अर्थव्यवस्था

महंगाई बढ़ने की आशंका से बेफिक्र बाजार

Published by
पुनीत वाधवा
Last Updated- February 20, 2023 | 11:30 PM IST

विश्लेषकों का कहना है कि बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति आने वाले दिनों में बाजार के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसे अभी नजरअंदाज किया जा रहा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित भारत की खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2023 में तीन महीने के उच्च स्तर पर 6.52 फीसदी हो गई, जो दिसंबर में 5.72 फीसदी थी और नवंबर 2022 में 5.88 फीसदी थी।

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के अनुसार, फरवरी में मुद्रास्फीति का आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के महत्त्वपूर्ण रह सकता है क्योंकि अगर यह 6 फीसदी से ऊपर बना रहता है तो आगे भी दर वृद्धि पर बहस जारी रह सकती है।

सबनवीस कहते हैं, ‘बाजार आगामी महीनों में भी दर वृद्धि के विचार को खारिज नहीं कर सकता है, हालांकि यह भी तय है कि निर्णय आंकड़े आधारित रहेंगे। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति ने गेहूं द्वारा संचालित उच्च अनाज मुद्रास्फीति को लेकर कुछ बहस जरूर छेड़ दी है। लेकिन, NSO ने कुछ भार भी समायोजित किए हैं। अब जब PDS पर कोई लागत नहीं है, इसलिए इसका भार मुक्त बाजार कीमतों पर पड़ा है। लेकिन, हमारा मानना है कि यह 0.2 फीसदी से अधिक भिन्न नहीं होगा। महंगाई अभी भी 6.3 फीसदी या इसके आसपास रहेगी।’

मुद्रास्फीति को लेकर एक और चिंता 2023 में उप-मानसून सीजन की संभावना है। अमेरिकी सरकार की मौसम एजेंसी राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) ने 2023 में अल नीनो की संभावना का संकेत दिया है। इसका मतलब हुआ कि सामान्य से कम बारिश। विश्लेषकों ने कहा, यह बोआई को प्रभावित कर सकता है और इस प्रकार भारत में फसल की पैदावार कम हो सकती है, जिससे कृषि आय को नुकसान पहुंच सकता है और मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल सकता है।

हाल की एक रिपोर्ट में नुवामा रिसर्च के अवनीश रॉय, रुषभ भाचावत और जैनम गोसर ने लिखा है, ‘आखिरी एल नीनो 2018 में थी, जब भारत में सामान्य से कम बारिश हुई थी। इसके बाद से भारत में लगातार चार अच्छे मानसून रहे हैं। इसको देखते हुए, पांचवें सामान्य मानसून की संभावना इस स्तर पर क्षीण प्रतीत होती है। स्पष्टता आमतौर पर अप्रैल-मई के आसपास ही उभरती है।’

नुवामा के विश्लेषकों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में पूरे भारत में बारिश लंबी अवधि की औसत बारिश से लगभग 6 फीसदी अधिक थी। फिर भी, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और झारखंड जैसे घनी आबादी वाले राज्यों ने कम बारिश के कारण धान की बोआई प्रभावित होने की जानकारी दी।

विश्व स्तर पर भी स्थिर मुद्रास्फीति चिंता का कारण प्रतीत होती है। पिछले हफ्ते, फेडरल रिजर्व (यूएस फेड) के दो अधिकारियों ने सुझाव दिया कि मुद्रास्फीति को कम करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक को ब्याज दरों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है।

जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार के अनुसार यूएस फेड के संभावित आक्रामक रुख से अमेरिकी बाजारों में तेजी पर लगाम लगेगी और इससे भारतीय बाजार भी एक दायरे में रहेगा, उच्च स्तर पर बिक्री और निचले स्तर पर खरीदारी को आकर्षित करेगा।

एक निवेश रणनीति के रूप में, उनका सुझाव है कि चुनिंदा बैंक स्टॉक, लार्ज-कैप सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और पूंजीगत सामान कंपनियों के स्टॉक, हालिया सुधार के बाद अब उचित हैं और इसमें गिरावट हो सकती है।

वह कहते हैं, ‘इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि इक्विटी बाजार उच्च मुद्रास्फीति के जोखिम की अनदेखी कर रहे हैं, जो बहुत धीमी गति से घट रही है। कुछ फेड अधिकारियों की टिप्पणियां कि उन्हें विस्तारित अवधि के लिए तेजतर्रार रहना पड़ सकता है और मार्च फेड मीट में 50 आधार अंक की वृद्धि का समर्थन कर सकते हैं, जो कि इक्विटी बाजारों के लिए नकारात्मक हैं।’

First Published : February 20, 2023 | 11:24 PM IST