खुदरा कर्ज के पुनर्गठन, खासकर महामारी से बहुत ज्यादा प्रभावित उपभोक्ताओं के पुनर्गठन ढांचा बनाने और उसके आकलन के लिए बैंक डिजिटल साधनों व व्यवस्था का इस्तेमाल कर रहे हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्जदाताओं ने इसके लिए रीजनल व जोनल कार्यालयों में टीम बनाई है, जिससे शाखा के स्तर पर कर्ज के पुनर्गठन की सुविधा दी जा सके। बैंकरों का कहना है कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब खुदरा कर्ज के पुनर्गठन का काम इस पैमाने पर किया जा रहा है, क्योंकि इसके पहले का ऐसा कोई उदाहरण नहीं है।
इंडिया रेटिंग के अनुमान के मुताबिक करीब 30,000 करोड़ रुपये का खुदरा कर्ज, जिसमें आवास, व्यक्तिगत, ऑटो और क्रेडिट कार्ड ऋण शामिल है, पुनर्गठन के दायरे में आ सकता है।
रेटिंग एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि 8.4 लाख रुपये बैंक कर्ज रिजर्व बैंक आफ इंडिया के ढांचे के तहत पुनर्गठन में आ सकता है, जिसमें से 6.3 लाख करोड़ रुपये कॉर्पोरेट कर्ज होगा। शेष कर्ज कृषि, खुदरा और एमएसएमई क्षेत्र का होगा।
बैंकरों का कहना है कि पुनर्गठन का विकल्प अपनाने वालों की संख्या बहुत ज्यादा हो सकती है, हालांकि प्रति कर्जदार उधारी की मात्रा कम हो सकती है। भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों ने कहा कि बैंक ऑटो, हाउसिंग और व्यक्तिगत ऋण के मामले में तकनीक का इस्तेमाल करेगा। इस पर काम सिस्टम संचालित होगा। व्यक्गित/उपभोक्ता ऋण का पुनर्गठन आसान होगा क्योंकि इसमें मुनाफा और कॉर्पोरेट ऋण के लिए कार्यशील पूंजी के आकलन की जरूरत नहीं होगी।
केवल आवास ऋण के मामले में स्टेट बैंक कुछ मॉरेटोरियम (कर्ज की समयावधि बढ़ाने) की सुविधा देगा, अगर इस मामले में दबाव है। कर्जदाता कर्ज की राशि, बकाया, कर्ज व मूल्य का अनुपात, किस्त व पुनर्भुगतान की रूपरेखा पर विचार करेंगे।
फेडरल बैंक की कार्यकारी निदेशक शालिनी वैरियर ने कहा कि खुदरा ग्राहकों के मामले में पुनर्गठन सामान्यतया नौकरी जाने की स्थिति या कारोबार में भारी गिरावट की स्थिति में होगा। उन्होंने कहा कि विश्लेषणों के मजबूत समर्थन के साथ फेडरल बैंक सेग्मेंट (वेतनभोगी या स्वरोजगार) के आधार पर स्थिति के मुताबिक अलग तरीका अपनाएगा।
बैंक आफ इंडिया के एक अधिकारी ने भी कहा कि बैंक ने 300 लोगों की एक टीम बनाई है, जिसमें 6-7 जनरल मैनेजर हैं, जो कर्ज के पुनर्गठन के प्रबंधन का काम करेगी।
