ऐसे समय में जब पूरी दुनिया का वित्तीय बाजार बुरी तरह चरमरा रहा है, एसेट क्लास में सिर्फ सोना ही है जो निवेशकों की कसौटी में खरा उतरने में कामयाब हुआ है।
अधिकांश विश्लेषक मुद्रास्फीति की हेजिंग सोने से करने की बात कह रहे हैं। इसी समय दूसरे कई विशेषज्ञ हैं जिनका कहना है कि सोने में आपके पोर्टफोलियो में शामिल होने की क्षमता नहीं है, क्योंकि इससे मिलने वाला रिटर्न काफी औसत है।
हालांकि इससे अलग कई बातें हैं जो बताती हैं कि किसी के पास सोना क्यों होना चाहिए। यहां सबसे अहम बात यह है कि आपके पोर्टफोलियो में इस बहुमूल्य धातु का प्रतिशत कितना होना चाहिए। इसे एसेट एलोकेशन के जरिए हासिल किया जा सकता है।
यहां कोई निश्चित आधार काम नहीं करता लेकिन आप अपने एसेट एलोकेशन में 5-10 फीसदी सोना रख सकते हैं। इस स्तर को अवसरों और बदले आर्थिक परिदृश्यों के आधार पर आपको बदलते रहना होगा। भारत में अधिकांश लोग सोने को आभूषण के रूप में रखते हैं तो कुछ लोग इसे बार या सिक्कों की अवस्था में अपने पास रखते हैं।
इनके अतिरिक्त एक अन्य जरिया म्युचुअल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफएस) हैं जो गोल्ड माइन कंपनियों में निवेश करती हैं। सोने को भौतिक रूप से अपने पास रखने के बजाया गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने के लाभ यह हैं कि इसे आप स्पॉट मार्केट प्राइस में खरीद सकते हैं।
इसकी वजह यह है कि इसमें सोना अभौतिक अवस्था में होता है इसलिए यहां आपको स्टोरेज और बीमा की लागत नहीं देनी पड़ती। यहां सोना 99.99 फीसदी शुध्द होता है इसलिए इसकी शुध्दता को लेकर आपके मन में वैसा कोई संदेह नहीं रहता जो सीधे बाजार से सोना खरीदते वक्त होता है।
इसके साथ ही ईटीएफ कर के लिहाज से भी फायदेमंद होते हैं क्योंकि इसमें कोई वेल्थ टैक्स देय नहीं होता। लांग टर्म कैपिटल गेन उसी समय देय होता है जब इसे आप एक साल बाद बेचते हैं। दूसरी बात करें तो फिजिकल गोल्ड या फिर आभूषण पर वेल्थ कर देय होता है।
साथ ही लांग टर्म कैपिटल गेन का लाभ लेने के लिए इसे अपने पास तीन साल तक रखना होता है। आगे बढ़ते हुए अगर गोल्ड माइनिंग फंड की बात करें तो दो फंड हाउस इस समय इस तरह के प्रॉडक्ट दे रहे हैं। यह हैं डीएसपी एमएल वर्ल्ड गोल्ड फंड और एआईजी वर्ल्ड गोल्ड फंड।
ये वे फंड हैं जो सीधे सोने में निवेश न करके गोल्ड माइनिंग कंपनियों में निवेश करती हैं। इनमें लगने वाले कर ईटीएफ के समान ही हैं।
यह भी सोने में अप्रत्यक्ष निवेश का एक अच्छा माध्यम हैं। हालांकि यहां एक जोखिम यह है कि इन फंडों में किया गया निवेश सीधे सोने में किए गए निवेश की तुलना में अधिक अस्थिर है।
इनमें तेजी घट बढ़ हो सकती है। क्योंकि सोने की कीमत की तुलना में इनका इक्विटी बाजार से अधिक सीधा संपर्क होता है। अगर प्रदर्शन की बात करें तो डीएसपी एमएल वर्ल्ड गोल्ड फंड का प्रदर्शन स्थाई रहा है।
2007 में बाजार में आने के बाद के छह माह में इसने 60 फीसदी रिटर्न दिया था, लेकिन इसके बाद इसे एक करेक् शन के दौर से भी गुजरना पड़ा जब दुनिया के बाजार में गोल्ड इक्विटियों पर जोरदार मार पड़ी। हालांकि 2008 के पहले चार महीनों में जब इक्विटी बाजार की हालत खस्ता थी उस दौर में भी गोल्ड फंडों ने अच्छा कारोबार किया था।
यह दोनों गोल्ड फंड वास्तव में फीडर हैं फंड हैं जो सीधे विदेशों की गोल्ड माइनिंग कंपनियों में निवेश न करके मेरिल लिंच और एआईजी ग्लोबल के गोल्ड फंडों में निवेश करती हैं। ये दोनों वर्ल्ड गोल्ड फंड डेट फंड माने जाते हैं।
पिछले दो माहों में डीएसपी वर्ल्ड गोल्ड फंड में 62 फीसदी रिटर्न दिया। यह असाधारण हैं क्योंकि इसी समय में ईटीएफ और सीधे सोने में किए गए निवेश से 17 फीसदी ही रिटर्न मिल सका।
यहां तक की एआईजी वर्ल्ड गोल्ड फंड ने भी 42 फीसदी का ही रिटर्न दिया। यह लाभ गोल्ड माइनिंग कंपनियों के शेयरों में हुई अच्छी भरपाई के कारण हुआ है।
इन कुछ शेयरों ने तो 50-65 फीसदी की रैंज में रिटर्न दिया। आपके पास इस समय गोल्ड असेट क्लास में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं। यहां गोल्ड पोर्टफोलियो बनाने का एक उदाहरण भी दिया गया है। यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक स्ट्रक्चर है जो व्यक्ति दर व्यक्ति अलग होता है।
1. 50 फीसदी ईटीएफ में
2. 40 फीसदी गोल्ड माइनिंग कंपनियों में
310 फीसदी फिजिकल गोल्ड में
4. आभूषणों को एक व्यक्तिगत एसेट माना जाता है न कि निवेश। इसलिए इसे इससे बाहर रखा जाना चाहिए।
अगर आप आभूषणों को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करना ही चाहते हैं तो 30-40 फीसदी आभूषणों में, 40 फीसदी ईटीएफ में 20-30 फीसदी इक्विटियों में निवेश करें।
लेखक एक पंजीकृत वित्तीय सलाहकार हैं।