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अगस्त महीने की बैठक में भी मौद्रिक नीति समिति के आंतरिक और बाहरी सदस्यों के बीच मतभेद जारी रहे और दो बाहरी सदस्यों ने संभावित वृद्धि के कम होने के साथ ही उच्च स्तर की वास्तविक ब्याज दरों का हवाला देकर दरों में कटौती और रुख में बदलाव की वकालत की। वहीं दूसरी ओर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास सहित आंतरिक सदस्यों ने दरों और रुख में कोई बदलाव न किए जाने के लिए, महंगाई विशेषतौर पर खाद्य मुद्रास्फीति को लेकर अनिश्चितता का तर्क दिया।
एमपीसी के बाहरी सदस्य जयंत वर्मा ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई नीतिगत कदम उठाए गए हैं जिनमें डिजिटलीकरण, कर सुधार और बुनियादी ढांचा निवेश में बढ़ोतरी शामिल है। मेरे विचार से भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि दर को कम से कम 8 प्रतिशत तक बढ़ाया है।’
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में वास्तविक ब्याज 2.1 प्रतिशत है क्योंकि 2025-26 की पहली तिमाही के लिए लक्षित मुद्रास्फीति 4.4 फीसदी है। उनका कहना है कि इस माहौल में 1.5 प्रतिशत का वास्तविक दर पर्याप्त रूप से प्रतिबंधात्मक है। वर्मा ने कहा, ‘इसका अर्थ यह है कि बेहद कम वक्त में ही रीपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती की आवश्यकता है। लेकिन इस दिशा में सावधानी से कदम रखना भी महत्वपूर्ण होगा।’
मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने दरों और नीतिगत रुख में यथास्थिति बरकरार रखने के पक्ष में अपना समर्थन दिया। वर्मा और एक अन्य बाहरी सदस्य आशिमा गोयल ने मौजूदा समायोजन की स्थिति को हटाकर रुख में बदलाव करते हुए तटस्थ रुख अपनाने के साथ ही ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती के पक्ष में अपना समर्थन दिया।