अर्थव्यवस्था

GST 2.0 के बाद RBI देगा दिवाली तोहफा! SBI रिपोर्ट का अनुमान- रीपो रेट में और हो सकती है कटौती

GST बदलाव और कम महंगाई के बीच RBI कर सकता है 25 बेसिस पॉइंट की दर कटौती

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देवव्रत बाजपेयी   
Last Updated- September 22, 2025 | 11:04 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की अगली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मीटिंग 29 सितंबर से 1 अक्टूबर 2025 तक होने वाली है। इस मीटिंग में RBI अपनी रीपो रेट और मौद्रिक नीति के अगले कदम का ऐलान करेगा। SBI रिसर्च के अनुसार, इस समय 25 बेसिस पॉइंट (bps) की दर कटौती सबसे सही विकल्प होगी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाल के दिनों में देश और विदेश के बाजारों में यील्ड्स यानी रिटर्न बढ़े हैं, इसलिए RBI को अपनी नीति स्पष्ट और संतुलित तरीके से बताना बहुत जरूरी है।

सितंबर में दर कटौती क्यों जरूरी?

जून 2025 में RBI ने अपने नीतिगत दरों में कटौती की थी। इसके बाद बाजार में यील्ड्स बढ़ने लगे, जिससे निवेशकों और वित्तीय संस्थाओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। SBI रिसर्च का मानना है कि सितंबर में 25bps की दर कटौती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे सही कदम होगा।

SBI रिसर्च के अनुसार, GST में बदलाव और कम मुद्रास्फीति की वजह से अब RBI के लिए दरें कम करना सही कदम होगा। जून के बाद से महंगाई स्थिर है और FY27 में CPI लगभग 4% या उससे कम रहने की संभावना है। GST बदलाव के कारण अक्टूबर में यह 1.1% तक जा सकती है, जो 2004 के बाद सबसे कम है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर RBI अभी दरें नहीं घटाता, तो इसे टाइप 2 एरर माना जाएगा। यानी नीति को ध्यान में लिए बिना कोई बदलाव नहीं करना। ऐसे समय में, जब महंगाई कम है, दरों में कटौती करना बाजार की उम्मीदों के अनुरूप होगा और निवेशकों को अच्छा संकेत देगा।

दुनिया की स्थिति और केंद्रीय बैंकों का रोल

सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी मौद्रिक नीति को लेकर सतर्क हैं। कई देशों ने हाल ही में दरें कम की हैं, लेकिन बाजार अभी स्थिर नहीं है। वैश्विक वित्तीय बाजारों में यील्ड्स (सिक्योरिटी रिटर्न) बढ़ रहे हैं, जो एक आम समस्या बन गई है। SBI रिसर्च के अनुसार, केंद्रीय बैंकों द्वारा नियमित और स्पष्ट जानकारी देना ही बाजार के असमंजस को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है।

अमेरिका में फेडरल रिजर्व (Fed) ने हाल ही में अपनी Fed Funds Rate 4% से 4.25% तक घटा दी है। Fed के अनुसार, कामगारों की कम संख्या और कम लोगों का वर्कफोर्स में हिस्सा लेना इस कदम का कारण है। Fed के चेयरमैन ने इसे “Risk Management Cut” कहा और बताया कि इससे लंबी अवधि की मुद्रास्फीति 2% के लक्ष्य के करीब रहेगी। उनका मानना है कि सही समय पर थोड़ी कटौती करना ही अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने का सही तरीका है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में नौकरी और रोजगार की स्थिति थोड़ी मुश्किल है। घरों की कीमतें बढ़ रही हैं, ARM (बदलती ब्याज दर वाला होम लोन) की दरें स्थिर हैं, और कुछ खाद्य सप्लाई में दिक्कतें आ रही हैं। इन सब कारणों से Fed ने हाल ही में दरें कम की हैं और आने वाले महीनों में भी दरें कम करने की संभावना बनी हुई है।

भारत के सरकारी और राज्य कर्ज में बदलाव

भारत में सरकारी और राज्य विकास ऋण (SDL) में हाल ही में बढ़ोतरी देखी गई है। SBI रिसर्च के अनुसार, राज्य सरकारों का कर्ज बढ़ रहा है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ सकता है। FY2018 में लंबी अवधि वाले SDLs का हिस्सा 22% था, जो FY2026 में बढ़कर 71% हो गया। यह खासकर उन कर्जों में हुआ है, जिनकी मैच्योरिटी 10 साल या उससे ज्यादा है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने कर्ज की मैच्योरिटी लंबी करने की कोशिश कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने “Switch” का इस्तेमाल किया, यानी छोटे समय वाले कर्ज को लंबे समय वाले कर्ज से बदलना। इससे राज्यों पर तुरंत चुकाने का दबाव कम होगा और वित्तीय स्थिति स्थिर रहेगी।

