गारंटी योजनाओं द्वारा समर्थित समय से वित्तपोषण होने से सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों को कोविड-19 महामारी के कारण आई मंदी से बचने में मदद मिली है। अर्थव्यवस्था वृद्धि की राह पर चल रही है और इस क्षेत्र में बन रहे किसी भी तरह के जोखिम पर व्यवस्था को नजर रखने की जरूरत है। ट्रांस यूनियन सिबिल- भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के एक आकलन में यह सामने आया है।
एमएसएमई के आतिथ्य, लॉजिस्टिक और टेक्सटाइल क्षेत्र ग्राहकों के विवेकाधीन खर्च पर निर्भर हैं, जिनमें ज्यादा गिरावट आई है। मझोले व छोटे उद्योगों की तुलना में सूक्ष्म इकाइयां आर्थिक मंदी से ज्यादा प्रभावित हुई हैं। सिबिल-सिडबी की संयुक्त रिपोर्ट एमएसएमई पल्स के मुताबिक कम जोखिम के उधारी लेनेे वालों की संख्या सितंबर 2018-19 में 24 प्रतिशत थी, जो सितंबर 2019-20 में 36 प्रतिशत हो गई। इसी तरह मझोले जोखिम क्षेत्र में भी गिरावट आई है और सितंबर 2018-19 के 22 प्रतिशत की तुलना में जोखिम वालों की संख्या 29 प्रतिशत हो गया है।
सिडबी के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर वी सत्य वेंकट राव ने कहा, ‘हम वृद्धि की राह पर बढ़ रहे हैं, ऐसे में हमें बन रहे जोखिम के संकेतों को लेकर सावधान रहने की जरूरत है, खासकर एमएसएमई क्षेत्र में जिसमें तुलनात्मक रूप से ज्यादा गिरावट देखी गई है।’ सितंबर 2020 में चूक की दर 12.1 प्रतिशत पर स्थिर रही, यही स्तर सितंबर 2019 में भी था। लेकिन यह आगे की तिमाही जून 2020 के 13 प्रतिशत की तुलना में कम रहा। 2020 में एमएसएमई की चाल लडख़ड़ाहट भरी रही। कोविड-19 की वजह से कारोबारी गतिविधियां प्रभावित हुईं।
