निर्यातकों के शीर्ष निकाय फियो ने आज वित्त मंत्रालय से छूट या शुल्कों के रिफंड का गलत दावा होने के मामले में अधिकारियों को निर्यात के लिए तैयार माल को जब्त करने की शक्ति देने वाले बजट के प्रावधान को वापस लेने की मांग की है।
उसने मंत्रालय को एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) के लिए रिफंड प्रस्ताव को भी बहाल करने की मांग की।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (फियो) के अध्यक्ष एस के सराफ ने कहा वित्त विधेयक के जरिये लाए गए कुछ निश्चित प्रावधानों का निर्यातों पर गंभीर असर है।
उन्होंने कहा कि सीमा शुल्क अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन (इसमें सामान का अनुचित तरीके से निर्यात का प्रयास किए जाने पर उसे जब्त करने का प्रावधान है) पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है क्योंकि यह कठोर और क्रूर है।
धारा 113 में एक उपखंड जोड़े जाने का प्रस्ताव है जिसमें कहा गया है कि ऐसे सामान को जब्त किया जा सकता है जिसमें अधिनियम के प्रावधान का उल्लंघन कर छूट या किसी शुल्क या कर या लेवी के रिफंड का गलत दावा कर उत्पाद का निर्यात किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि गलत दावा शब्द का विभिन्न प्रकार से व्याख्या की जा सकती है और यह निर्यातकों को फील्ड फॉर्मेशन की दया का पात्र बना देगा। ऐसा तब भी होगा जब छूट की दर की गलत गणना कर ली गई हो या किसी खास दर में उत्पाद के वर्गीकरण को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई हो।
सराफ ने रिपोर्टरों से कहा, ‘छूट की दर उत्पाद मूल्य का 2 फीसदी हो सकती है और इतने छोटे लाभ के लिए समूचे माल को जब्त नहीं किया जाना चाहिए। हम सरकार से सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 113 में नए उपखंड को जोडऩे के निर्णय पर पूनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं।’
सराफ ने यह भी कहा कि वित्त विधेयक ने आईजीएसटी अधिनियम की धारा 16 में संशोधन कर दिया है। इसके तहत आईजीएसटी के भुगतान पर निर्यातों की सुविधा को वापस ले लिया गया है।
जब तक इन बदलावों को अधिनियम में अधिसूचित नहीं किया जाता है तब तक निर्यातकों के पास या तो बॉन्ड/एलयूटी (समझौता) या आईजीएसटी के भुगतान पर निर्यात करने का विकल्प मौजूद है।
उन्होंने कहा अधिकांश निर्यातक आईजीएसटी भुगतान की सुविधा का लाभ उठा रहे थे क्योंकि इसमें रिफंड का तंत्र पूरी तरह से निर्बाध था जिस पर किसी तरह की लेनदेन लागत नहीं आती थी।
यदि आईजीएसटी प्रणाली पूरी तरह से निर्बाध रूप से कार्य कर रहा था और निर्यातक इस विकल्प को प्रमुखता दे रहे थे तब इसे अनावश्यक बना देने की कोई जरूरत नहीं थी। सराफ ने कहा कि यदि कर प्राधिकारियों को कोई मुश्किल हो रही है तो इसको लेकर चर्चा की जानी चाहिए ताकि एक उपयुक्त समाधान निकाला जा सके न कि जीएसटी की व्यवस्था को शुरू करने के समय पर निर्यातकों को दी गई एक बेहतर सुविधा को बंद कर दिया जाए।
उन्होंने कहा, ‘ऐसा होने पर मैं महसूस करता हूं कि सरकार निर्यातकों को अर्थव्यवस्था में नाले की तरह समझती है। आर्थिक विकास में निर्यातक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन हम देखते हैं कि निर्यातकों के साथ किया जाने वाला व्यवहार दुखद और कष्टपूर्ण है।’
उन्होंने कहा कि वस्तु और सेवाओं दोनों के बड़ी संख्या में निर्यातक अब तक 2019-20 और 2020-21 (दिसंबर 2020) तक के अपने दावों का निपटान होने का इंतजार कर रहे हैं।
