तकरीबन तीन वर्ष पहले मोदी सरकार ने कॉर्पोरेशन कर का नया ढांचा पेश किया था। शुक्रवार 20 सितंबर, 2019 को यानी कोविड महामारी से स्वास्थ्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होने के कुछ माह पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉर्पोरेशन कर दरों में भारी कटौती की घोषणा की थी ताकि अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे मंदी के संकेतों के मद्देनजर वृद्धि पर बल दिया जा सके।
उन सभी भारतीय कंपनियों के लिए जो विभिन्न प्रकार की रियायतों और प्रोत्साहन का लाभ नहीं ले रही हैं, कर दर को घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया। इसमें 10 फीसदी का अधिभार तथा चार फीसदी उपकर शामिल किया गया। प्रभावी तौर पर यह 35 प्रतिशत की तत्कालीन दर में सीधे 10 फीसदी की कमी थी। एक अक्टूबर 2019 के बाद परिचालन शुरू करने वाली विनिर्माण कंपनियों के लिए कॉर्पोरेशन कर दर को 29 प्रतिशत से घटाकर 17 प्रतिशत कर दिया गया। अधिभार और उपकर भी इसी में शामिल था। न्यूनतम वैकल्पिक कर दर को भी 21-22 फीसदी से कम करके 17 फीसदी कर दिया गया। सरकार द्वारा साल 2019 में लिए गए निर्णय ने भारतीय कंपनियों से होने वाले कर संग्रह को किस प्रकार प्रभावित किया? शुरुआत में सरकार ने अनुमान लगाया था कि कर दरों में कटौती के कारण उसे 1.45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। बाद में कहा गया कि इसमें से कुछ नुकसान की भरपाई करों में उछाल से हो जाएगी। चाहे जो भी हो यह आकलन करना अहम है कि कर कटौती ने सरकार के राजस्व में अहम भूमिका निभाई।
परंतु इस कवायद के पहले यह आंकना उचित होगा कि विगत तीन दशकों में कॉर्पोरेट कर दर का दायरा क्या रहा है? 2019 के निर्णय को उसी संदर्भ में रखकर देखना होगा। यह याद रहे कि सन 1991 में मनमोहन सिंह के पहले बजट में राजस्व की चिंता के कारण कॉर्पोरेशन कर दर को 40 फीसदी से बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया गया था। सन 1994 में इसे दोबारा घटाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया। पहली बड़ी कटौती 1997 में हुई जबतत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अधिभार समाप्त करते हुए इसे घटाकर 35 प्रतिशत कर दिया। परंतु सन 2000 के बाद से अधिभार वापस लागू कर दिया गया और अगले पांच वर्षों के लिए कर दर एक बार फिर 36-38 प्रतिशत हो गई। 2005 में एक बार फिर चिदंबरम ने दरों को कम करके 30 प्रतिशत कर दिया। हालांकि अधिभार के साथ वास्तविक दर 33 प्रतिशत थी।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 2015 से ही दरों में चरणबद्ध कमी देखने को मिलने लगी। 2015-16 में अरुण जेटली के बजट में वादा किया गया कि कॉर्पोरेशन कर दर को चार वर्ष में घटाकर 25 फीसदी किया जाएगा तथा रियायतों को चरणबद्ध ढंग से समाप्त किया जाएगा। अगले वर्ष 5 करोड़ रुपये से कम के सालाना कारोबार वाली कंपनियों के लिए अधिभार और उपकर के अलावा दरों को घटाकर 29 प्रतिशत कर दिया गया। नई विनिर्माण कंपनियों को केवल 25 फीसदी कर देने को कहा गया, बशर्ते कि उन्होंने किसी रियायत का लाभ न लिया हो।
