अर्थव्यवस्था

RBI MPC Meet: खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव की अनदेखी संभव नहीं- RBI गवर्नर शक्तिकांत दास

उनका यह बयान आर्थिक समीक्षा में हाल में दिए गए सुझाव के बाद आया है जिसमें कहा गया था कि भारत के मुद्रास्फीति-ल​क्षित ढांचे में खाद्य कीमतों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

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सुब्रत पांडा   
Last Updated- August 08, 2024 | 9:54 PM IST

RBI MPC Meet: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श​क्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव को मौद्रिक नीति समिति द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा। उनका यह बयान आर्थिक समीक्षा में हाल में दिए गए सुझाव के बाद आया है जिसमें कहा गया था कि भारत के मुद्रास्फीति-ल​क्षित ढांचे में खाद्य कीमतों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

मौद्रिक नीति समीक्षा बयान में दास ने कहा है कि खाद्य कीमतों में लगातार तेजी से वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति नियंत्रण की प्रक्रिया में बाधा पैदा हुई। दास ने कहा, ‘हमारा लक्ष्य समग्र (हेडलाइन) मुद्रास्फीति है जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति का भार लगभग 46 फीसदी है। खपत में खाद्य उत्पादों की इस ऊंची भागीदारी के साथ, खाद्य मुद्रास्फीति दबाव की अनदेखी नहीं की जा सकती।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए, हम केवल इसलिए संतुष्ट नहीं हो सकते और न ही होना चाहिए कि मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति में काफी गिरावट आई है।’

इस साल की आ​र्थिक समीक्षा में इस पर विचार करने का सुझाव दिया गया कि क्या भारत के मुद्रास्फीति-लक्षित ढांचे से खाद्य मुद्रास्फीति को बाहर किया जाना चाहिए? भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मौद्रिक नीति एक शॉर्ट-टर्म वृहद समग्र मांग प्रबंधन साधन है, जो संपूर्ण आपूर्ति झटके का प्रबंधन नहीं कर सकता है और खाद्य झटके मुख्य रूप से आपूर्ति झटके होते हैं।

दास ने गुरुवार को कहा कि यदि खाद्य मुद्रास्फीति अस्थायी रही तो एमपीसी इस पर विचार कर सकती है, लेकिन ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति के माहौल में, जैसा कि हम अभी अनुभव कर रहे हैं, एमपीसी ऐसा करने का जोखिम नहीं उठा सकती। उन्होंने कहा, ‘एमपीसी को लगातार खाद्य मुद्रास्फीति से होने वाले दुष्परिणामों या अन्य प्रभावों को रोकने के लिए सतर्क रहना होगा।’

भारत की समग्र मुद्रास्फी​ति अप्रैल और मई में 4.8 फीसदी पर बने रहने के बाद जून में बढ़कर 5.1 फीसदी पर पहुंच गई, क्योंकि इसमें खाद्य कीमतों के बढ़ने से तेजी आई। स​ब्जियों, दालों और खाद्य तेलों के साथ मोटे अनाज, दूध, फल और तैयार भोजन की कीमतों में भारी तेजी आने से मुद्रास्फीति का आंकड़ा बढ़ गया।

हालांकि कोर इन्फ्लेशन यानी मुख्य मुद्रास्फीति (सीपीआई, फूड और ईंधन को छोड़कर) मई-जून में 3.1 फीसदी रही, जो मौजूदा सीपीआई सीरीज में नए निचले स्तर पर पहुंच गई। दास के अनुसार, खाद्य मुद्रास्फीति पर एमपीसी की सतर्कता इस तथ्य से भी स्पष्ट हुई है कि ऊंची खाद्य महंगाई का घरेलू मुद्रास्फीति के अनुमानों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। लगातार ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति से मुख्य मुद्रास्फीति पर प्रभाव बढ़ सकता है, क्योंकि इससे रहन-सहन की लागत बढ़ने से पारिश्रमिक में इजाफा हो सकता है।

उन्होंने कहा, ‘महंगाई बढ़ने से कंपनियां सेवाओं के साथ-साथ उत्पादों की ऊंची कीमतों को बढ़ावा दे सकती हैं। इन बदलावों के परिणामस्वरूप खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आने के बाद भी कुल मुद्रास्फीति स्थिर बनी रह सकती है।’

First Published : August 8, 2024 | 9:54 PM IST