बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप(पीपीपी) की बढ़ती हुई साझेदारी के लिए अलग निकाय बनाने के मुद्दे पर वित्त मंत्रालय और योजना आयोग में मतभेद की स्थिति बन गई है। इन परियोजनाओं पर लगभग 500 अरब डॉलर यानी 20000 अरब रुपये का खर्च आने का अनुमान है।
दरअसल योजना आयोग चाहता है कि पीपीपी प्रोजेक्ट की हरेक गतिविधि सरकार के तहत ही निष्पादित होनी चाहिए, जबकि वित्त मंत्रालय चाहता है कि यह अलग निकाय सरकार की पहुंच से बाहर होना चाहिए।
बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सरकार के अधीन कोई संस्था या इकाई बनाने का मतलब है एक अलग मंत्रालय बनाना। यही वजह है कि मंत्रालय इस बात के पक्ष में नहीं है।
योजना आयोग चाहता है कि पीपीपी प्रोजेक्ट को अलग तो कर देना चाहिए, लेकिन इसे सरकार के अधीन ही रहना चाहिए। इस अलग संस्था में 40 प्रतिशत हिस्सा योजना आयोग का होना चाहिए और बाकी का 60 प्रतिशत हिस्सा इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े हुए मंत्रालयों को मिलना चाहिए। आयोग यह भी मानता है कि इस अलग निकाय को सारे कार्य सौंप दिए जाने चाहिए और उसे पूरे अधिकार भी मिलने चाहिए।
जबकि वित्त मंत्रालय तर्क दे रहा है कि भारत में इस संस्था को पार्टनरशिप यूके की तर्ज पर काम करना चाहिए। पार्टनरशिप यूके की स्थापना 2000 में की गई थी और यह संगठन ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण से बाहर है। पार्टनरशिप यूके ब्रिटिश ट्रेजरी और कई वित्तीय संस्थानों का एक संयुक्त उद्यम है। इसमें ट्रेजरी की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत की है, जबकि बाकी की हिस्सेदारी एचएसबीसी, बार्कलेज और ब्रिटिश लैंड जैसे वित्तीय संस्थानों के पास है। यह इकाई पीपीपी की नीति निर्धारण और अनुबंधों के मानकीकरण बनाने का काम करती है। यह इकाई प्रोजेक्ट के मूल्यांकन और क्रियान्वयन करने का भी काम करती है। जब कभी पीपीपी नीति मुसीबत में आती है, उस समय भी ये इकाई सलाह देने का काम करती है।
नॉर्थ ब्लॉक का मानना है कि इस अलग संस्था में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत होनी चाहिए। अधिकारी के मुताबिक इस संस्था को रियायत गठजोड़, विशिष्ट शोध, नीति की वकालत और संबंधित सूचना प्रेषित करने का काम करना चाहिए।
अधिकारी ने बताया कि जब से ब्रिटिश प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन भारत आए हैं तब से इस तरह के निकाय की बात जोर पकड़ने लगी है। लेकिन योजना आयोग और वित्त मंत्रालय में मतभेद के कारण यह मामला लटका पड़ा है।
11 वीं पंचवर्षीय योजना के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर 500 अरब डॉलर के खर्च आने की संभावना है। इसमें निजी क्षेत्र का योगदान 30 प्रतिशत यानी 155 अरब डॉलर रहने की संभावना है।
