लगातार अच्छा रिटर्न देने के बाद ब्रोकिंग कंपनियों के शेयरों के दाम जनवरी 2008 में शेयर बाजार में आई तेज गिरावट के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुए।
अपनी सालाना अधिकतम ऊंचाई को छूने के तीन महीनें के भीतर ही प्रमुख ब्रोकिंग कंपनियों के शेयर, जिनमें मोतीलाल ओसवाल फाइनेंस, एडेलवायस कैपिटल और आईएल एंड एफएस शामिल हैं,के शेयर मार्च के अंतिम महीने में अपनी न्यूनतम ऊंचाई पर पहुंच गए।
जबकि इंडिया इन्फोलाइन और आईएल एंड एफएस केशेयरों में क्रमश: 55 फीसदी और 33 फीसदी की गिरावट आई लेकिन नई अधिसूचित ब्रोकिंग फर्म भी इनसे कुछ खास पीछे नहीं हैं। नई अधिसूचित कंपनियों जैसे मोतीलाल ओसवाल फाइनेंस, एडेलवायस कैपिटल और रेलिरेयर के स्टॉक में क्रमश: 52 फीसदी,49 फीसदी और 26 फीसदी की गिरावट आई। इस गिरावट का आकलन उनके सितंबर और दिसंबर 2007 में बंद होने की तारीख से किया गया है।
खराब हालत के संकेत
ब्रोकिंग कंपनियों के लिए घरेलू और विदेशी दोनों बाजारों से खराब खबरों का आना जारी रहा। क्रेडिट संकट,अमेरिकी डॉलर का कमजोर होना,बढ़ती महंगाई और अर्थव्यवस्था में गिरावट ने बाजार के रुख के लिए नकारात्मक भूमिका निभाई।
घरेलू मोर्चे पर कारपोरेट आय,औद्योगिक उत्पादन में कमी और नगदी में मंदी जारी रही। इसकेअतिरिक्त बढ़ती महंगाई और भारत के फॉरेन करेंसी डेरिवेटिव्स एक्सपोजर ने भी खासा झटका दिया। यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि बाजार में गिरावट आई और वॉल्यूम की बिक्री घटी।
उदाहरण के लिए बीएसई और एनएसई दोनों का कुल कारोबार संयुक्त रुप से 36.5 फीसदी गिरकर 401,404 करोड़ पर आ गया जबकि जनवरी 2008 में यह 632,117 करोड़ रुपये के स्तर पर था। इसमें मार्च में दस फीसदी की और गिरावट आई और यह 360,048 करोड़ पर आ गया हालांकि अप्रैल में इसमें 6.8 फीसदी का हल्का सा सुधार हुआ। जबकि मई 2008 में भी आकड़े उत्साहजनक नहीं रहे।
कुछ और वजहों जिन्होनें इस दाद में खाज का काम किया उनमें केंद्रीय बजट की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस बजट में कैपिटल गेन टैक्स को 10 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी कर दिया गया था। कमोडिटी ट्रांसजेक्सन टैक्स को लाया गया और सिक्योरिटी ट्रांजेक्सन टैक्स केप्रावधानों में भी बदलाव किए गये।
इन सभी बदलावों और प्रावधानों ने इक्विटी कारोबारियों का जीना दूभर कर दिया। वर्ष 2008 में अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने तीन अरब डॉलर रुपये बाजार से खींच लिए है जबकि पिछले सालों 2006 और 2007 में उन्होंने क्रमश: करीब आठ अरब डॉलर और दस अरब डॉलर का कारोबार किया था।
तिमाही परिणामों से भी मिला संकेत
