भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) 29 मई को बैंकों के निदेशक मंडलों (board of directors) के साथ बैठक करेगा। RBI द्वारा बुलाई गई इस बैठक में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों के साथ विदेशी बैंकों के बोर्ड प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
RBI इस तरह की बैठक पहली बार बुला रहा है और बैठक 29 मई को पूरे दिन चलेगी। एक सू्त्र ने कहा कि बैठक में RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास, डिप्टी गवर्नर और निगरानी विभाग (Department of Supervision), नियमन विभाग (Department of Regulation) एवं प्रवर्तन विभाग ( Enforcement Department) के कार्यकारी निदेशक बैंकिंग संचालन से जुड़े नियमों, बोर्ड की भूमिका एवं निगरानी से जुड़ी अपेक्षाओं पर बात चर्चा करेंगे।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024 के बजट में बैंकिंग संचालन में सुधार और निवेशकों की सुरक्षा की जरूरत पर जोर दिया था। वित्त मंत्री की इस घोषणा के बाद आयोजित इस बैठक को उसी से जोड़कर देखा जा रहा है। सीतारमण ने भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम (1934), बैंकिंग नियमन अधिनियम (1949) और बैंकिंग कंपनी (अधिग्रहण एवं उपक्रमों के हस्तांतरण) अधिनियम (1970) में कुछ निश्चित संशोधनों का प्रस्ताव दिया था।
समझा जा रहा है कि 29 मई को आयोजित होने वाली बैठक में भारत में वाणिज्यिक बैंकों (commercial banks) के संचालन पर केंद्रीय बैंक द्वारा जारी परिचर्चा पत्र में शामिल मुख्य विषयों पर भी चर्चा होगी। RBI ने यह पत्र 11 जून 2020 को जारी किया था। यह पत्र जारी करने का मकसद घरेलू वित्तीय प्रणाली को ध्यान में रखते हुए वर्तमान नियामकीय ढांचे को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना था।
केंद्रीय बैंक के चर्चा पत्र में कुछ विषयों पर खास जोर दिया गया था। इनमें संगठन की संस्कृति एवं मूल्य निर्धारित करना, हितों के टकराव की पहचान कर उन्हें नियंत्रित करना, जोखिम लेने की क्षमता तय करना और इसी क्षमता के दायरे में जोखिमों का प्रबंधन करना, वरिष्ठ प्रबंधन की निगरानी क्षमता को मजबूत करना, विभिन्न हस्तक्षेपों के जरिये नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना, बोर्ड और प्रबंधन के बीच उत्तरदायित्व स्पष्ट करना और प्रबंधन से मालिकाना हक को अलग करना जैसे विषय शामिल थे।
समझा जाता है कि अधिकारी आगे जाकर बैंकों में बोर्डों के दायित्व से जुड़े दिशानिर्देश में सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं क्योंकि चर्चा पत्र में शामिल विषय सभी बैंकों में लागू हो सकते हैं। मगर यह भी कहा गया था कि ऐसे मामले इसके दायरे में नहीं आएंगे जिनमें तय नियम किसी संस्थान पर खास तौर पर लागू होने वाले प्रावधानों से मेल नहीं खाते हैं या जिन मामलों में भारत सरकार निर्देश देने का अधिकार अपने पास रखती है। इस पहलू को बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े प्रमुख कानूनों में संशोधन के सीतारमण के प्रस्ताव के साथ देखा जाना चाहिए।