भारतीय रिजर्व बैंक के नवनियुक्त गवर्नर डी सुब्बाराव के लिए जहां महंगाई को नियंत्रित करना एक कठिन चुनौती होगी, वहीं बैंकर नए फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट के प्रवेश की अनुमति और फॉरेन एक्सचेंज के प्रबंधन को लेकर नए प्रारूप की संभावना व्यक्त कर रहें हैं।
अगले सात महीनों के लिए सुब्बाराव के लिए कार्य का प्रारूप तय कर दिया गया है। उन्हें न सिर्फ रिजर्व बैंक के कामकाज के बारे में ही नहीं बल्कि अर्धवार्षिक मौद्रिक नीति की समीक्षा भी करनी है।
भविष्य की चुनौतियों को लेकर इंडियन बैंक एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के. रामकृष्णा ने कहा कि विकास को प्रभावित किए बिना महंगाई पर लगाम लगाना एक कठिन चुनौती है और बैंकों के लिए विकास का जारी रहना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे बैंक अपने विस्तार और मुनाफे में बढ़ोतरी करने में सक्षम हो पाते हैं।
इसी तरह आईसीआईसीआई बैंक की संयुक्त प्रबंध निदेशक चंदा कोचर ने कहा कि नियामक का कार्य चुनौतियों भरा होता है और इस विपरीत परिस्थितियों में मौजूदा विकास की रफ्तार और आर्थिक परिदृश्य का प्रबंधन कर पाना एक चुनौती है।
इन बातों के अलावा बैंकर नए गवर्नर से बैंकिंग सेक्टर को और अधिक प्रतिस्पर्धा के लिए खोलने संबंधी बयान जारी करने की अपेक्षा कर रहें है। यह बात इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाती है कि इन बातों की चर्चा जोरों पर है कि रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी बैंकों को मजबूत भारतीय बैंकों के अधिग्रहण की इजाजत देने की संभावना बहुत ही कम है।
निवर्तमान गवर्नर वाईवी रेड्डी के कार्यकाल में रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर वित्त मंत्रालय के किसी भी हस्तक्षेप का विरोध किया था और चर्चा यह है कि वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट के कारण यह चुनौती और कठिन हो गई है। इसके अलावा सरकार का राजकोषीय और चालू खाते में होने वाला घाटा थमने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है।