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2023 के चुनाव की तैयारी में कमल नाथ!

जब तक कमल नाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन तक पहुंच आसान नहीं थी। परंतु अब उन्होंने अपना सामाजिक व्यवहार भी बदल लिया है।

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- August 24, 2023 | 5:40 PM IST

मार्च 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत के चलते मध्य प्रदेश मेंं कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का पतन हुआ तो कई लोगों को लगा कि यह शायद उनके करियर का अंत है। लेकिन मध्य प्रदेश छोडऩे के बजाय कमल नाथ ने वहां बने रहने का फैसला किया। इतना ही नहीं अपने दशकों लंबे करियर में पहली बार उन्होंने जमीनी राजनीति करने का निर्णय किया।
कमल नाथ को जानने वाले लोग इस बात से चकित थे। उस वक्त तक उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में जाना जाता था जो कॉर्पोरेट संस्कृति में अधिक यकीन रखता था। वह कई अवसरों पर यह कह चुके थे कि वह विकास में यकीन करते हैं न कि तमाशे में।

भाजपा के नक्शे कदम पर?
जब तक कमल नाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन तक पहुंच आसान नहीं थी। परंतु अब उन्होंने अपना सामाजिक व्यवहार भी बदल लिया है। वह ‘यज्ञ’ और ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ कर रहे हैं। भोपाल स्थित कांग्रेस मुख्यालय में भी उन्होंने ‘सुंदर कांड’ का पाठ रखा। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में ‘भूमि पूजन’ कर रहे थे तब कमल नाथ ने खुलकर कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के ताले राजीव गांधी ने खुलवाये थे। उन्होंने कृष्ण जन्माष्टमी भी मनाई। जाहिर है यह सब उन्होंने पहली बार किया।

राजनीतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित कहते हैं कि कांग्रेस को यह समझना होगा कि वह भाजपा के कट्टर हिंदुत्व को इस नरम हिंदुत्व की मदद से नहीं पराजित कर सकती है। उनका मानना है कि कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के रहते प्रदेश में कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है।

दूसरी पीढ़ी का नेतृत्व

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास दूसरी पीढ़ी के करिश्माई नेताओं का अभाव है। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद माना जा रहा था कि कमल नाथ और दिग्विजय सिंह अपने बेटों नकुल नाथ और जयवद्र्धन सिंह को आगे बढ़ाएंगे जो क्रमश सांसद और विधायक हैं। लेकिन दीक्षित कहते हैं कि दोनों बेटे अपने पिताओं की चमक के साये में ही पनप रहे हैं उनकी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं है। दीक्षित यह भी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और ऐसे में पार्टी को वंशवाद की संस्कृति के बारे में दोबारा सोचना होगा।

जहां तक दूसरी पीढ़ी के नेताओं की बात है तो जीतू पटवारी और आदिवासी नेता उमंग सिंघार की काफी अच्छी छवि है और वे मौका मिलने पर खुद को साबित कर सकते हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘कमल नाथ के साथ समस्या यह है कि उन्हें विपक्ष में रहने का ज्यादा अनुभव नहीं है। वह कभी कार्यकर्ताओं से जुड़ाव के मामले में बहुत अच्छे नहीं रहे। अब अगर उनको लग रहा है कि भाजपा की नकल करने से वह जनता में लोकप्रियता हासिल कर लेंगे तो वह गलत सोचते हैं।’

मप्र छोड़ने से इनकार

कमल नाथ के एक करीबी सहयोगी कहते हैं कि प्रदेश में सरकार गिरने के बाद उनकेसामने यह प्रस्ताव रखा गया था कि वह केंद्र में जाकर कोई अहम भूमिका निभाएं। परंतु उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जब कमल नाथ सांसद थे तब उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति की। वह नौ बार छिंदवाड़ा से सांसद रहे लेकिन राज्य की राजनीति में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई।

उन्होंने कभी अपना कोई गुट बनाने का प्रयास नहीं किया। 2018 के विधानसभा चुनावों से महज छह महीने पहले उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। सरकार गिरने के बाद उनके पास दो विकल्प थे: वापस राष्ट्रीय राजनीति में लौटना या प्रदेश में बने रहना। कांग्रेस गुटबाजी से जूझ रही थी। नेता प्रतिपक्ष के पद के भी कई दावेदार थे। कमल नाथ ने दोनों पद अपने पास रखने का तय किया। साफ जाहिर है कि वह 2023 के विधानसभा चुनावों की तैयारी में लगे हैं।

पार्टी के अन्य नेताओं के साथ भी उनके मतभेद जाहिर रहे हैं। पहले राज्य सरकार के खिलाफ एक ‘धरने’ को लेकर उनके और दिग्विजय सिंह के बीच सार्वजनिक मतभेद हुए। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के साथ भी उनके रिश्ते अच्छे नहीं। कुछ दिन पहले जीतू पटवारी के साथ उनके मतभेद सामने आ गये थे जब पटवारी द्वारा राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार को कमल नाथ ने अनुचित बताया था।  स्वर्गीय अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह के साथ भी उनके रिश्ते अच्छे नहीं हैं।

कमल नाथ का संदेश एकदम साफ है: मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिना उनकी मंजूरी के कुछ भी नहीं हो सकता।

First Published : March 17, 2022 | 11:25 PM IST