facebookmetapixel
कैसे ₹1.8 करोड़ के निवेश पर भारी पड़ी ₹42 लाख की SIP? हर निवेशक के लिए जरूरी सबकCloudflare में आई तकनीकी खामी, ChatGPT, X समेत कई जरूरी सेवाएं प्रभावित; लाखों यूजर्स परेशान10k की SIP ने 1 लाख की SIP से ज्यादा पैसा बनाया- कैसे? पूरी कहानीElon Musk का X ठप्प! Cloudflare और ChatGPT में भी आई तकनीकी खराबी, यूजर्स परेशान‘AI पर कभी आंख मूंदकर भरोसा न करें’, गूगल के CEO सुंदर पिचाई की चेतावनी, कहा: फूट सकता है AI ‘बबल’Baroda BNP Paribas की पैसा डबल करने वाली स्कीम, 5 साल में दिया 22% रिटर्न; AUM ₹1,500 करोड़ के पारक्या इंश्योरेंस लेने के बाद होने वाली बीमारी क्लेम या रिन्यूअल को प्रभावित करती है? आसान भाषा में समझेंक्या टेक कंपनियां गलत दांव लगा रही हैं? Meta AI के अगुआ यान लेकन ने ‘LLM’ की रेस को बताया गलत41% अपसाइड के लिए Construction Stock पर खरीदारी की सलाह, ₹45 से नीचे कर रहा ट्रेडPM Kisan 21st installment: कब आएगा किसानों के खातें में पैसा? चेक करें नया अपडेट

यूक्रेन संकट से माल भाड़ा और बढ़ेगा

Last Updated- December 11, 2022 | 9:01 PM IST

एक साल से भी ज्यादा समय से मालभाड़ा ऊंचा बना हुआ है और कंटेनरों की किल्लत भी परेशान कर रही है। उस पर यूक्रेन के खिलाफ रूस की कार्रवाई ने देसी निर्यातकों में घबराहट और बढ़ा दी है। पिछले साल भारत के विभिन्न बंदरगाहों पर मालभाड़ा 8 से 10 गुना बढ़ा है और पिछले एक हफ्ते के दौरान इसमें ओर इजाफा हुआ है।
जहाजरानी क्षेत्र की कंपनियों के मुताबिक 4,200 टीईयू (20 फुट लंबी यूनिट) की अनुमानित लागत आठ महीने पहले 8,000 डॉलर प्रतिदिन थी, जो अब बढ़कर 70,000 डॉलर हो गई है। रूस के हमले के कारण यह 1 लाख डॉलर प्रतिदिन तक भी पहुंच सकती है। जहाजरानी कंपनियां कच्चे तेल के दाम में तेजी से भी चिंता में पड़ गई हैं। हालांकि उद्योग के कुछ भागीदारों को उम्मीद है कि भारत रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का असर कुछ कम करने के लिए रुपया-रूबल ट्रेड शुरू कर सकता है।
जिंस बाजार से मिलने वाली खबरें भी चिंताजनक हैं। खबरों के अनुसार काला सागर में कम से कम तीन मालवाहक जहाजों को नुकसान पहुंचा है और बीमाकर्ता इस इलाके में बीमा सुरक्षा देने से हिचक रहे हैं, जिससे रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, तुर्की, बल्गारिया और रोमानिया जैसे देशों से व्यापार प्रभावित होगा।
भारत का इन देशों में मासिक निर्यात करीब 1.4 अरब डॉलर है और करीब 1.6 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात किया जाता है।
इस बीच जहाजरानी महानिदेशालय ने कहा कि भारत स्थिति पर करीबी नजर बनाए हुए है। जहाजरानी विभाग के महानिदेशक अमिताभ कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम स्थिति पर लगातार नजर रख रहे हैं। जहां तक कंटेनर की आवाजाही की बात है तो दुनिया भर में भारत सबसे प्रबंधित क्षेत्र है। यही वजह है कि व्यवधान के बावजूद निर्यात में वृद्घि देखी जा रही है।’
निर्यातकों के संगठन फियो ने निर्यातकों से इन इलाकों में खेप भेजने से फिलहाल परहेज करने के लिए कहा है। फियो के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा, ‘पिछले एक हफ्ते के दौरान मालभाड़ा बढऩे से हम चिंतित हैं। इसके साथ ही आपूर्ति में अड़चन से भी भारतीय निर्यातक प्रभावित होंगे।’
भारतीय राष्ट्रीय जहाज मालिक संगठन (आईएनएसए) ने कहा कि वर्तमान में भारतीय झंडे वाला कोई ही जहाज काला सागर में नहीं फंसा हैआईएनएसए के मुख्य कार्याधिकारी अनिल देवली ने कहा, ‘मालभाड़े और कारोबार पर प्रभाव पड़ेगा जिसके लिए हमें समायोजित करना होगा। इस इलाके में बीमा की लागत युद्घ प्रीमियम की वजह से 2 से 3 फीसदी बढ़ सकती है और बीमाकर्ता इन इलाकों से परहेज करेंगे। जहाज मालिकों को भी जहाज कर्मियों को अतिरिक्त पारितोषिक देना होगा क्योंकि उनकी जान जोखिम में रहेगी।’ अंतरराष्ट्रीय खाद्यान्न परिषद के आंकड़ों के आधार पर गेहूं के कुल वैश्विक निर्यात का करीब 34 फीसदी काला सागर से होकर आता-जाता है। इसी तरह तिलहन की बात करें तो दुनिया के कुल सूरजमुखी निर्यात में रूस और यूक्रेन की भागीदारी करीब एक-तिहाई है। इस इलाके में संकट से वैश्विक जिंसों के दाम में भी तेजी आएगी। कपड़ा निर्यात संवद्र्घन परिषद के चेयरमैन नरेंद्र गोयनका ने कहा, ‘यूरोपीय संघ और ब्रिटेन को लेकर चिंता है क्योंकि इस इलाके में युद्घ से कपड़ों की मांग प्रभावित होगी। इसके साथ ही कच्चे तेल के दाम में तेजी और मालभाड़ा बढऩे से भी दाम बढ़ सकते हैं। प्रतिबंधों के चलते रूस और यूक्रेन से भुगतान को लेकर भी चिंता है।’
एक्सप्रेस फीडर्स के प्रबंध निदेशक जे एस गिल ने कहा, ‘पिछले 8 महीनों में ईंधन का दाम 450 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 749 डॉलर प्रति टन हो गया है। इसके 800 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसका मतलब यह हुआ कि मालवहन की लागत में भी इजाफा होगा। समुद्री खाद्य पदार्थ निर्यातकों के संगठन ने कहा कि इसके सालाना 50,000 करोड़ रुपये के कारोबार में यूरोप का योगदान करीब 12 फीसदी है और इस क्षेत्र में बाधा आने से उद्योग पर व्यापक असर पड़ेगा जबकि यह उद्योग महामारी की मार से उबरने की कोशिश में लगा है।

First Published - February 27, 2022 | 11:06 PM IST

संबंधित पोस्ट