नए ऑर्डर और आउटपुट की वृद्धि में आई सुस्ती के कारण भारत के सेवा क्षेत्र का पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) घटकर 60.6 पर आ गया है। जनवरी में यह 6 माह के उच्च स्तर 61.8 पर था। एचएसबीसी के साथ साझेदारी में एसऐंडपी ग्लोबल द्वारा मंगलवार को जारी सर्वे से यह आंकड़ा सामने आया है।
सर्वे में कहा गया है, ‘फरवरी के दौरान भारत के सेवा क्षेत्र में वृद्धि जारी रही है। सकारात्मक मांग से बिक्री और कारोबारी गतिविधियों को समर्थन मिला है। हालांकि जनवरी की तुलना में वृद्धि की दर कम रही है, फिर भी यह उच्च स्तर पर है।’
जुलाई 2021 के बाद फरवरी में लगातार 31वें महीने सूचकांक 50 से ऊपर बना हुआ है। सर्वे में 50 से ऊपर की रीडिंग इस सेक्टर के प्रसार और इससे कम संकुचन का संकेत देती है। इस सर्वे में ट्रांसपोर्ट, सूचना, संचार, वित्त, बीमा, रियल एस्टेट, गैर खुदरा उपभोक्ता और कारोबारी सेवा क्षेत्र से जुड़ी करीब 400 कंपनियों ने हिस्सा लिया।
सूक्ष्म आंकड़ों से पता चलता है कि सेवा क्षेत्र के सभी हिस्सों में कारोबारी गतिविधियां बढ़ी हैं। इनमें से फाइनैंस और बीमा क्षेत्र की वृद्धि दर उल्लेखनीय रूप से अधिक रही है। वहीं रियल एस्टेट और बिजनेस सर्विसेज की वृद्धि दर सबसे सुस्त थी।
एचएसबीसी में अर्थशास्त्री इनेस लाम ने कहा कि भारत के सेवा पीएमआई से पता चलता है कि सेवा क्षेत्र के प्रसार की रफ्तार फरवरी में जनवरी की तुलना में सुस्त रही है।
उन्होंने कहा, ‘नए ऑर्डर और आउटपुट में वृद्धि दर सुस्त रहने के कारण सेवा कंपनियों का प्रदर्शन थोड़ा सुस्त हुआ है। हालांकि भविष्य की कारोबारी गतिविधियों के हिसाब से परिदृश्य सकारात्मक है। इनपुट की कीमतों की महंगाई दर कम रही है, जिसके कारण सेवाओं के लिए लिया जाने वाला शुल्क 24 महीने में सबसे सुस्त दर से बढ़ा है।’
सर्वे में यह भी कहा गया है कि सेवा क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय कंपनियों ने बढ़ती कीमत से अपने मुनाफे की रक्षा की बात कही है, हालांकि महंगाई की दर सुस्त रही है और यह दीर्घावधि औसत से कम रही है।अंतिम वित्तीय तिमाही में कारोबार की मात्रा में लगातार 26वें महीने वृद्धि हुई है, जिससे सेवा प्रदाताओं की क्षमता पर दबाव का पता चलता है।
सर्वे में आगे कहा गया है कि विदेश में नया कारोबार लगातार 13वें महीने बढ़ा है और सर्वे में शामिल होने वालों ने ऑस्ट्रेलिया, एशिया, यूरोप, अमेरिका और यूएई से लाभ की बात की है। सर्वे में कहा गया है, ‘कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय बिक्री में ठोस वृद्धि हुई, जो साढ़े 9 साल की श्रृंखला के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ में से एक थी।’
रोजगार के हिसाब से देखें तो कंपनियों ने काम का बोझ बढ़ने से नौकरियों का सृजन किया है लेकिन क्षमता पर दबाव कम होने और आत्मविश्वास कम होने के कारण रोजगार में वृद्धि का परिदृश्य कमजोर हुआ है।