ब्रोकिंग कंपनियों केबारे में संदेह और आशंकाओं को उनके तिमाही परिणामों ने भी व्यक्त किया। करीब सभी कंपनियों के ऑपरेटिंग इनकम(राजस्व)और नेट प्रॉफिट में 10 से 25 फीसदी की तिमाही गिरावट देखी गई। इंडिया इन्फोलाइन और इडेलवीस के मामले में तो यह गिरावट 25 फीसदी रही।
आकड़ों पर निगाह डाले तो आश्चर्यचकित करने वाले परिणान सामने आते हैं जैसे आईएल एंड एफएस और इंडिया इंफोलाइन जिनका कि पोर्टफोलियो में ज्यादा फैलाव (डाइवरसीफाइड) है,के राजस्व बढ़त पर दूसरों की तुलना में कम प्रभाव पड़ा।
इसकी वजह अपने कर्मचारियों पर खर्च का बढ़ना,प्रशासनिक खर्चों और कंपनियों के प्रसार की योजनाओं से भी उनके खर्चों में बढोत्तरी हुई। इससे कंपनियों की टॉपलाइन बढ़त भी प्रभावित हुई। जबकि सालाना परिणामों केआधार पर देखा जाए तो अधिकांश कंपनियों की मार्च की तिमाही में बढ़त मजबूत रही और वित्त्तीय वर्ष 2008 के लिए उनका प्रदर्शन भी बेहतर रहा।
नजरिया
बाजार के स्थिर रहने के आसार हैं लेकिन वॉल्यूम में छोटी अवधि के लिए उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। छोटी अवधि से यहां तात्पर्य तीन से चार महीनों से है।
डीएसपी मेरिल लिंच के फंड मैनेजर अनूप माहेश्वरी का कहना है कि वित्तीय वर्ष 2008 में बाजार कंसोलिडेशन की हालत में रहा लेकिन वित्त्तीय वर्ष 2009 से हमारी ज्यादा आशाएं हैं। ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि निवेश के लिए आने वाले समय ज्यादा खराब नहीं लगता है जबकि लंबी अवधि केलिए निवेश का विकल्प अपनाया जाए।
इसके अलावा बजटीय प्रावधानों का प्रभाव भी ज्यादा नहीं पड़ेगा। उनका मानना है कि अगले बारह महीनों में वॉल्यूम की बिक्री भी बढ़ेगी और बाजार भी ऊंचाईयों की ओर जाएगा। यहां तक कि मौजूदा वॉल्यूम स्तर पर भी कुछ कंपनियां अपनी बढ़त को बरकरार रख सकती हैं यदि वे राजस्व अर्जन को डाइवरसीफाई कर सकें।
अब अगर संपूर्णता की दृष्टि से देखा जाए तो ब्रोकिंग कंपनियों के भविष्य अच्छा है और इस सेक्टर के लिए वैल्यूसेशन भी अच्छा रहेगा क्योंकि इसमें पर्याप्त करेक्सन हो चुका है। हालांकि सभी निवेशकों के पास ब्रोकिंग स्टॉक का होना जरुरी नहीं है। यह कारोबार पर्याप्त प्रतियोगी है और प्रकृति में यह चक्रीय है और यह अब ज्यादा मात्रा में वैश्विक हालातों से जुड़ा हुआ है। जे एम फाइनेंसियल म्युचुअल के फंड मैनेजर संदीप नीमा स्टॉक को लेने में चयनात्मक रुख अपनाते हैं।
इंडिया इन्फोलाइन
इंडिया इंफोलाइन केसबसे कम जोखिम वाला रेवेन्यू मॉडल है क्योंकि इसके कुल राजस्व में इक्विटी ब्रोकरेज से प्रापप्त राजस्व का योगदान 55 फीसदी से कुछ ही ज्यादा है। यह अधिसूचित कंपनियों में सबसे कम है।
यही वजह है कि सभी फंड मैनेजरों के लिए पहली पसंद है। अपने डाइवरसीफाइड पोर्टफोलियो की वजह से कंपनी ने लाभ कमाना जारी रखा है और उसकी ऑपरेटिंग इनकम में लगातार 25 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़त हुई है। मार्च तिमाही में कंपनी के नेट प्रॉफिट में एक फीसदी से भी कम की बढ़त हुई है।
वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी की बढ़त की मुख्य वजह संस्थागत ब्रोकिंग कारोबार और अपनी शाखाओं का बेहतर इस्तेमाल रहा। कंपनी ने पिछले कुछ सालों में अपनी शाखाओं में तेजी से प्रसार किया है।
अमेरिका स्थित ब्रोकरेज ऑरबेक गैरीसन एंड कंपनी के साथगठजोड़ से कंपनी की अमेरिका केसंस्थागत निवेशकों तक पहुंच बढ़ेगी। अमेरिकी निवेशकों का भारतीय बाजार केप्रति एक्सपोजर बढ़ाने में भी मद्द मिलेगी। वित्तीय वर्ष 2009 की अनुमानित आय के अनुसार कंपनी के शेयर का कारोबार अभी 25 गुना के स्तर पर हो रहा है और वित्त्तीय वर्ष 2010 में उसकी अनुमानित आय के बेहतर रहने के आसार हैं।
इंडिया बुल्स सिक्योरिटीज
इंडिया बुल्स सिक्योरिटीज 2 अप्रैल 2008 को अधिसूचित हुई। पहसे कंपनी इंडिया बुल्स फाइनेंसियल का हिस्सा थी। अपने अधिसूचित होने केबाद कंपनी के स्टॉक का प्रदर्शन ठीकठाक रहा और इसमें लगभग 12 फीसदी का सुधार आया।
अधिसूचित होने के दिन 99 रुपये पर बंद होने के बाद इसके स्टॉक का मौजूदा मूल्य 111 रुपये है। इसकी मोतीलाल ओसवाल से 11 फीसदी ज्यादा वैल्यूएशन होने की वजह इंडिया बुल्स का लाभ अन्य दो कंपनियों से काफी ज्यादा होना है।
इंडिया बुल्स की आय में वित्तीय वर्ष 2008 में 42 फीसदी से अधिक की बढ़त देखी गई जबकि मोतीलाल ओसवाल और रेलिगर सिक्योरिटीज का लाभ क्रमश: 25 फीसदी और 17 फीसदी रहा। इसकी वजह कम परिचालन लागत रही।
विश्लेषकों का मानना है कि अगले दो सालों में कंपनी की ऑपरेटिंग इनकम और नेट प्रॉफिट में कम से कम 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई थी। वित्त्तीय वर्ष 2009 और वित्तीय वर्ष 2010 में कंपनी का वैल्यूएशन नौ फीसदी और 7.7 फीसदी का रहना अवश्य आकर्षक है।
आईएलएंडएफएस इन्वेस्टमार्ट
रणनीतिक निवेशक आईएलएंडएफएस और अमेरिका स्थित ई टे्रड की हिस्सेदारी से बना यह इनवेस्टमार्ट निवेश करने के ज्यादा विकल्प उपलब्ध कराता है। इसमें आईएलएंडएफएस की हिस्सेदारी 30 फीसदी है और ई-ट्रेड की हिस्सेदारी 44 फीसदी है।
कंपनी रिटेल बुकिंग,पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सेवाएं,कमोडिटी कारोबार,बीमा ब्रोकिंग,संस्थागत इक्विटी,लोन सिंडीकेशन और इनवेस्टमेंट बैंकिंग जैसे विकल्प उपलब्ध कराती है। इसके लिए देश भर में कंपनी के 300 कार्यालय हैं।
इंडिया इंफोलाइन को छोड़कर कंपनी को अपनी ऑपरेटिंग इनकम में सबसे कम गिरावट देखनी पड़ी है क्योंकि कंपनी का पोर्टफोलियो काफी डाइवरसीफाई है। हाल में ही कंपनी अपने सहयोगी कंपनी ई ट्रेड के साथ बातचीत की वजह से चर्चा की थी। ई ट्रेड कंपनी के लिए ब्रोकरेज और बैकिंग उत्पादों का प्रमुख श्रोत है।