एक वर्ष बाद जेटली ने 50 करोड़ रुपये तक के सालाना कारोबार वाली सभी कंपनियों के लिए कर दर को घटाकर 25 फीसदी (अधिभार और उपकर के अलावा) कर दिया। इससे सभी भारतीय कंपनियों में से 96 फीसदी इसके दायरे में आ गईं। फरवरी 2018 में जेटली ने यह सुविधा 250 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली सभी कंपनियों को प्रदान कर दी जिससे 99 फीसदी भारतीय कंपनियां इसके दायरे में आ गईं। जुलाई 2019 में सीतारमण ने अपने पहले बजट में 400 करोड़ रुपये तक के सालाना कारोबार वाली सभी कंपनियों को 25 फीसदी कर के दायरे में ला दिया। इस कदम के साथ करीब 99.3 फीसदी भारतीय कंपनियां कम कर दर के दायरे में आ गईं। सितंबर 2019 में अधिभार और उपकर के साथ कर दर को घटाकर 22 फीसदी कर दिया गया।
यह ध्यान देने वाली बात है कि मोदी सरकार बीते 30 सालों में कॉर्पोरेशन कर दर में सबसे तेजी से कमी करने वाली सरकार रही है। केवल तीन वर्ष में देश के कारोबारी जगत की कुल कॉर्पोरेशन कर दर 10 फीसदी कम की गई। रियायतों और छूट को समाप्त करने से इसमें और कमी आई।
वित्त मंत्रालय के 2019-20 के आंकड़े दर्शाते हैं कि कमी के पहले ही वर्ष करीब 16 प्रतिशत कंपनियां, जो उस वर्ष कुल आय के 62 फीसदी के लिए उत्तरदायी थीं, ने नयी योजना का चयन किया तथा रियायतों का त्याग कर दिया।
यह मानने की पर्याप्त वजह है कि अगले दो वर्षों के आंकड़ों में और अधिक कंपनियों ने नयी योजना को अपनाया होगा। यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां अधिकांश कंपनियों पर पारदर्शी ढंग से कर लगेगा और रियायतों का चतुराईपूर्ण ढंग से लाभ उठाने की कोई गुंजाइश नहीं। आश्चर्य नहीं कि 2019-20 में कॉर्पोरेशन कर की प्रभावी दर घटकर 22 फीसदी रह गई जबकि 2018-19 में यह 28 फीसदी थी। 2017-18 की प्रभावी दर 29 फीसदी से अधिक थी।
क्या कर कटौती के बाद वित्त मंत्रालय की आशंका के अनुसार सरकार ने 1.45 लाख करोड़ रुपये का राजस्व गंवाया? 2019-20 में कुल कॉर्पोरेशन कर संग्रह 16 फीसदी घटकर 5.57 लाख करोड़ रुपये रह गया जबकि 2018-19 में यह 6.63 लाख करोड़ रुपये था। लेकिन कुल कमी 1.45 लाख करोड़ रुपये नहीं बल्कि सिर्फ एक लाख करोड़ रुपये रह गई। 2020-21 के कर संग्रह के आंकड़े प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि वह वर्ष कोविड से प्रभावित था।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षा के ताजा प्रारंभिक आंकड़े 2021-22 के हैं और उस वर्ष यह संग्रह बढ़कर 7.12 लाख करोड़ रुपये हो गया यानी यह 2018-19 से काफी अधिक रहा। जीडीपी में हिस्सेदारी की बात करें तो 2021-22 में कॉर्पोरेशन कर अभी भी तीन फीसदी हिस्सेदार था, यानी 2018-19 के 3.5 फीसदी से कम। लेकिन यह आशा करना अनुचित नहीं होगा कि कॉर्पोरेशन कर राजस्व इस अनुपात को जल्दी पीछे छोड़ देगा। वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में अग्रिम कर संग्रह में स्वस्थ वृद्धि नजर आती रही। कर देनदारी भी अलग-अलग आय के स्तर पर तमाम कंपनियों में विस्तारित रहा है और इससे समग्र में सुधार होना चाहिए।
2019 में कॉर्पोरेशन कर दर में कमी करने का निर्णय एक बार फिर यह रेखांकित करता है कि कम रियायतों के साथ कर कटौती से हासिल स्थिर और कम दर वास्तव में राजस्व बढ़ाने में मदद करती है क्योंकि इससे अनुपालन सुधरता है और दायरा भी व्यापक होता है। कर दरों में कटौती के कारण राजस्व की हानि होने की आशंका अक्सर बढ़ाचढ़ाकर पेश की जाती है। 2019 का उदाहरण तो हमें यही बताता है। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में जब केंद्र और राज्य सरकारें अनेक करों को लेकर अपना रुख तय करेंगी तो वे इस सिद्धांत को ध्यान में रखेंगी।
