सिंगापुर के डीबीएस बैंक ने अपने परिचालन को तार्किक बनाने की कवायद में अगले 2-3 साल में भारत में अपनी 600 शाखाओं का नेटवर्क कम करने की योजना बनाई है। कैलेंडर साल 2020 की चौथी तिमाही में संकट में फंसे निजी क्षेत्र के लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) के विलय के बाद उसे 560 से ज्यादा शाखाएं मिली थीं।
बैंक की भारत की इकाई डीबीएस बैंक इंडिया के एलवीबी के साथ विलय के बाद दिसंबर 2020 के अंत तक भारतीय परिचालन का संयुक्त जमा 9 अरब एसजीडी है और शुद्ध अग्रिम 5.6 अरब रहा है।
2020 के परिणामों के बाद मीडिया से बातचीत में बैंक के मुख्य कार्याधिकारी पीयूष गुप्ता ने कहा, ‘क्या हमें 600 शाखाओं की जरूरत है? मुझे नहीं लगता।’ इसलिए बैंक अगले 2-3 साल में निस्संदेह इसे तार्किक बनाएगा। बहरहाल बैंक ने संकेत नहीं दिए कि कितनी शाखाओं को कम किया जाएगा।
डीबीएस बैंक इंडिया के साथ विलय के पहले एलवीबी के तत्कालीन डायरेक्टर शक्ति सिन्हा ने कहा 563 शाखा का नेटवर्क बहुत बड़ा है और इनमें से 200 शाखाएं घाटे में चल रही हैं और करीब 100 शाखाएं अव्यावहारिक हैं। सिन्हा ने कहा था कि इन दिनों डिजिटल बैंकिंग के दौर में पूरी संभावना है कि डीबीएस बैंक इंडिया एलवीबी की शाखाओं के नेटवर्क को तार्किक बनाए।
बैंक ने कहा है कि खासकर दक्षिण भारत के 5 राज्यों के शहरों में उसकी उल्लेखनीय मौजूदगी होगी। यह डिजिटल रणनीति के तहत बहुत लाभदायक होने जा रहा है। इसने प्राय: फिजिटल शब्द का इस्तेमाल किया है, जो भौतिक नेटवर्क के साथ मजबूत डिजिटल मौजूदगी का मिश्रण है।
एकीकृत परिचालन के लाभ के बारे में बैंक को उम्मीद है कि कम जमा लागत और बेहतर मुनाफे के साथ उसके भारतीय परिचालन के शुद्ध ब्याज मुनाफे (एनआईएम) में सुधार होगा। गुप्ता ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि खुदरा आधार के कारण वित्तपोषण लागत में सुधार होने और गोल्ड और एसएमई ऋण से मुनाफा होने के कारण एनआईएम में सुधार होगा।