जम्मू-कश्मीर में हुए विधान सभा चुनाव में नैशनल कॉन्फ्रैंस (एनसी) एवं कांग्रेस गठबंधन को 49 सीटें हासिल हुई हैं। वहां पिछले एक दशक में पहला विधान सभा चुनाव हुआ था। इन दोनों दलों ने अपने चुनाव घोषणापत्र में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए निःशुल्क बिजली एवं गैस, महिलाओं के लिए निःशुल्क यात्रा करने की सुविधा, पेंशनधारकों के लिए अधिक स्वास्थ्य भत्ते और किसानों को समर्थन देने जैसे बड़े वादे किए गए थे।
मगर इन भारी भरकम वादों को पूरा करने के लिए रकम का इंतजाम करना एनसी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के लिए आसान नहीं होगा। इसका कारण यह है कि जम्मू-कश्मीर में आंतरिक स्रोतों से अधिक राजस्व जुटाने की गुंजाइश बहुत सीमित है।
इस केंद्र शासित राज्य के कुल राजस्व में केवल 21.1 प्रतिशत हिस्सा ही आंतरिक स्रोतों से आता है। इसकी तुलना में अन्य राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश लगभग कुल राजस्व का आधा हिस्सा अपने आतंरिक संसाधनों से अर्जित करते हैं। जम्मू-कश्मीर कुल राजस्व के एक बड़े हिस्से यानी 68 प्रतिशत के लिए केंद्र से मिलने वाले अनुदान पर निर्भर करता है, जिससे इसके लिए वित्तीय हालात और जटिल हो जाते हैं।
वित्त वर्ष 2025 में प्राप्त राजस्व में 54 प्रतिशत से अधिक हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान सहित पूर्व निर्धारित व्यय पर खर्च होने का अनुमान है। इन मदों पर होने वाले व्यय के बाद विकास कार्यों पर खर्च होने के लिए काफी कम रकम बच जाती है।
जम्मू-कश्मीर अपने वित्तीय संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा पूंजीगत परिसंपत्तियां तैयार करने पर खर्च कर रहा है। वित्त वर्ष 2019-20 और 2021-22 के बीच वास्तविक पूंजीगत व्यय जीएसडीपी का औसतन 7.6 प्रतिशत रहा है। यह देश के दूसरे राज्यों के 3.9 प्रतिशत औसत से काफी अधिक है। अनुमानों के अनुसार जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय लगभग दोगुना होकर वित्त वर्ष 2025 में 14 प्रतिशत तक पहुंच सकता है, जो वित्त वर्ष 2020 में 7.4 प्रतिशत था।
दिलचस्प बात है कि जम्मू-कश्मीर में राजस्व अधिशेष की स्थिति है। केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद दो वर्षों की अवधि को छोड़कर जम्मू-कश्मीर में राजस्व अधिशेष की स्थिति थी।
पिछले कई वर्षों से इसका ऋण-सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) अनुपात 49-55 प्रतिशत रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 (बजट अनुमान) में राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था। वास्तविक आंकड़े अक्सर बजट अनुमान से काफी अधिक रहते हैं। मगर राजकोषीय घाटा कम रहने के बावजूद जम्मू-कश्मीर पर कर्ज बोझ काफी अधिक है।
जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) में बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई, जो पिछसे साल 4.4 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर 3.2 प्रतिशत ही है।