इस साल घरेलू विकास की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। मौजूदा कारोबारी साल यानी 2008 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 8.2 से घटकर 7.5 फीसदी रहने के आसार हैं जो पिछले पांच साल के 8.5 फीसदी की औसत दर से पूरा एक फीसदी कम है।
2009 में भी विकास की दर 9.2 फीसदी के बजाए 8.5 फीसदी ही रहने की संभावना है। वित्तीय सलाहकार फर्म लीमान ब्रदर्स ने भारत पर अपनी आउटलुक रिपोर्ट में भारत की विकास दर को डाउनग्रेड करते हुए कहा है कि ब्याज दरों में इजाफा होने, वित्तीय बाजार की हलचल और विदेशी मांग में कमी आने की वजह से अर्थव्यवस्था पर यह असर पड़ रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक कंज्यूमर डयूरेबल्स की बिक्री में खासी कमी आ गई है और विकास की धीमी रफ्तार का असर कैपिटल गुड्स उद्योग पर पड़ रहा है। महंगाई की दर भी रिजर्व बैंक के 5 फीसदी के लक्ष्य से काफी ऊपर पहुंच चुकी है। रिपोर्ट में उम्मीद जाहिर की गई है कि रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने के बजाए ट्रेड और फिस्कल नीतियों के जरिए इस पर अंकुश लगाने की कोशिश करेगा, साथ ही वह रुपए को चढ़ने देने का पूरा मौका देगा।
हालांकि इन नीतियों का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना है। इससे जाहिर है कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन कम होंगे और ट्रेड और फिस्कल डेफिसिट(घाटा) बढ़ेगा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाला निवेश भी प्रभावित होगा। मुद्रा प्रसार को बढ़ने से रोकने के लिए सीआरआर में इजाफे का फैसला भी लिया जा सकता है ताकि बाजार में लिक्विडी संतुलित हो। जहां तक ब्याज दरों में कटौती करने का सवाल है, मौजूदा साल में ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती।
हालांकि रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि इस साल के विकास को छोड़ दिया जाए तो वो लंबी अवधि में भारत के विकास को लेकर आश्वस्त हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स में काफी सुधार आ चुका है और जापान, कोरिया और चीन में तेजी के समय जो लक्षण थे, भारत में इस समय वैसे ही दिख रहे हैं। पर कैपिटा जीडीपी बढ़ रहा है, निवेश और बचत में इजाफा दिख रहा है, विदेशी व्यापार और निवेश की भारी गुंजाइश बनी है। रिपोर्ट में आगे कहा गया कि अगर भारत अपने कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधार ले और अपनी नौकरशाही पर कुछ काबू पा ले तो कोई वजह नहीं कि विकास दर दस फीसदी पर नहीं पहुंचे।