इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। मगर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगले कुछ महीनों में स्थानीय मुद्रा में और गिरावट आने की आशंका कम है क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व 2022 की दूसरी छमाही में मौद्रिक नीति में सख्ती की रफ्तार कुछ कम कर सकता है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा 10 प्रतिभागियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण में मिले औसत के अनुसार जुलाई के अंत तक डॉलर के मुकाबले रुपया 80.20 पर जा सकता है, जो पिछले बंद भाव 79.88 से करीब 0.4 फीसदी नीचे होगा। सितंबर अंत तक रुपया थोड़ा और लुढ़ककर 80.50 तक जा सकता है।
ऊंची मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए फेडरल रिजर्व ने दरों में इजाफा किया है, जिससे इस साल अभी तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 6.94 फीसदी की नरमी आ चुकी है। वैश्विक मंदी की आशंका से निवेशक डॉलर को निवेश का सुरक्षित ठिकाना मानकर उसकी खरीद कर रहे हैं, जिससे रुपये पर दबाव और बढ़ा है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिकी डॉलर सूचकांक इस साल अब तक 12 फीसदी मजबूत हुआ है। इस स्तर पर डॉलर सूचकांक 2002 में पहुंचा था। फेडरल रिजर्व ने इस साल ब्याज दरों में 150 आधार अंक की बढ़ोतरी की है और जुलाई के अंत तक दरें 75 से 100 आधार अंक और बढ़ाए जाने की संभावना है।
वैश्विक फंड भी जोखिम वाले निवेश से रकम निकालकर अमेरिका में लगा रहे हैं, जिससे रुपये समेत उभरते बाजारों की अधिकतर मुद्राओं पर दबाव दिख रहा है। उभरते बाजारों की बात करें तो अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपया कम गिरा है। तुर्की की लीरा, दक्षिण कोरिया के वोन, फिलीपींस के पीसो और थाई बहत में डॉलर के मुकाबले 8 से 22 फीसदी की भारी गिरावट देखी गई है। मगर
दक्षिण अफ्रीकी रैंड, मलेशियाई रिंगिट, चीन के युआन तथा सिंगापुर एवं हॉन्ग कॉन्ग के डॉलर तथा यूएई के दिरहम की तुलना में रुपया खराब रहा है। डॉलर की मजबूती और रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक जिंसों के दामों में तेजी से रुपये पर खासा दबाव देखा जा रहा है तथा देश का चालू खाते का घाटा भी बढ़ रहा है। जून में देश का मासिक व्यापार घाटा 26.18 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। इस दौरान तेल का आयात दोगुना हाकर 21.3 अरब डॉलर रहा। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से अधिक कच्चा तेल आयात करता है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के निदेशक सौम्यजित नियोगी ने कहा, ‘मौजूदा परिस्थितियों से संकेत मिलता है कि अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के परिदृश्य और भुगतान संतुलन ऋणात्मक होने से रुपया कमजोर बना रह सकता है।’
पहली तिमाही में फेडरल रिजर्व द्वारा मुद्रास्फीति को काबू करने के उपाय के बाद विश्लेषकों को लग रहा है कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक आगे चलकर ब्याज दरों में बढ़ोतरी की रफ्तार घटाएगा। मंदी की आशंका गहराने के कारण उसका सुस्त पड़ना तय माना जा रहा है। अगर जुलाई के अंत तक फेडरल रिजर्व दरों में 100 आधार अंक का इजाफा करता है तो 1990 के बाद दरों में अब तक की सबसे ज्यादा बढ़ोतरी होगी।
फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने भी हाल में स्वीकार किया है कि अगर दरों में आक्रामक तरीके से इजाफा किया जाता है तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की गिरफ्त में आ सकती है। वैश्विक स्तर पर वृद्धि की चिंताओं के बीच कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आना भारत के लिए अच्छा संकेत है। मार्च में यह 14 साल के सबसे ऊंचे भाव 140 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था। अभी ब्रेंट क्रूड वायदा 100 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है। कोटक सिक्योरिटीज में मुद्रा वायदा एवं ब्याज दर वायदा के उपाध्यक्ष अनिंद्य बनर्जी ने कहा, ‘फेड के सतर्क रुख से जोखिम बना है। अनुमान है कि दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति उच्चतम स्तर पर होगी। हालांकि वैश्विक वृद्धि की चिंता के मद्देनजर जिंसों के दाम में नरमी देखी जा रही है। सितंबर अंत तक रुपया थोड़ा सुधर सकता है।’ सितंबर अंत तक 79.50 पर आ सकता है।