देश की सबसे बड़ी कर्जदाता बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) अपने कार्यों के निष्पादन में बाहरी मदद (आउटसोर्सिंग) का दायरा बढ़ाता जा रही है।
विदेशी कार्यालयों और शाखाओं में बैकऑफिस का काम बाहरी एजेंसियों को सौंपने के बाद अब वह एटीएम स्थापित करने का काम बाहरी एजेंसियों को सौंपने जा रहा है। इसके जरिए वह अपनी लागत घटाने के साथ ही इसमें लगने वाले समय में भी बचत करेगा।
शुरुआत में बाहरी एजेंसियों की मदद से 500 एटीएम लगवाया जाएगा। इन एजेंसियों में वास्तविक कजपुर्जे निर्माता भी शामिल होंगे। एक वरिष्ठ बैंक कार्यकारी के अनुसार एसबीआई मार्च 2010 तक अपने एटीएम की वर्तमान संख्या 8,600 से बढ़ाकर 25,000 करना चाहता है। इस काम में उसे बड़ी लागत और प्रबंधन समय की दरकार होगी।
यहां अगर बैंक बिना मशीन खरीदे ही ग्राहकों को बेहतर एटीएम सुविधा उपलब्ध करा सकता है तो वह यह दोनों ही बचा सकता है। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि बैंक पूरी तरह से एटीएम स्थापित करने के काम से पिंड छुड़ा रही है और खुद कोई एटीएम नहीं स्थापित करेगा।
प्राइवेट बैंक काफी समय पहले से ही एटीएम की स्थापना और प्रबंधन का काम बाहरी संस्थाओं को सौंप चुके हैं। इसकी तुलना में सरकारी बैंकभी यह काम कर रहे हैं, लेकिन बेहद छोटी संख्या में। बीते दिनों कर्मचारी यूनियनों ने इस तरह एटीएम की स्थापना में बाहरी स्रोतों को सौंपे जाने के विरोध में प्रदर्शन किया था।
एसबीआई इन स्रोतों के माध्यम से जिन 500 एटीएम की स्थापना करने की योजना बना रहा है उनमें 200 एटीएम मेट्रो में, 150 शहरी क्षेत्रों में, 100 अर्ध्द शहरी क्षेत्रों में और 50 दूर दराज के इलाकों में स्थापित किए जाने हैं। देश की सबसे बड़े बैंक अपना यह कदम प्रायोगिक तौर पर उठा रही है।
इसके लिए वे ही बोलीकर्ता पात्र होंगे जिन्हें पिछले तीन सालों की सेवा में किसी सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक ने बेकार सेवा के लिए ब्लैक लिस्टेड नहीं किया। इन एटीएम वेंडरों को एटीएम मशीन लगाने के साथ अबाधित विद्युत आपूर्ति के साथ सभी बैकअप सुविधाएं और सुरक्षा उपलब्ध करानी होंगी। यह सेवा प्रदान करने वाले वेडर को बैंक के नवी मुंबई स्थिति स्विच से नेटवर्क कनेक्टिविटी सुनिश्चित करनी होगी।