विदेशी में कारोबार करनेवाले भारतीय बैंकों को अब एक और अतिरिक्त दबाब को झेलना पड़ेगा। यह दबाव लिक्विडिटी प्रीमियम केरूप में होगा जो नए के्रडिट पर अंतर बैंक परिचालनों के लिए विदेशी बैंकों द्वारा लगया जाएगा। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जबकि पूरे विश्व तरलता की जबरदस्त कमी का सामना कर रहा है और इसमें अभी तक सुधार केकोई संकेत नहीं मिले हैं। उल्लेखनीय है कि लंदन इंटर–बैंक ऑफर्ड रेट(लाइबोर)6.88 प्रतिशत केअपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। लिक्विडीटी प्रीमियम शुल्क केकारण विदेशों में भारतीय बैंकों के कार्यालय पर छोटे अवधि के क्रेडिट न जारी करने का दबाव आ गया है या फिर इस शुल्क की भरपाई करने के लिए बैंक इसका भार अपने ग्राहकों पर थोप रही है।
लाइबोर बैंकाें द्वारा विदेशी मुद्रा के्र डिट जारी करने वाले बैंकों केलिए अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क ब्याज दर है। एक बैंकर ने क हा कि वैश्विक बाजारों में करोबारी अनिश्चितता के बढ़ने से विदेशी बैंकों ने सतही तौर पर लाइबोर को बेंचमार्क के तौर पर इस्तेमाल करना बंद कर दिया है। इस बाबत एक सार्वजिनक क्षेत्र के बैंक केअधिकारी ने कहा कि मौजूदा समय में लीबोर ने बेंचमार्क दर केरूप में अपने महत्व को खो दिया है और विदेशी बैंक स्पष्ट रुप से इस बात को कहते नजर आ रहे हैं।
बैंक अपने ग्राहकों के लिए लाइबोर से ही जुड़ी दर पर पैसा जुटाते हैं और इसके बाद इस हेजिंग शुल्क भी जोड़ा जाता है। लाइबोर में इजाफे केसाथ ही खर्चे में भी भारी बढ़ोतरी हुई हैऔर अब प्रीमीयम शुल्क ने इसे और ज्यादा खर्चीला बना दिया है। एक मध्यम आकार की सार्वजिनक क्षेत्र के बैेंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा कि विदेशी बैंक तरलता की स्थिति को देखते कीमतों को तय कर रहें हैं। अतः बेहतर रेटिंग और रिकॉर्ड वाले बैंक को तीन महीने वाले फंड पर लीबोर से 300-400 आधार अंक अधिक के शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। वे भारतीय बैंक जो निर्यातकों को पैंकिंग क्र्रेडिट मुहैया कराते हैं उनकेलिए भी खर्च बहुत बढ़ गया है। एक बैंकर का कहना है कि लाइबोर में आए अभूतपूर्व अस्थिरता के कारण बहुत कम इंटर–बैंकिंग परिचालन
हो रहा है।