भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा के साथ डिप्टी-गवर्नर पूनम गुप्ता, टी रवि शंकर, स्वामीनाथन जे और एम राजेश्वर राव ने मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा के बाद संवाददाता सम्मेलन में कई पहलुओं पर प्रतिक्रिया दी। पेश हैं संपादित अंश:
आपने आर्थिक वृद्धि का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। इसमें अमेरिकी शुल्कों के संभावित प्रभावों का कितना ख्याल रखा गया है?
मल्होत्रा: आप सभी अच्छी तरह जानते हैं कि आरबीआई ने पहले ही वृद्धि अनुमान घटा दिया था। पहले यह 6.7 प्रतिशत था जो संशोधित कर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया है। वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण होने वाले असर को वृद्धि अनुमान में संशोधन के वक्त ध्यान में रखा गया था। किंतु अभी अनिश्चितता बनी हुई है और यह अनुमान लगाना वास्तव में बहुत मुश्किल है कि आगे क्या परिणाम सामने आएंगे। हम आने वाले आंकड़ों पर पैनी नजर रखेंगे और फिर हालात के अनुसार निर्णय लेंगे। फिलहाल, हमारे पास अपने जीडीपी अनुमानों को संशोधित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
क्या आरबीआई इस बात से चिंतित है कि शुल्कों से आयात महंगा होने के कारण मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी?
मल्होत्रा: भारत में मुद्रास्फीति बाहरी कारकों से जुड़ी हुई नहीं है। अगर कोई प्रभाव पड़ता भी है तो उससे वृद्धि और मांग दोनों प्रभावित होंगे। फिलहाल हमें शुल्कों का कोई बड़ा प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है। जवाबी शुल्क लगने की स्थिति में ऐसा हो सकता है। मगर इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता।
पूनम गुप्ता: भारत में मुद्रास्फीति तय करने वाली वस्तुओं के समूह में लगभग आधा हिस्सा खाद्य पदार्थों का है जिन पर वैश्विक घटनाओं का सीधा असर नहीं होता है। इनमें भी ज्यादातर हिस्सा उन वस्तुओं का है, जिनका व्यापार नहीं होता है यानी जोखिम और कम हो जाता है। इसलिए शुल्कों पर माथापच्ची एवं अन्य वैश्विक अनिश्चितताओं का मुद्रास्फीति पर असर बहुत सीमित रह सकता है।
मुद्रास्फीति अनुमान घटा कर 3.1 प्रतिशत कर दिया गया है तो दर घटाने में क्या दिक्कत पेश आ रही है? क्या ऋण आवंटन बढ़ाने में मौद्रिक नीति प्रभावी जरिया साबित हुई है?
मल्होत्रा: हमने फरवरी से लेकर जून तक चार महीने में ही रीपो दर 100 आधार अंक कम कर डाली। इसका फायदा धीरे-धीरे हो रहा है। हम आने वाले आंकड़ों एवं व्यापक आर्थिक हालात से जुड़े घटनाक्रम पर भी नजर बनाए रखेंगे।
जहां तक ब्याज दरों में कटौती के असर का सवाल है तो मैं कुछ आंकड़ों का उल्लेख पहले ही कर चुका हूं। जून तक बैंक ऋण की ब्याज दरों में लगभग 71 आधार अंक कमी आई है, जिनमें रीपो दर में कटौती की बड़ी भूमिका रही है। इससे न केवल ऋण आवंटन बढ़ेगा बल्कि वास्तविक अर्थव्यवस्था पर भी इसके सकारात्मक असर दिखेंगे। नीतिगत दरों में कमी का असर दिखने में कुछ समय तो लग ही जाता है। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि दरों में कटौती से आर्थिक वृद्धि दर तेज नहीं होगी।
आवास ऋण वृद्धि भी धीमी हो गई है। इसकी क्या वजह है?
मल्होत्रा: मोटे तौर पर आवास ऋण आवंटन की दर अच्छी कही जा सकती है। हो सकता है इसमें कुछ कमी आई हो मगर उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं। मुझे लगता है कि समग्र आवास ऋण आवंटन की वृद्धि दर 14 प्रतिशत है, जो बहुत अच्छी है। इस साल हमारी औसत ऋण वृद्धि दर 10 प्रतिशत है और आवास ऋण आवंटन में इससे ज्यादा वृद्धि हो रही है। हमने नीतिगत दरें कम कम की हैं मगर इनका असर दिखने में कुछ वक्त लग जाएगा।
अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद करता है तो इसका मुद्रास्फीति पर क्या असर होगा?
मल्होत्रा: भारत केवल रूस से नहीं बल्कि दूसरे देशों से भी तल खरीद रहा है। फिलहाल कोई बड़ा असर नहीं दिखाई दे रहा है। अगर कोई दिक्कत आती है तो सरकार राजकोषीय मोर्चे पर उचित निर्णय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
क्या वित्त वर्ष 2027 के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के अनुमान तय करते वक्त इसके घटकों के भारांश में बदलाव को भी ध्यान में रखा गया है?
मल्होत्रा: नहीं
भारत पर शुल्कों से यहां विदेशी निवेश पर क्या असर असर हो सकता है?
मल्होत्रा: विदेशी रकम की आमद चालू खाता और पूंजी खाता समेत कई बातों पर निर्भर करती है। लिहाजा इस पर कुछ कहना बहुत जल्दबाजी होगी।