देश के पश्चिमी क्षेत्र की कंपनियां स्टॉक मार्केट से पूरा का पूरा पैसा जुटा रही हैं जिसके परिणामस्वरूप महामारी के फैलने के बाद यहां पैसे के जमाव में काफी वृद्घि हुई है।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की मासिक बुलेटिन से मिले आंकड़ों के मुताबिक कंपनियों ने 1 अप्रैल को शुरू हुए वित्त वर्ष से सार्वजनिक और राइट इश्यू के जरिये 75,159 करोड़ रुपये जुटाया है।
2020-21 में 19 निर्गम हैं जबकि इससे पिछले वर्ष 39 थे। सेबी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस दौरान जुटाई गई समूची रकम निजी क्षेत्र के पास है।
हालांकि, कोई भी पैसा मध्य क्षेत्र से नहीं जुटाया गया है। पूरब की कंपनियों के पास महज 0.11 फीसदी हिस्सा है जबकि उत्तर क्षेत्र की हिस्सेदारी 0.42 फीसदी और दक्षिण क्षेत्र की हिस्सेदारी 2.02 फीसदी है।
शेष 97.46 फीसदी रकम पश्चिमी क्षेत्र से आई है। यह रकम पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अधिक है। इसके बाद, कंपनियों ने 59,453 करोड़ रुपये जुटाया है और पश्चिम की हिस्सेदारी 50.46 फीसदी है। उत्तर की हिस्सेदारी 45.04 फीसदी, दक्षिण की हिस्सेदारी 4.5 फीसदी और मध्य तथा पूर्वी क्षेत्रों की हिस्सेदारी शून्य रही।
कई पूर्वी और मध्य भारत के राज्यों की प्रति व्यक्ति आय और वृद्घि कम है। इनके कमतर प्रदर्शन का अन्य कारण वित्तीय सेवाओं और विकास तक पहुंच से जुड़ा हो सकता है जिसके बारे में अक्टूबर 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक की बुलेटिन में ‘ड्राइवर्स ऑफ क्रेडिट पेनिट्रेशन इन ईस्टर्न इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित आलेख में चर्चा की गई थी।
कोलकाता स्थित आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के लेखकों राज राजेश और अन्वेषा दास ने कहा, ‘वित्तीय सेवाओं खासकर ऋण तक पहुंच आर्थिक समृद्घि का एक स्थापित सूचक है…दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से ऋण का मजबूत प्रसार है जहां मार्च 2018 के अंत तक ऋण जमा (सीडी) अनुपात क्रमश: 93.2 फीसदी और 90 फीसदी था। संयोग से यहां प्रति व्यक्ति आय उच्च है और औद्योगिकरण का स्तर यहां पर तुलनात्मक रूप से बेहतर है। पूर्वी क्षेत्र…विशेष तौर पर दक्षिण पूर्व जहां का सीडी अनुपात क्रमश: 44.1 फीसदी और 41 फीसदी है स्पष्ट रूप से पीछे चल रहे हैं और जाहिर तौर पर यहां प्रति व्यक्ति आय कम और
यहां का औद्योगिक आधार कमजोर है।’ आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज में मुख्य निवेश अधिकारी पीयूष गर्ग ने कहा कि हाल के दिनों में बड़ी संख्या में वित्तीय संस्थाओं ने पूंजी जुटाया है। इन्होंने ऐसा महामारी के कारण उपजी सुस्ती से किसी तरह के दबाव पडऩे की आशंका के विरुद्घ बफर तैयार करने के लिए किया है। इनमें से कई संस्थाओं का मुख्यालय महाराष्ट्र या गुजरात में है। उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि इसी कारण से एक छोर पर इसके दायरे में विस्तार हुआ है।’
बुटीक इन्वेस्टमेंट बैंक रीप्पलवेव इक्विटी के निदेशक मेहुल सावला ने कहा कि पैसे के क्षेत्रीय जमाव से देश के उस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधि के जमावड़े का भी संकेत मिलता है। देश के बहुत से हिस्सों में अभी भी एक अर्थपूर्ण विनिर्माण आधार और ऐसे बड़े कॉर्पोरेट समूह की कमी है जो इक्विटी बाजारों का लाभ उठा सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘औद्योगिकीकरण का स्तर तुलनात्मक रूप से कम है।’
उन्होंने कहा स्टॉक मार्केट में तरलता की चुनौतियां भी हैं। जब विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज हुआ करते थे तब अक्सर वहां ट्रेडिंग की स्थिति कमजोर रहती थी।
राष्ट्रीय एक्सचेंजों के बनने से सारी तरलता एक जगह पर जमा हो गई है। ऐसे होने से कंपनियों के लिए पूंजी जुटाना आसान हो गया है। उनके मुताबिक निवेशक भी बिना किसी मुश्किल के शेयर खरीद और बेच सकते हैं। सावला ने कहा कि तकनीक के इस्तेमाल से निवेशकों और कंपनियों को राष्ट्रीय स्तर पर समान रूप से स्टॉक मार्केट का लाभ उठाने में मदद मिलती है। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज और बीएसई दोनों ही मुंबई में स्थित हैं।
