सरकार के फरमान के बाद सरकारी बैंकों ने आवासीय ऋण की ब्याज दरों में कटौती कर दी है, लेकिन न तो उसकी तुक नजर आ रही है और न ही इस फैसले को लागू करने के तरीके पता लग पा रहे हैं।
मौजूदा वित्तीय माहौल इतना खस्ता हो चुका है कि जमा दर भी 10 फीसदी से ऊपर चल रही हैं, ऐसे में सस्ते आवासीय ऋण बैंक कैसे मुहैया करा पाएंगे, यह सवाल कइयों के मन में कौंध रहा है।
एक नामी सरकारी बैंक के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक ने कहा कि उन्हें हर हाल में 3.5 फीसदी की शुद्ध ब्याज दर को बरकरार रखना है और इसके लिए वे सरकार का मुंह ताक रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘हमने कर्ज देने का फैसला तो किया है, लेकिन साथ ही हम सरकार से भी कुछ उम्मीद कर रहे हैं। भारतीय बैंक संघ के बैनर तले हम सरकार के पास जाएंगे और निजी बैंकों के साथ ब्याज दर में आ रहे फर्क को पाटने के लिए मुआवजा देने की मांग करेंगे।’
उन्होंने कहा कि बैंकों का पहला मकसद मकानों के लिए मांग बढ़ाना है और दूसरे तथा तीसरे दर्जे के शहरों में ये उपाय काम कर सकते हैं।
लेकिन उन्होंने कहा कि इसके लिए या तो सभी प्रकार की ब्याज दर कम करनी होगी या सरकार को वित्तीय सहायता देनी होगी क्योंकि कोई भी बैंक तीन फीसदी से कम के मार्जिन पर टिक ही नहीं सकता।
आवासीय ऋण मुहैया कराने वाली प्रमुख कंपनियों मसलन एचडीएफसी लिमिटेड, आईसीआईसीआई बैंक और एलआईसी होम फाइनैंस कंपनी ने पहले से ही चल रहे कर्ज पर ब्याज की दरें कम नहीं की हैं।
एक अन्य बैंकर ने कहा, ‘यदि सरकारी बैंकों के इस कदम से मकानों की मांग नए सिरे से पैदा हो जाती है और उससे ब्याज दर कम करने में मदद मिलती है, तो घर के लिए कर्ज देने वाली कंपनियों को भी ब्याज दरें कम करनी ही पड़ेंगी।’
सरकारी बैंकों के ऐलान के मुताबिक पांच लाख रुपये तक के आवासीय ऋणों पर अधिक से अधिक 8.5 फीसदी की दर से ब्याज लिया जा सकता है। 5 लाख से 20 लाख रुपये के ऋणों पर ब्याज की दर 9.25 फीसदी होगी।
इसका मतलब है कि बैंक 8.5 से 9.25 फीसदी तक की ब्याज दर पर कर्ज देंगे। इसके अलावा बैंक 20 लाख रुपये तक के आवासीय ऋण पर प्रॉसेसिंग शुल्क और प्री-पेमेंट शुल्क भी नहीं लेंगे।