रेलिगेयर इंटरप्राइजेस
रेलिगर इंटरप्राइसेस विभिन्न कंपनियों की अनुसंगी कंपनी है जिसके कारोबार को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। रिटेल,संस्थागत और वेल्थ स्पेक्ट्रम और यह भारत के बडे ख़ुदरा ब्रोकरेज में से एक है।
इसकी देश भर में सबसे बड़ा नेटवर्क है और इसके 400 शहरों सहित 1,300 स्थानों पर उपस्थिति है। इसके अतिरिक्त कंपनी इक्विटी,कमोडिटीज,इश्योंरेंस ब्रोकिंग से वेल्थ मैनेजमेंट,पोर्टफोलियो मैनेजमेंट तक की सेवाएं प्रदान करती है। कंपनी हिचन,हैरिसन एंड कंपनी का अधिग्रहण करने जा रही है।
यह कंपनी कारपोरेट ब्रोकिंग,संस्थागत ब्रोकिंग और बिक्री जैसी सुविधाएं प्रदान करती है। यह कंपनी 200 सालों से इस कारोबार में है। 10 करोड़ डॉलर के इस सौदे के संपन्न होने के बाद रेलिगर को अपना नेटवर्क फैलाने में मद्द् मिलेगी। रेलिगर की पहुंच विदेशी बाजारों में होने के बाद छोटी और मझोली कंपनियों को पूंजी जुटाने में आसानी होगी। घरेलू बाजार के लिए कंपनी ने एक वैश्विक कंपनी केसाथ गठजोड़ किया है।
एगोन के साथ कंपनी का जीवन बीमा उत्पाद और म्युचुअल फंड लाने का विचार है। वेल्थ मैनेजमेंट सेवाओं के लिए कंपनी ने मैक्वायेर के साथ गठजोड़ किया है। यद्यपि कंपनी अपने पोर्टफोलियो को तेजी से डाइवरसीफाई कर रही है लेकिन कंपनी अभी भी रिटेल ब्रोकिंग पर ही निर्भर रहेगी।
जिससे कंपनी को 90 फीसदी राजस्व प्राप्त होता है। इसलिए इन वजहों को ध्यान में रखा जाए तो कंपनी का मूल्यांकन वित्तीय वर्ष 2009 और 2010 में क्रमश: 20.5 फीसदी और 17 फीसदी रहेगा। जो कि दबाव को दर्शाता है।
एमके शेयर और स्टॉक ब्रोकर
एमके शेयर्स और स्टॉक ब्रोकर जो जल्द ही एमकेग्लोबल फाइनेंसियल सर्विस में तब्दील हो जाएगी,अधिसूचित कंपनियों में सबसे छोटी कंपनी है। कंपनी का पिछले नौ महीनों में संचित राजस्व 102.6 करोड़ रहा था। कंपनी सलाहकारीय सुविधा प्रदान करती है।
इसके अतिरिक्त कंपनी निवेशकीय उपकरण जैसे म्युचुअल फंड की बिक्री का भी कार्य करती है। अपनी 100 फीसदी की हिस्सेदारी वाली अनुसंगी कंपनी के जरिए कमोडिटी और इंश्योरेंस ब्रोकिंग का भी काम करती है। हालांकि कंपनी अभी पूरी तरह ब्रोकरेज कारोबार पर निर्भर है। दिसंबर 2007 तक नौ महीनों में कंपनी ने इसके जरिए 85.7 फीसदी का संचित राजस्व अर्जित किया था। जबकि कंपनी के जीवन बीमा कारोबार और कमोडिटी कारोबार के बढ़ने में अभी समय लग सकता है।
जियोजित फाइनेंसियल सविर्सेज
जियोजीत फाइनैंसियल सविर्सेज लिमिटेड दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ती ब्रोकरेज कंपनी है। वह अपना प्रसार न सिर्फ भारत के दूसरे भागों में कर रही है बल्कि विदेशों भी उसके प्रसार करने का इरादा है। कंपनी ने इसके लिए दो संयुक्त कंपनियों का निर्माण किया है।