विधानसभा चुनाव

विधानसभा चुनावों में जीती पार्टियों के लिए ज्यादा MSP का वादा बनेगा चुनौती

केंद्र सरकार ने एक आ​धिकारिक पत्र जारी कर राज्यों को एमएसपी पर बोनस घो​​षित करने के प्रति चेताया था।

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संजीब मुखर्जी   
Last Updated- December 04, 2023 | 10:26 PM IST

विधानसभा चुनावों में जीत के उत्साह पर सवार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए किसानों को गेहूं और धान पर अ​धिक एमएसपी (न्यू्नतम सम​र्थन मूल्य) देने का वादा पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। तेलंगाना में कांग्रेस भी इसी तरह की मु​श्किल से दो-चार होगी। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि गेहूं और धान के केंद्रीय पूल में चुनाव वाले चार में से तीन राज्यों मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की हिस्सेदारी हर साल अच्छी खासी रहती है। राजस्थान भी गेहूं का बड़ा उत्पादक है, लेकिन केंद्रीय पूल में उसकी हिस्सेदारी अन्य तीन के मुकाबले काफी कम है।

मध्य प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा ने मौजूदा से 18.68 फीसदी अ​धिक एमएसपी देने का वादा किया है। इसमें बोनस शामिल होने की संभावना है, क्योंकि राज्य अलग से एमएसपी घो​षित नहीं कर सकते। हां, वे इस पर बोनस जरूर दे सकते हैं।

इसी प्रकार पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भाजपा ने केंद्र द्वारा 2023-24 के लिए कॉमन ग्रेड धान पर तय की गई एमएसपी से 42 फीसदी अ​धिक के भुगतान का वादा किया है। तेलंगाना में कांग्रेस ने एमएसपी पर प्रति ​​क्विंटल 500 रुपये बोनस देने का ऐलान किया है। इससे मौजूदा एमएसपी के मुकाबले खरीद मूल्य लगभग 23 प्रतिशत अ​धिक पहुंच जाएगा।

केंद्र सरकार ने एक आ​धिकारिक पत्र जारी कर राज्यों को एमएसपी पर बोनस घो​​षित करने के प्रति चेताया था। पत्र में कहा गया था कि यदि अधिशेष विकेंद्रीकृत खरीद (डीसीपी) राज्य एमएसपी पर बोनस की घोषणा करता है, तो केंद्र सरकार केंद्रीय पूल के लिए अपनी खरीद को केवल राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रबंधन के लिए आवश्यक सीमा तक सीमित कर देगा। यदि गैर डीसीपी राज्य एमएसपी पर बोनस घो​षित करता है तो केंद्र वहां केंद्रीय पूल के लिए गेहूं एवं धान की खरीद में हिस्सा नहीं लेगा।

इसके बाद केंद्र सरकार ने अपनी खरीद एजेंसियों के माध्यम से डीसीपी राज्यों के साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली का बेहतर प्रबंधन करने के लिए जरूरत के हिसाब से ही खरीद को सीमित करने के लिए कई समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

कृ​षि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने 2023 के लिए जारी अपनी खरीफ रिपोर्ट में भी ऐसे राज्यों से खरीद को सीमित करने की वकालत की थी जो एमएसपी पर बोनस देने या खरीद पर अतिरिक्त उपकर अथवा सरचार्ज का ऐलान करते हैं। केंद्र की ओर से यह पत्र इसलिए जारी किया गया था ताकि राज्य एमएसपी पर मनमाने ढंग से बोनस घो​​षित न करें, क्योंकि इससे बेतहाशा उत्पादन और खरीद दोनों को ही बढ़ावा मिलता है।

केंद्रीय एजेंसियां भंडारण के प्रबंधन की चुनौती से जूझ रही हैं, क्योंकि यह पीडीएस योजना संचालन की आवश्यकता से बहुत अ​धिक है। यही नहीं, इससे अनाज के भंडारण और परिवहन की लागत भी बढ़ जाती है, जिसका बोझ सीधे तौर पर राष्ट्रीय खजाने पर पड़ता है।

यदि राज्य राजनीतिक दलों द्वारा घो​षित एमएसपी के अनुसार फसल की कीमतें देते हैं, तो उन्हें केंद्र सरकार के नियमों का उल्लंघन करना पड़ेगा अथवा एमएसपी दर से अ​धिक पर खरीदे गए अ​धिशेष अनाज का पूरा खर्च वहन करना होगा। अथवा, केंद्र सरकार को राज्यों द्वारा घो​षित एमएसपी को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना होगा, ताकि उनका वित्तीय बोझ कम किया जा सके।

इस ​हालत में बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। पहली तो यही कि राष्ट्रीय स्तर पर और यहां तक कि प्रमुख उत्पादक राज्यों में एमएसपी में तेज वृद्धि से मुद्रास्फीति का प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही धान जैसी फसलों के मामले में विश्व बाजार में भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को नुकसान पहुंच सकता है।

असामान्य रूप से धान की उच्च कीमतें पूर्ण निर्यात की इजाजत दिए जाने की स्थिति में भारतीय चावल की कीमतों को विश्व बाजार से अ​धिक कर सकती हैं।

गेहूं और धान पर यदि अ​धिक प्रोत्साह​न रा​शि दी गई तो इसका सीधा प्रभाव फसल विवि​धीकरण पर पड़ेगा और वह बुरी तरह नाकाम हो सकता है। कुछ व्यापारियों का कहना है कि यदि धान की खरीद कीमत 31-32 रुपये प्रति किलो रही, तो इसका मतलब है कि घरेलू बाजार में यह 45 से 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाएगा।

इस चुनौती से पार पाने का एक वही रास्ता है, जो 2018 में ​शिवराज सिंह चौहान ने अपनाया था। उस समय उन्होंने मुख्यमंत्री किसान समृ​द्धि योजना का ऐलान किया ​था।

First Published : December 4, 2023 | 10:26 PM IST