कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इकनॉमिक्स के प्रोफेसर केनेथ क्लेटजर ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की बात यथार्थवादी नहीं है लेकिन तब तक देश में प्रति व्यक्ति आय जरूर ऊंची हो सकती है। क्लेटजर ने नई दिल्ली में रुचिका चित्रवंशी के साथ साक्षात्कार में बताया कि विश्व में बढ़ती चिंता के दौर में भारत किसी लड़ाई का हिस्सा नहीं है और इससे देश को फायदा हो सकता है। पश्चिम एशिया में जारी संकट का भारत पर कुछ प्रभाव पड़ सकता है। इस संकट से पश्चिम में महंगाई बढ़ सकती है। प्रमुख अंश:
पश्चिम एशिया के मौजूदा संकट के तेल की कीमतों और व्यापार, वृद्धि की प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर के बारे में आप कितने चिंतित हैं?
हम शायद उस दौर में हैं जब इस तरह की प्रतिकूल घटनाओं का अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत असर नहीं पड़ता है। तेल के दामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है लेकिन मुझे अधिक प्रभाव नजर नहीं आता है। तेल के आयात पर निर्भर देशों जैसे भारत, चीन जैसे देशों पर कुछ प्रभाव पड़ सकता है। इससे पश्चिम में महंगाई बढ़ सकती है।
आर्थिक समीक्षा में सुझाव आया था कि भारत को विनिर्माण बढ़ाने के लिए चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए अपने दरवाजे खोलने चाहिए। हमने ऐसा नहीं किया। आपकी इस पर क्या राय है?
अमेरिका में चीनी निवेश को लेकर संरक्षणवादी प्रतिक्रिया अब व्यापक लग रही है – न जाने किन आशंकाओं के कारण। मैं विदेशी निवेश का स्वागत करने और विदेशी निवेश पर बंदिशें कम करने के सुझाव का स्वागत करता हूं। चीन तकनीक में संभावनाओं वाला देश है। भारत भी चीन की तकनीक से लाभान्वित हो सकता है।
विश्व में संरक्षणवाद बढ़ रहा है?
विश्व अब कुछ अधिक संरक्षणवादी हो गया है। हमने ट्रंप को देखा है। निश्चित रूप से चीन पर लगाए गए शुल्क से भारत को अत्यधिक फायदा नहीं हुआ क्योंकि ये शुल्क भारत पर भी लगे थे। भारत व्यापार पर प्रतिकूल असर से प्रभावित हुआ था। मैं समझता हूं कि रिपब्लिकन प्रत्याशी का चुना जाना उभरते बाजारों के लिए वास्तव में व्यापारिक रूप से झटका साबित हो सकता है।
भारत सकल घरेलू उत्पाद के मामले में 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनना चाहता है। यह लक्ष्य कितना व्यावहारिक है?
यह यथार्थवादी नहीं है। इसके लिए इतना अधिक वृद्धि दर चाहिए जिसे हर साल बनाए नहीं रखा जा सकता। यदि आप 6 -7 फीसदी की वृद्धि दर को कायम रखते हैं तो आप निश्चित रूप से मध्यम आय समूह के शीर्ष पर पहुंच जाएंगे। ग्रीस विकसित अर्थव्यवस्थाओं के निचले पायदान पर है। लिहाजा सवाल तो अभी यह है कि भारत कितने समय में ग्रीस के बराबर पहुंच पाता है। इस तरह की वृद्धि को कायम रखना किसी देश के लिए असामान्य बात है। ऐसा तो चीन ने भी हासिल नहीं किया है।
मध्यम आय के फंदे में फंसने के जोखिम का खतरा कितना अधिक है?
भारत के मध्यम आय समूह के जाल में फंसने की स्पष्ट आशंका है। क्या दक्षिण कोरिया इस मध्यम आय के फंदे में फंसा? मैं इस पर निश्चित नहीं हूं। दक्षिण कोरिया निरंतर आगे बढ़ रहा है लेकिन वहां हम धीमी वृद्धि दर देख रहे हैं। दक्षिण कोरिया में कहीं बेहतर प्रति व्यक्ति आय है और उसने स्वाभाविक रूप से दूसरे देशों की वृद्धि दर की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है। मैं अनुमान लगाता हूं कि साल 2047 तक भारत में प्रति व्यक्ति उच्च जीडीपी होगा। दुनिया विशेषकर भारत जैसे देश के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में आ सकता है, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में।
भारत की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण की जगह सेवा क्षेत्र पर ज्यादा जोर है। इसे आप कैसे देखते हैं?
हरेक देश में संभावनाएं हैं। वैसे तो भारत ने विनिर्माण क्षेत्र की ओर आश्चर्यजनक कदम बढ़ाए हैं लेकिन भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अधिक एकीकरण की जरूरत है। यह एकीकरण हाल ही में शुरू हुआ है। वस्तुओं के लिए देश में यातायात की सुविधा पर्याप्त नहीं है। क्या इस तरह की वृद्धि विनिर्माण को अधिक बढ़ाए बिना हासिल की जा सकती है? मैं इस पर कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता। विनिर्माण को आगे बढ़ाना वास्तव में भारत जैसे देश के लिए वास्तविक अवसर हो सकता है।
तो क्या आप यह सोचते हैं कि विनिर्माण के बिना भारत के लिए मुश्किल होगा?
आप संतुलन में हिस्सा खो रहे हैं। भारत वास्तव सेवा क्षेत्र में बेहतर कर रहा है लेकिन सेवा क्षेत्र जोखिमभरा हो सकता है। इसके लिए एआई का जोखिम हो सकता है या एआई एक बुलबुला साबित हो सकता है। अभी यह अनिश्चित है।