विभिन्न क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत पात्र कंपनियों को प्रोत्साहन राशि जारी होने में देर पर सरकार सख्त हो गई है। पीएलआई दावों की रकम देने में देर किए जाने पर चिंता जताते हुए कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने नीति आयोग को योजना से जुड़ी नोडल एजेंसियों के कामकाज की समीक्षा करने का सुझाव दिया है।
गौबा की अध्यक्षता में सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह की हालिया बैठक में नीति आयोग को सुझाव दिया गया कि पीएलआई योजना से जुड़ी परियोजना प्रबंधन एजेंसियों (पीएमए) के कामकाज की समीक्षा करने के लिए आयोग की अध्यक्षता में एक संस्थागत ढांचा तैयार किया जाए। पीएमए इस योजना के कार्यान्वयन, आवेदनों की जांच, प्रोत्साहन के लिए पात्रता निर्धारण, विनिर्माण इकाइयों के निरीक्षण आदि के लिए संबंधित मंत्रालयों की मदद करने के लिए जिम्मेदार हैं।
बैठक में नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) बीवीआर सुब्रमण्यन भी मौजूद थे। उनके अनुसार परियोजना प्रबंधन एजेंसियों और संबंधित मंत्रालयों के कामकाज की शुरुआती समीक्षा में पता चला है कि कई प्रमुख क्षेत्रों को भुगतान देर से हो रहा है।
बैठक के ब्योरे में भी कहा गया है, ‘कई मामलों में प्रोत्साहन के दावे निपटाने में काफी देर हो रही है। इसके अलावा परियोजना प्रबंधन एजेंसियों ने पर्याप्त संख्या में विषय विशेषज्ञ भी नियुक्त नहीं किए हैं, जबकि पिछली बैठक में इसका निर्देश दिया गया था।’
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने भी बैठक की कार्यवाही का ब्योरा देखा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इससे पहले खबर दी थी कि इस योजना के तहत वास्तवकि प्रोत्साहन राशि सरकार के 11,000 करोड़ रुपये के अनुमान से कम होगी। ब्योरे के अनुसार चालू वित्त वर्ष के लिए पीएलआई प्रोत्साहन वितरण लक्ष्य घटाकर 8,285 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
कुछ पीएलआई योजनाओं में प्रगति की रफ्तार उम्मीद से काफी कम है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि सरकार द्वारा निर्धारित शर्तें पूरी नहीं हो पाने के कारण लाभार्थी कंपनियां प्रोत्साहन का दावा नहीं कर पा रही हैं।
कुछ मामलों में शुरुआती निवेश की अवधि इस साल समाप्त हो रही है और दावा अगले वित्त वर्ष में ही किया जा सकेगा। बैठक में अधिकार प्राप्त समूह ने लाभार्थी कंपनियों के पीएलआई भुगतान दावे निपटाने की प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए एक सामान्य व्यवस्था की जरूरत बताई। उसमें कहा गया है कि उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) संबंधित मंत्रालयों या विभागों से विचार-विमर्श कर हरेक पीएलआई योजना दिशानिर्देश को जांच सकता है।
उसके बाद डीपीआईआईटी नीति आयोग के सीईओ की अध्यक्षता में अधिकार प्राप्त समिति जैसी संस्थागत व्यवस्था शुरू करने की सिफारिश कर सकता है। यह व्यवस्था जरूरत पड़ने पर दिशानिर्देशों की व्याख्या अथवा संशोधन करेगी ताकि दावे समय पर निपटाए जा सकें।
इसके लिए अधिकार प्राप्त समूह ने आयोग से हर तिमाही यह देखने के लिए कहा है कि कितने प्रोत्साहन दावों का भुगतान हुआ और पीएमए या संबंधित मंत्रालयों अथवा विभागों की परियोजना प्रबंधन एजेंसियों या अधिकारियों ने कितने परियोजना स्थलों के दौरे किए। आयोग को परियोजना प्रबंधन एजेंसियों की नियमित समीक्षा करने को भी कहा गया है ताकि नियमों का अनुपालन सुगमता से हो।
पीएलआई योजना के दायरे में फिलहाल मोबाइल फोन, ड्रोन, दूरसंचार, कपड़ा, वाहन, कंज्यूमर ड्यूरेबल, फार्मास्यूटिकल्स समेत 14 क्षेत्र हैं। इन्हें 5 परियोजना प्रबंधन एजेंसियां – भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, मेटालर्जिकल ऐंड इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स (इंडिया), भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था लिमिटेड और सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया संभाल रही हैं।
2020-21 और 2021-22 में शुरू इन 14 योजनाओं में भाग लेने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन राशि पिछले वित्त वर्ष से ही मिलनी शुरू हुई। लाभार्थियों को अब तक 4,415 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं। इसमें से 2,968 करोड़ रुपये का भुगतान 2022-23 में हुआ और दिसंबर, 2023 तक महज 1,447 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं, जिसमें से करीब 78 फीसदी प्रोत्साहन वितरण उन कंपनियों को किया गया, जो मोबाइल फोन के लिए पीएलआई योजना के तहत लाभार्थी हैं।