर्चे के सरकार में शामिल होने से सेज, विदेशी निवेश और विनिवेश की गाड़ी थम सकती है।
क्या करें निवेशक?
मौजूदा हालात को देखते हुए लगता है कि किसी भी दल का पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। जानकारों का कहना है कि चुनाव के बाद छोटे और क्षेत्रीय दलों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी और सभी गठबंधन इन्हें अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश करेंगे।
इससे मंत्री पद को लेकर समस्या हो सकती है, क्योंकि क्षेत्रीय दलों के पास कई महत्वूपर्ण मंत्री पद जा सकते हैं, जिससे बाजार पर बुरा असर पड़ सकता है। सुंदरम बीएनपी परिबा म्युचुअल फंड के इक्विटी प्रमुख सतीश रामनाथन का कहना है कि चुनाव के बाद बाजार में भारी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।
कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष अंबरीश का कहना है कि सरकार को लेकर अनिश्चितता के बावजूद चुनाव और चौथी तिमाही के परिणामों की वजह से बाजार में तेजी चौंकाने वाली है। उनका मानना है कि चुनाव के बाद बाजार में एक बार और गिरावट आएगी और यह तीसरी तिमाही के परिणामों के बाद आई गिरावट से कहीं ज्यादा बुरी साबित हो सकती है।
ऐसे में निवेशक को क्या करना चाहिए, इस बारे में अंबरीश कहते हैं कि अभी मुनाफा वसूली कर लेनी चाहिए और अपने पास कुछ नकदी बचाकर रखनी चाहिए। वैसे, कुछ जानकारों का कहना है कि एफएमसीजी, बुनियादी ढांचा क्षेत्र और कृषि आधारित कंपनियों में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि सरकार किसी भी दल की बने, सभी के एजेंडे में इन सेक्टरों पर खास ध्यान देने की बात कही गई है।
