पिछले सप्ताह हुई मंत्रिमंडल की बैठक में खनन क्षेत्र के सुधारों को मिली मंजूरी का छपा हुआ प्रारूप आना अभी बाकी है और आधिकारिक पुष्टिï होनी है, वहीं इस उद्योग से जुड़ी कंपनियां इन सुधारों को लेकर उत्साहित नजर आ रही हैं। हालांकि राज्य स्तर पर इनको लागू करने और खनन के पर्यावरणीय असर की चिंता बरकरार है।
इक्रा में कॉर्पोरेट रेटिंग्स और इंडस्ट्री रिसर्च के सहायक उपाध्यक्ष रीताब्रता घोष ने कहा, ‘दिशात्मक रूप से ये अच्छे सुधार हैं। लेकिन क्रियान्वयन राज्य सरकारों को करना है, ऐसे यह देखना होगा कि प्रत्येक राज्य अपने स्तर पर इसे कैसे लागू करते हैं। आज भी, अंतिम रूप से स्वीकृति देनी है या नहीं देनी है इसको मंजूर करने में ही करीब तीन से चार वर्ष का समय लग जाता है। इससे निवेशक दूर हो जाते हैं।’
एक प्राथमिक इस्पात उत्पादन कंपनी के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि मर्चेंट और कैप्टिव खदानों के बीच अंतर को समाप्त करना कॉर्पोरेट के लिए एक अच्छा कदम माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘इससे कैप्टिव मालिकों को बाजार में भी बिक्री करने की अनुमति मिल जाएगी। लेकिन हम एक आधिकारिक घोषणा का इंतजार करेंगे।’ प्रस्तावित सुधारों के तहत कैप्टिव खदानों को एक वर्ष में खोदे गए खनिजों का 50 फीसदी बेचने की अनुमति होगी।
भारतीय खनिज उद्योग महासंघ (फिमी) के महासचिव आरके शर्मा ने कहा, ‘यह एक सही दिशा में उठाया गया कदम है। इससे और अधिक संसाधन का विकास होगा क्योंकि नीलामी को आकर्षक बनाया गया है। फिमी इस कदम का स्वागत करता है।’ लेकिन ज्यादा संख्या में खनन होने से इस बात की चिंता है कि खनन का पर्यावरणीय और सामाजिक असर बढ़ेगा। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में वरिष्ठï शोधकर्ता कांची कोहली कहती हैं कि किसी तरह के अंतिम उपयोग पर प्रतिबंधों के बिना कैप्टिव से वाणिज्यिक उपयोग की तरफ बढऩे से फुटप्रिंट का नियमन करना आभासी रूप से नामुमकिन हो जाएगा क्योंकि खनिजों को उन स्थानों पर भेजा जाएगा जहां खदान डेवलपरों को मांग और रिटर्न की ऊंची दरें मिलेंगी।
उन्होंने कहा, ‘पर्यावरण कानून खनन करने से पूर्व किए गए खुलासों के आधार पर शर्तं लगाने के लिए तैयार किए जाते हैं ताकि असर के स्तर के आधार पर मंजूरी दी जा सके या खारिज किया जा सके। प्रस्तावित बदलावों के नए सेट के साथ पूर्वानुमान लगाना या निगरानी करना नामुमकिन हो जाएगा और इससे प्रभावित इलाके लगातार बदलते रहेंगे और नए इलाके जुड़ते जाएंगे। स्पष्टï है कि मौजूदा संशोधनों का उसके पर्यावरणीय व्यवहार्यता या सामाजिक परिणामों की दृष्टिï से आकलन नहीं किया गया है।’
केंद्र ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपयोगिता के गैर-उत्पादित ब्लॉकों का फिर से आवंटन करने का भी प्रस्ताव रखा है ताकि उत्पादन में खदानों की संख्या को बढ़ाया जा सके।
