म्युचुअल फंडों और गैर वित्तीय कंपनियों के बाद अब विमानन उद्योग पर निगरानी रखी जा रही है।
विमानन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर डिफॉल्ट की आशंकाओं को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अब बैंकों और विमानन क्षेत्र के बीच के लेन देन के आंकड़ों को खंगालने में जुटा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक इस जांच का मकसद बैंकों को थोड़ी राहत दिलाना है ताकि वे डिफॉल्ट की चिंता किये बगैर विमानन क्षेत्र को ऋण दे सकें।
सूत्रों ने बताया कि जिन बैंकों ने विमानन क्षेत्र को बहुत अधिक कर्ज दे रखा था उन्होंने नियामक संबंधी समस्याओं को लेकर आरबीआई से मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि निजी बैंकों ने ही विमानन क्षेत्र को सबसे अधिक कर्ज दे रखा है जबकि कर्जदाताओं की सूची में एक-दो ही बड़े बैंकों का नाम है।
यात्रियों की संख्या घटने और ईंधन की ऊंची कीमतों की वजह से कथित तौर पर एयरलाइंस उद्योग कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। और ऐसा माना जा रहा है कि अगर विमानन कंपनियों का हाल ऐसा ही रहा तो यह कर्ज बैंकों के लिए फंसे हुए ऋण में तब्दील हो सकता है।
ऐसा होने से रोकने के लिए नियामक जिस विकल्प पर विचार कर रहे हैं वह यह है कि बैंकों को कुछ ज्यादा दिनों का समय दिया जाए जिसमें वे किसी संपत्ति को डिफॉल्ट की श्रेणी में डालते हैं। मौजूदा प्रावधानों के अनुसार अगर लगातार दो तिमाहियों या 180 दिनों तक ऋण नहीं चुकाया जाता है तो उसे डिफॉल्ट की श्रेणी में डाल दिया जाता है।
बैंकों के लिए गैर निष्पादित संपत्ति बहुत अधिक न हो जाए इसके लिए इस अवधि को एक साल या उससे कुछ अधिक तक बढ़ाया जा सकता है। संपत्ति वर्गीकरण नियमों के तहत उस अवधि का जिक्र किया गया है जिस दौरान बैंक अपने ऋण को निष्पादित या गैर निष्पादित संपत्ति की सूची में डालते हैं।
सूत्रों का कहना है कि अगर इस अवधि को बढ़ाया जाता है तो फिर बैंकों के लिए फंसे हुए ऋण की चिंता किये बगैर विमानन क्षेत्र को ऋण मुहैया कराना आसान हो जाएगा। इस समय विमानन क्षेत्र संकट के दौर से गुजर रहा है और उसे फंड की सख्त दरकार है।
एक दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि बैंकों को ‘ऋण धारक वर्गीकरण नियमों’ को न मानने की छूट दी जाए। यह छूट बैंकों को विमानन कंपनियों वाले कारोबारी घरानों को ऋण मुहैया कराने के लिए दी जाए।
इस नियम के तहत अगर समूह की कोई भी कंपनी ऋण वापस करने से चूक जाती है तो उस समूह की सभी कंपनियों के ऋणों को गैर निष्पादित संपत्ति की श्रेणी में डाल दिया जाता है।
बैंकों से यह कहा जा सकता है कि वे विमानन कंपनियों के समूह को दूसरे कारोबारी समूहों से अलग हटकर देखें और उनके साथ अलग किस्म का बर्ताव किया जाए।
इस तरह अगर विमानन कंपनी डिफॉल्ट करती है तो भी बैंक इसी समूह के दूसरी कंपनियों को ऋण देना जारी रख सकेंगे। इसे ‘खाते के आधार पर वर्गीकरण’ कहा जाता है। सूत्रों के अनुसार विमानन जगत भारी कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है और अकेले तेल कंपनियों को ही उन्हें 1,800 करोड़ रुपये चुकाने हैं।
इसके पहले आरबीआई ने बुनियादी क्षेत्र के लिए एनपीए वर्गीकरण नियमों में बदलाव किया था। बुनियादी ढांचा क्षेत्र?को कारोबार में अच्छी खासी परेशानी हो रही थी। इस परेशानी को देखते हुए और उन्हें राहत देने के लिए ही नियमों में ये बदलाव किये गये थे।