इस साल अगस्त में भारत का विदेश में प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) पिछले महीने और पिछले साल की समान अवधि की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत घटकर 1 अरब डॉलर रह गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगस्त में ओडीआई में गिरावट की वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता हो सकती है, क्योंकि अमेरिकी शुल्क इसी महीने में लागू हुए थे।
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2026 में अप्रैल से अगस्त के दौरान वास्तविक ओडीआई का प्रवाह पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 29 प्रतिशत बढ़कर 10.2 अरब डॉलर हो गया। बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘वैश्विक माहौल में अनिश्चितताओं और अमेरिकी शुल्क लागू होने के साथ कंपनियां देश में ही निवेश करके जोखिम घटाना पसंद कर रही हैं।’
अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है, जिससे टेक्सटाइल, फुटवियर और मरीन उत्पादों जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों को खतरा है।
इस वित्त वर्ष की शुरुआती अवधि के दौरान भारत से ओडीआई का प्रवाह विशेष रूप से अप्रैल में बढ़ा था, जब पिछले साल की समान अवधि की तुलना में विदेश में निवेश की गई राशि तीन गुना बढ़कर 2.76 अरब डॉलर हो गई थी। यह भारतीय कंपनियों की बढ़ती वैश्विक उपस्थिति का संकेत है।
एमके ग्लोबल की अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा, ‘इस वित्त वर्ष की शुरुआत में उल्लेखनीय वृद्धि के बाद अब भारतीयों का विदेश में निवेश कम हो सकता है। भारतीय कंपनियां वैश्विक एमएनसी बनना चाहती हैं और विदेश में विस्तार करना चाहती हैं। पहले निवेश में वृद्धि के बाद अब चीजें स्थिर हो रही हैं।’
वित्त वर्ष 2026 में अप्रैल-अगस्त के दौरान विदेश में सबसे ज्यादा सिंगापुर में 3.1 अरब डॉलर निवेश किया गया। उसके बाद अमेरिका में 1.8 अरब डॉलर और फिर मॉरिशस 1.3 अरब डॉलर निवेश किया गया। भारतीयों ने सबसे ज्यादा वित्तीय, बीमा और बिजनेस सर्विस में निवेश किया। वित्त वर्ष 2026 में अप्रैल से अगस्त के दौरान इस क्षेत्र में निवेश बढ़कर 4.3 अरब डॉलर हो गया। इसके बाद ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज और संचार सेवाओं में ओडीआई 1.8 अरब डॉलर रहा। वहीं वित्त वर्ष के पहले 5 महीने के दौरान विनिर्माण में 1.4 अरब डॉलर निवेश हुआ।