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गर चाहिए स्थिरता, तो सुधार की है गुंजाइश

Last Updated- December 07, 2022 | 10:48 PM IST


सभी निवेशक जोखिम उठाने की अपनी काबलियत को देखते हुए अपने पोर्टफोलियो में विभिन्न श्रेणी की परिसंपत्तियों को जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए हम राहुल सिन्हा का पोर्टफोलियो लेते हैं, जिसमें सावधि जमाखाते, सार्वजनिक भविष्य निधि यानी पीपीएफ, डाकघर जमाखाता, जीवन बीमा पॉलिसियां (जो सभी कर बचत और निवेश के लिहाज से ली गई हैं), म्युचुअल फंड, शेयर और सोना शामिल हैं।


अक्सर सिन्हा को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, जब उनके पोर्टफोलियो का एक हिस्सा तो उन्हें अच्छा रिटर्न देता है, लेकिन दूसरा हिस्सा काफी निराशा से भरा होता है। मौजूदा समय में जब उनके म्युचुअल फंड और इक्विटी निवेश में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आ गई है और डेट में किए गए उनके निवेश स्थिर रिटर्न दे रहे हैं तो उन्हें लगातार एक ही चिंता खाए जा रही है कि क्या उन्हें इक्विटी से अपना पैसा निकाल कर डेट में लगा कर अपने पोर्टफोलियो में सुधार करना चाहिए या फिर इसी डेटइक्विटी अनुपात के साथ बने रहें?


वित्तीय योजना के नजरिये से पोर्टफोलियो में जरूरी सुधार करना काफी अहम है। पोर्टफोलियो के आकार और उसकी प्रकृति के अनुसार आपको हर 6 महीने बाद इसका जायजा लेना चाहिए और जरूरत पड़ने पर सुधार करने चाहिए। यह ठीक वैसा ही है, जैसे आप समयसमय पर अपनी कार को सर्विसिंग के लिए भेजते हैं। चूंकि आपकी संपत्तियों (इक्विटी, सोना, जमीन जायदाद और डेट आदि ) की कीमत बाजार की बदलती परिस्थितियों के साथ बदलती रहती है, आप परिसंपत्तियों के मूल आवंटन से भटक जाते हैं। परिसंपत्तियों का आवंटन बनाए रखने के लिए आपको किसी एक श्रेणी पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए या उसका वेटेज कम होने पर इसकी वजह सोचने की


जरूरत है।


इसके अलावा, क्योंकि आप अपने वित्तीय लक्ष्य के करीब हैं, आपको बेशक अपने पोर्टफोलियो को कुछ सुधारना चाहिए और अपनी परिसंपत्तियों को इक्विटी, सोना या रियल एस्टेट से निकालकर डेट और नकद में रखना चाहिए। अगर बाजार ऊपर चढ़ रहा हो या आप अपनी कुछ खास जरूरतों को पूरा करने के लिए धन इकट्ठा कर चुके हों तो आपको यह अपना लक्ष्य प्राप्त होने से लगभग 18 से 24 महीने पहले पोर्टफोलियो में सुधार करना चाहिए।


अगर बाजार में मंदी बनी हुई है तो आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सिर्फ 6 से 12 महीने पहले ही अपने पोर्टफोलियो में तब्दीली लानी चाहिए। आदर्श रूप में आपको अपने लक्ष्य के शुरुआती वर्षों में इक्विटी में अधिक निवेश कर ठोस विकास को लक्ष्य करना चाहिए और उसके बाद आप जैसेजैसे अपने लक्ष्य के करीब बढ़ रहे हों, डेट और नकद की तरफ झुकाव को बढ़ा देना चाहिए।


यह हर निवेशक के लिए अलगअलग हो सकता है। अपने लक्ष्यों को पाने के लिए आपका जोखिम के प्रति क्या नजरिया है, आप कितना जोखिम उठा सकते हैं और सबसे बड़ी बात रिटर्न काफी अहम हैं।


चलिए सिन्हा के परिसंपत्ति आवंटन पर एक नजर डालते हैं। उनकी वित्तीय परिस्थितियों और जोखिम उठाने की उनकी क्षमता के अनुसार उनका पोर्टफोलियो कुछ इस तरह का दिखता है।


पहले उनका पोर्टफोलियो कुछ इस तरह था। उनके पोर्टफोलियो में इक्विटी में 50 प्रतिशत (50 लाख रुपये) का और डेट में 30 प्रतिशत (30 लाख रुपये) निवेश किया गया था। प्रारंभिक पोर्टफोलियो देखें। हालांकि बाजार में गिरावट के साथ उनके डेट बढ़कर 40 लाख रुपये और इक्विटी घटकर 40 लाख रुपये रह गई। साथ ही उनका नकद और सोने की स्थिति दोगुनी होकर 20-20 लाख रुपये हो गई। (बदला हुआ पोर्टफोलियो देखें)


हालांकि उसकी कुल संपत्ति बढ़ गई है, पर उनके परिसंपत्ति आवंटन में ज्यादातर परिसंपत्तियों में 10त्न से अधिक का फेरबदल हुआ है। हालांकि यह बदलाव के लिए अच्छा समय है। सिन्हा को इक्विटी में 50 प्रतिशत वापस हासिल करने के लिए, उन्हें अन्य इक्विटी योजनाओं में 20 लाख रुपये निवेश करने होंगे, जो वे सोने और डेट में मिलने वाले लाभ को बेच कर नकद के कुछ हिस्से का इस्तेमाल करने के बाद ही कर सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि वे अन्य परिसंपत्तियों को ऊंचे स्तर पर बेचें और इक्विटी में कम स्तर पर खरीदें। जैसा कि आप देख सकते हैं, लागत भारी है। अगर आप एक साल से भी कम समय में अपने पोर्टफोलियो में सुधार करते हैं तो इसके लिए आपको 3.39 लाख रुपये चुकाने होंगे। लेकिन दो साल बाद इसी फेरबदल के लिए आपको 1.13 लाख रुपये देने होंगे।


हालांकि यहां एक अन्य बात भी काफी अहम है। चूंकि कम अवधि में सुधार की लागत काफी ज्यादा है, इसमें गोल्ड ईटीएफ (10 लाख रुपये) में लाभ और आपके हाथ में नकद की स्थिति भी 10 लाख रुपये से बेहतर हो रही है। ऐसी स्थितियों में जब किसी खास परिसंपत्ति के खिलाफ बाजार में उठापटक न चल रही हो, मुनाफा कमाया जा सकता है।


हमारे दिए गए उदाहरण में निवेशक को उसके नकद और सोने की मजबूती का फायदा मिल रहा है, जो उसके पोर्टफोलियो में सुधार पर झलक रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि पूरे पोर्टफोलियो की कीमत घट जाए। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि आप कुछ समय मजबूती से बैठ जाएं या फिर किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से बात करें।



First Published - October 5, 2008 | 9:46 PM IST

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