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भारत की बैंकिंग व्यवस्था पर कम अवधि के हिसाब से दबाव पड़ सकता है: RBI

रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट  के अनुसार यदि आर्थिक सुस्ती आती है तो ऋण की मांग भी कम हो सकती है

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सुब्रत पांडा   
Last Updated- June 30, 2025 | 10:14 PM IST

मौद्रिक नीति में ढील, ऋण वृद्धि कम होने और कर्ज को लेकर नकारात्मक धारणा के कारण मजबूत होने के बावजूद भारत की बैंकिंग व्यवस्था पर कम अवधि के हिसाब से दबाव पड़ सकता है। साथ ही बैंकों के सस्ते चालू खाता और बचत खाता (कासा) जमा की तुलना में उच्च लागत वाली सावधि जमा और जमा प्रमाण पत्र (सीडी) की हिस्सेदारी बढ़ने का भी विपरीत असर पड़ सकता है।

रिजर्व बैंक के मुताबिक मौद्रिक नीति में ढील के चक्र के कारण बैंकों की ब्याज से शुद्ध आमदनी (एनआईएम) घट सकती है, क्योंकि बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज बाहरी मानकों पर आधारित उधारी दर (ईबीएलआर) से जुड़े हैं और रीपो रेट में बदलाव के कारण इसे बार बार बदलना पड़ रहा है। वहीं इसके विपरीत सावधि जमा भी बढ़ रही है, जिसमें एक निश्चित अवधि के लिए ब्याज दर तय होती है और उसे बार बार नहीं बदला जाता।

बहरहाल केंद्रीय बैंक ने पाया है कि हाल में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 100 आधार अंक की कटौती किए जाने से बैंकों पर विपरीत असर पड़ने से सुरक्षा मिलेगी क्योंकि उन्हें कर्ज देने के लिए अधिक धन मिल सकेगा और उनकी लागत में कमी आएगी। दूसरे, ऋण में वृद्धि सुस्त हुई है और कर्ज लेने की धारणा नकारात्मक है। इसकी वजह से भी बैंकों पर दबाव पड़ सकता है। व्यवस्था में ऋण वृद्धि की दर एक अंक में आ गई है और यह 2024 की 20 प्रतिशत तक पहुंच चुकी शीर्ष ऋण वृद्धि दर की तुलना में बहुत नीचे है।

 इसके अलावा रिजर्व बैंक के अनुसार यदि कोई आर्थिक सुस्ती आती है, तो बढ़ती अनिश्चितता के बीच ऋण की मांग कम हो सकती है, जिसका असर परिसंपत्ति की गुणवत्ता और मुनाफे की संभावना पर पड़ सकता है। रिजर्व बैंक ने एक और चिंता की ओर इशारा किया है। बैंकों की देनदारी की प्रोफाइल बदल रही है। उच्च लागत वाली जमा और जमा प्रमाण पत्र (सीडी) का अनुपात बढ़ रहा है और कम लागत वाले चालू खाता और बचत खाता (कासा) जमा में कमी आ रही है।

First Published : June 30, 2025 | 10:02 PM IST