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एमपीसी के लिए विश्वसनीयता कायम रखना है सबसे महत्त्वपूर्ण : वर्मा

Last Updated- December 12, 2022 | 1:37 AM IST

अगस्त महीने में हुई भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक में समिति के उदार रुख को बनाए रखने के फैसले से असहमति जताने वाले जयंत आर वर्मा एकमात्र सदस्य थे। वर्मा समिति के सदस्य होने के साथ साथ भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में प्रोफेसर भी हैं। वर्मा ने मनोजित साहा के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में इसका खुलासा किया कि वह क्यों रिवर्स रीपो दर को बढ़ाना चाहते हैं और उनकी राय में अब उदार रुख को बनाए रखने की जरूरत क्यों नहीं है। मुख्य अंश:
 
क्या आप मानते हैं कि रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है?
 
मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि मेरी राय में सामान्यीकरण का आरंभ रिजर्व रीपो दर में इजाफा करने के साथ होगा। फिलहाल, मुद्रा बाजार रिवर्स रीपो दर पर है। जबतक यह उठता नहीं है तब तक मुझे नहीं लगता कि सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
 
क्या आपको लगता है कि रिजर्व बैंक अपने रुख को उदार रखते हुए भी सामान्यीकरण की प्रक्रिया आरंभ कर सकता है? 
 
मुझे लगता है कि संभवत: आप ऐसा कर सकते हैं। आप रुख में बदलाव लाये बिना भी कुछ हद तक सामान्यीकरण कर सकते हैं।
 
नकदी सामान्यीकरण और दर सामान्यीकरण के लिए आदर्श क्रम क्या होना चाहिए? 
 
मैं इस पर थोड़े अलग बिंदु से अपने विचार रखता हूं। भले ही रीपो दर 4 फीसदी है। हुआ यह है कि 3.35 फीसदी (रिवर्स रीपो दर) अर्थव्यवस्था में प्रभावी ब्याज दर हो गया है। यह 4 फीसदी एक तरह से अप्रासंगिक हो गया है। अर्थव्यवस्था में प्रभावी ब्याज दर 4 फीसदी नहीं है बल्कि 3.35 फीसदी पर है। मुझे ऐसा लगता है कि 3.35 फीसदी ऐच्छिक स्तर से कम है। 4 फीसदी की ब्याज दर का होना और इसे एक उचित समयावधि के लिए इस पर बनाए रखना मेरी समझ से महत्त्वपूर्ण बात है। 
 
आर्थिक रिकवरी के कुछ संकेत नजर आ रहे हैं लेकिन समग्र मांग का अब भी जोर पकडऩा बाकी है। ऐसे में उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस बिंदु पर कदम में किस प्रकार का बदलाव किया जाना चाहिए? 
 
यदि हम महमारी के बाद मार्च 2020 में हुई एमपीसी की बैठक पर नजर डालें जिसमें रिवर्स रीपो दर में कटौती की गई थी और उस महीने के अंत में रही दरों को आज से तुलना करें तो ये उससे काफी कम हैं।
अर्थव्यवस्था पर महामारी के असर के समाप्त होने के सदर्भ में देखें तो हां, मानवीय आपदा के रूप में इस महामारी का स्वरूप पिछले वर्ष से कम भयानक नहीं हैं लेकिन इसके आर्थिक असर की बात करें तो यह पिछली बार की तुलना में बहुत कम रहा है। ऐसे में आर्थिक और मौद्रिक नीति की दृष्टिï से देखें तो हम महामारी से बाहर आ रहे हैं। यदि ऐसा है तो सबसे बुरे वक्त में हमने जो दर तय किया था वह अब भी उचित कैसे है?
 
यदि तीसरी या चौथी लहर आती भी है तो भी अर्थव्यवस्था पर उस तरह का असर होने की आशंका नहीं है। यदि अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा वक्त गुजर चुका है तो हम उदार रुख पर कैसे कायम रह सकते हैं? मैं महमारी को मानवीय आपदा और महामारी आपदा के तौर पर उसके मध्य के अंतर को स्पष्टï कर रहा हूं। आर्थिक दृष्टिï से हम पूरी तरह से महामारी से बाहर आ रहे हैं।
 
मुद्रास्फीति लगातार उच्च स्तर पर बनी हुई है, ऐसे में आपको लगता है कि यह एमपीसी की विश्वसनीयता को खतरे में डालती है? 
 
इसी बात को लेकर मेरी पूरी असहमति है। एमपीसी के लिए उस विश्वसनीय को बरकरार रखना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए जब तक एमपीसी की विश्वसनीयत बनी हुई है तब तक कार्रवाई की गंभीरता कम है। जब विश्वसनीयता कमजोर पड़ती है तो उसी प्रभाव को हासिल करने के लिए आपको कठोर कदम उठाने की आवश्यकता पड़ती है। आज जब एमपीसी की विश्वसनीय बनी हुई है तो चरणबद्घ तरीके से सामान्यीकरण को अपना कर हम जो कुछ भी हासिल कर सकते हैं, बाद में विश्वसनीयता के कमजोर पडऩे पर उसे हासिल करने के लिए दर में वृद्घि करने की जरूरत पड़ सकती है।  

First Published - August 24, 2021 | 11:20 PM IST

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