जबकि सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों के अधिकारियों को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का नेतृत्व देने की बात कही है
वित्तीय वर्ष 2008-09 में कुल 6,87,715 करोड़ रुपये राजस्व जमा करने का लक्ष्य है, लेकिन सरकार की दो कर जमा करने वाली एजेंसियां– केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड(सीबीडीटी) और उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड(सीबीईसी) एक छोटे अंतराल में कई नौकरशाहों के नेतृत्व में काम करेगी।
उदाहरण के तौर पर सीबीडीटी के अध्यक्ष आर प्रसाद को बजट के कारण एक महीने का विस्तार दिया गया था और वे इस महीने के अंत में सेवानिवृत होने वाले हैं। इस तरह से उनका कार्यकाल मात्र पांच महीने का रहा।
1 अप्रैल के बाद से सीबीडीटी को लगातार तीन अध्यक्षों का कार्यकाल देखना होगा।
पी के मिश्र का कार्यकाल 1 महीने का रहेगा और उसके बाद आर एस मथोडा का कार्यकाल 2 महीने का होगा और इस लिहाज से एन बी सिंह का कार्यकाल सबसे ज्यादा 7 महीने का रहेगा। इसके बाद 2009 के मार्च अंत में सुनीता कैला को दो महीने के लिए अध्यक्ष बनाया जाएगा। इन चारों में सुनीता कैला ही एकमात्र अध्यक्ष होंगी, जो 2009-10 के बजट में भाग ले पाएंगी।
सीबीईसी की स्थिति इससे थोड़ी बेहतर है। इसके वर्तमान अध्यक्ष एस के सिन्हा इस महीने के अंत में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इस तरह उनका कार्यकाल
9 महीने का रहा। इससे पहले सीबीईसी के अध्यक्ष वी पी सिंह का कार्यकाल एक साल का था। एस के सिन्हा के बाद पी सी झा के अध्यक्ष बनने की उम्मीद है और संभावना है कि उनका कार्यकाल 14 महीने का होगा। लेकिन इसके बाद की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
विगत कुछ सालों में सीबीडीटी के अध्यक्ष रविकांत ही ऐसे रहे
,जो 1997 में नियुक्त हुए और उनका कार्यकाल तीन सालों का रहा। 1964 के बाद सीबीडीटी के मात्र चार ऐसे अध्यक्ष रहे जिनका कार्यकाल तीन वर्षों का रहा है। पिछले एक दशक से ज्यादा अवधि में अध्यक्ष का कार्यकाल औसतन 30 दिन से 60 दिनों का रहा । इतने छोटे कार्यकाल में कुछ वास्तविक अंतर ला पाना इन अध्यक्षों के लिए मुश्किल ही रहा।
रेलवे राजस्व सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले कुछ महीने के लिए जो भी सेवा में आते हैं वे औपचारिकताएं और पेंशन ब्यौरा भरने में ही व्यस्त रहते हैं। दरअसल ये छोटा कार्यकाल सरकार की सीनियरों को तरजीह देने की नीति के कारण होता है। वास्तव में ये नौकरशाह साल भर से ज्यादा किसी विभाग का नेतृत्व नहीं कर पाते हैं। कमोबेश यह हाल सचिव स्तरीय पदों में भी देखा जाता है।
इस चुनावी साल में इन विभागों के अध्यक्षों की स्थिरता एक जटिल समस्या है। इन दोनों कर जमा करने वाली एजेंसियों के भरोसे ही सरकार को सामाजिक और राजनीतिक खर्च जुटा पाने के लिए खुराक मिलती है। वैसे भी इस बार तो किसानों की ऋण माफी की भरपाई करने के लिए भी सरकार को इन विभागों के सहारे की जरुरत पड़ेगी। लेकिन इस छोटे कार्यकाल में सीबीडीटी और सीबीईसी के अध्यक्षों से पत्रकार हर सवाल पूछ सकते हैं सिवाए उनके लक्ष्य के। क्योंकि इतने छोटे कार्यकाल में किसी भी अध्यक्ष के लिए लक्ष्य निर्धारित करना खासा मुश्किल काम है।