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किसान आंदोलन की आड़ ले बीरेंद्र सिंह और ब्रिजेंद्र भाजपा छोड़ कांग्रेस में हुए शामिल

Birendra Singh: बीरेंद्र सिंह के बेटे ब्रिजेंद्र सिविल सेवा छोड़कर राजनीति में शामिल हुए थे। पिछले लोक सभा में उन्होंने हिसार से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता था।

Last Updated- April 09, 2024 | 11:37 PM IST
Under the cover of farmers' movement, Birendra Singh and Brijendra left BJP and joined Congress किसान आंदोलन की आड़ ले बीरेंद्र सिंह और ब्रिजेंद्र भाजपा छोड़ कांग्रेस में हुए शामिल

पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और पत्नी प्रेम लता कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। एक दिन पहले ही दोनों ने भाजपा छोड़ने का ऐलान किया था। लगभग एक महीने पहले बीरेंद्र के बेटे ब्रिजेंद्र सिंह ने भी भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। प्रेम लता भाजपा से विधायक रही हैं।

सिंह किसान नेता सर छोटूराम के धेवते हैं। वह राजग सरकार में केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। उन्होंने लगभग 42 साल कांग्रेस में गुजारने के बाद 2014 में भाजपा का रुख कर लिया था। सिंह परिवार को किसानों का हितैषी समझा जाता है और बाप-बेटे दोनों के भाजपा से इस्तीफे को किसान आंदोलन से जोड़ कर देखा जा रहा है।

बीरेंद्र सिंह ने भाजपा से इस्तीफा देते हुए सोमवार को कहा था कि उन्होंने पार्टी के मंच पर किसानों से जुड़े मुद्दे उठाए और उन्हें हल कराने की कोशिशें भी की। उन्होंने कहा, ‘किसानों से जुड़े मेरे सुझावों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।’ तीन कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े हुए किसान आंदोलन को भी सिंह और उनके परिवार ने खुला समर्थन दिया था। प्रेम लता ने भी अपने इस्तीफे की वजह किसान आंदोलन को ही बताया है।

प्रेम लता ने कहा, ‘जब वह भाजपा में शामिल हुई थी तो सोचा था कि सारी उम्र इसी पार्टी में रहूंगी, लेकिन किसान आंदोलन के दौरान वह किसानों के पक्ष में खड़ी हो गईं। मेरा मानना है कि किसानों की समस्या का समाधान आज भी पूरी तरह नहीं हो पाया है।’

बीरेंद्र सिंह के बेटे ब्रिजेंद्र सिविल सेवा छोड़कर राजनीति में शामिल हुए थे। पिछले लोक सभा में उन्होंने हिसार से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता था। उन्होंने भी भाजपा से अपने इस्तीफे वजह राजनीतिक वजहों के साथ-साथ किसान आंदोलन को बताया है।

एक राजनीतिक विश्लेषक ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘इन इस्तीफों से एक संदेश तो जाता दिख रहा है कि भाजपा में अभी भी किसान आंदोलन को लेकर अंदरखाने नाराजगी है। केंद्रीय नेतृत्व और राज्य के नेताओं के बीच गहरी खाई बन गई थी।’

एक और राजनीतिक विश्लेषक महावीर जगलान कहते हैं कि केंद्र सरकार ने जिस प्रकार किसान आंदोलन को लेकर रवैया अख्तियार किया, उससे राज्य के वरिष्ठ नेता नाखुश थे। वह कहते हैं, ‘बीरेंद्र सिंह को छोडि़ए, तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की राय को भी तवज्जो नहीं दी गई।’

पिछले महीने ही पूर्व विधायक रामपाल माजरा इंडियन नैशनल लोक दल में शामिल हो गए और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। माजरा 2019 में भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले 2020 में जुलाना से भाजपा विधायक परमिंदर धुल और उनके बेटे रविंदर धुल कृषि कानूनों की वापसी को मुद्दा बनाकर भाजपा का साथ छोड़ दिया था।

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज पर लोकनीति के सह-निदेशक संजय कुमार ने कहा कि बीरेंद्र और उनके बेटे के इस्तीफे की वजह किसानों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं, क्योंकि उनका असली वोट बैंक तो किसान ही हैं। उन्होंने कहा, ‘यह विचारधारा का मामला नहीं है, लेकिन उन्हें लगने लगा था कि यदि भाजपा से जुड़े रहे तो उनका अपना वोट बैंक उनसे दूर जा सकता है।’

हालांकि स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स के सह-संस्थापक अभिमन्यु भाटिया इस विचार से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि पिता-पुत्र ने इसलिए भाजपा छोड़ दी, क्योंकि दोनों को ही लगता था कि आने वाले लोक सभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिलेगा। यदि उन्हें वास्तव में किसानों की चिंता होती तो वे कई साल पहले पार्टी से किनारा कर चुके होते। जगलान कहते हैं कि बीरेंद्र सिंह के आने से चुनाव के दौरान राज्य में कांग्रेस की स्थिति मजबूत होने की संभावना है।

First Published - April 9, 2024 | 11:24 PM IST

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