भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक बार फिर से बैंकों के लिए होल्डिंग कंपनी के विवादास्पद मुद्दे को पर विचार करने का फैसला किया है।
आरबीआई ने यह फैसला विदेशी बैंकों के भारत में परिचालन के संभावित रास्तों की समीक्षा के दौरान लिया है। गौरतलब है कि करीब दो साल पहले आईसीआईसीआई बैंक ने इस संबंध में एक प्रस्ताव दिया था जिसकेबाद रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर वाई वी रेड्डी ने दिशानिर्देशों का एक प्रारूप तैयार किया था।
रिजर्व बैंक इस दिशानिर्देशों पर एक बार फिर से विचार करेगी। आईसीआईसीआई बैंक ने जून 2007 में विदेशी निवेशकों के पक्ष में अपनी होल्डिंग कंपनी आईसीआईसीआई फाइनैंशियल सर्विसेज में 24 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने का प्रस्ताव दिया था।
इसके बदले कंपनी को आईसीआईसीआई बैंक के बीमा और म्युचुअल फंड कारोबार में हिस्सेदारी रखने का मौका मिलता। उस समय आरबीआई ने कहा था कि इसने इंटरमिडिएट होल्डिंग कंपनी संरचना को अलग रखने को ज्यादा तरजीह दी है जिसके तहत बैंक का नियंत्रण किसी होल्डिंग कंपनी पर रहता है जो गैर-बैंकिंग कारोबार का संचालन करता है क्योंकि इससे नियमन संबंधी समस्या खडी हो सकती है।
विदेशी बैंकों को लेकर तैयार किए गए रोडमैप की अप्रैल 2009 से विदेशी बैंकों की उपस्थिति को स्पष्ट किए जाने को लेकर समीक्षाधीन है। इसके तहत पूर्ण स्वमित्व वाली इकाइयों (डब्ल्यूओएस) को पूरी तरह से राष्ट्रीय दर्जा दिए जाने के विदेशी बैंकों के प्रदर्शन और उनकी उपस्थिति की समीक्षा की जाएगी।
इसके अलावा फंड जुटाने के लिए इन इकाईयों का भारतीय बाजार में सूचीबध्द करने के लिए चुकता पूंजी के 26 फीसदी हिस्से की बिक्री की भी समीक्षा की जाएगी। हिस्सेदारी की बिक्री इनिशियल पब्लिक ऑफर केजरिए किया जा सकता है।
इस समय विदेशी बैंकों को केवल कमजोर इकाईयों के अधिग्रहण की ही छूट है, हालांकि वे मौजूदा बैंकों में 74 फीसदी तक की हिस्सेदारी रख सकते हैं।