इसके अलावा, अलग-अलग राज्यों के SDL इश्यूज में फर्क है। Andhra Pradesh ने सबसे ज्यादा पेपर्स जारी किए हैं, जबकि Maharashtra के पेपर्स का औसत सबसे ज्यादा है। इसका मतलब है कि निवेशकों को नई रणनीति और लंबी अवधि के जोखिम को ध्यान में रखकर निवेश के फैसले लेने होंगे।

विदेशी निवेशक और FPI का रोल

रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी निवेशक (FPI) अब भारत के बॉन्ड मार्केट में ज्यादा एक्टिव हो रहे हैं। Fully Accessible Route (FAR) के तहत उन्हें ज्यादा निवेश करने की सुविधा मिली है। फिलहाल FPIs के पास बॉन्ड में लगभग 3 लाख करोड़ रुपये हैं। वहीं, इनका इक्विटी में हिस्सा बाजार पूंजीकरण का करीब 16% है।

भविष्य में अमेरिका और भारत की ब्याज दरों में अंतर बढ़ सकता है। साथ ही, भारतीय बॉन्ड को वैश्विक इंडेक्स में शामिल करने की संभावना है। इससे विदेशी निवेशकों की मांग बढ़ेगी और बाजार में तरलता (Liquidity) बेहतर होगी।

केंद्रीय बैंक की बात को साफ तरीके से बताने का महत्व

SBI रिसर्च में बताया गया है कि केंद्रीय बैंक की संचार नीति ही मौद्रिक नीति की सबसे महत्वपूर्ण टूलकिट है। जून और अगस्त 2025 की MPC मीटिंग में निर्णय तो सभी ने मिलकर लिए, लेकिन सदस्यों ने अलग-अलग तरीके से अपने विचार बताए। जून में मुख्य चर्चा दर और पैसे के ट्रांसफर पर थी, इसलिए बाजार ज्यादा हिला नहीं। लेकिन अगस्त में सदस्यों ने वैश्विक जोखिम, खाने-पीने की कीमतें और अन्य मुद्दे उठाए, जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ गई।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस अलग-अलग राय को Weighted Thematic Divergence Index (WTDI) से मापा गया। इसका मतलब है कि नीति का असर सिर्फ दर के बदलाव से नहीं, बल्कि सदस्यों के तर्क और उनकी बातों की स्पष्टता से भी होता है।

मौद्रिक नीति की मुश्किलें और महंगाई का हाल

SBI रिसर्च ने यह भी कहा कि वर्तमान में CPI मुद्रास्फीति का निचला स्तर अभी नहीं पहुंचा है। GST रेशनलाइजेशन और आधार वर्ष संशोधन के कारण मुद्रास्फीति और 65-75 बेसिस पॉइंट तक कम हो सकती है। अनुभव दिखाता है कि 2019 में GST दरों में कटौती के बाद मुद्रास्फीति में लगभग 35bps की गिरावट आई थी।

नई CPI सीरीज के अनुसार FY26 और FY27 में मुद्रास्फीति 4% ± 2% के लक्ष्य के निचले स्तर पर बनी रहेगी। इसे देखते हुए, SBI का मानना है कि RBI के लिए सितंबर में 25bps की कटौती सबसे उपयुक्त और रणनीतिक कदम होगा। इससे निवेशकों को अच्छा संदेश मिलेगा और RBI को भविष्य की नीतियों में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।

कुल मिलाकर, SBI रिसर्च का कहना है कि RBI को सितंबर में 25bps की दर कटौती करनी चाहिए और इसके साथ अपनी नीति को साफ़ और स्पष्ट तरीके से समझाना चाहिए। दुनिया के बाजारों में यील्ड्स बढ़ रहे हैं, भारत में सरकारी और राज्य के कर्ज का परिपक्वता समय लंबा हो गया है, मुद्रास्फीति बहुत कम है, और विदेशी निवेशक भी एक्टिव हैं। इन सब बातों को देखते हुए समय पर सही निर्णय लेना और स्पष्ट संदेश देना जरूरी है। इस कदम से RBI निवेशकों और अर्थव्यवस्था दोनों को सकारात्मक संकेत देगा और दिखाएगा कि केंद्रीय बैंक भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार और आगे देखने वाला है।

First Published : September 22, 2025 | 11:04 AM IST