भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति में बाहरी सदस्य जयंत वर्मा फरवरी 2024 की समीक्षा बैठक से ही ब्याज दर में कटौती के लिए मत दे रहे हैं। मनोजित साहा से बातचीत में उन्होंने कहा कि दर में कटौती में देरी करने से वृद्धि की कुर्बानी देनी होगी तथा इस तरह का नुकसान एक साल और करना दुर्भाग्यपूर्ण होगा। अगस्त की बैठक बाहरी सदस्यों के लिए आखिरी बैठक थी, जिनका कार्यकाल 4 साल होता है। संपादित अंश…
मौद्रिक नीति समिति की बैठक के ब्योरे में आपने कहा है कि पिछले कुछ साल के दौरान उठाए गए कई नीतिगत कदमों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर क्षमता 8 फीसदी के आसपास पहुंच गई है। लेकिन एक विचार यह भी है कि उत्पादन में एक अंतर है, जिससे मांग के दबाव का संकेत मिलता है। आप महंगाई दर पर मांग की ओर से पड़ने वाले दबाव के असर को किस तरह से देखते हैं?
मुझे कोई अतिरिक्त मांग या सरगर्मी नजर नहीं आ रही है। इसके विपरीत मांग की कमी को लेकर तमाम संकेत हैं। मुख्य महंगाई दर अत्यंत नीचे है, निजी पूंजीगत व्यय की बहाली में देरी हो रही है और उपभोक्ताओं का भरोसा कम स्तर पर है। महंगाई दर में कमी की सुस्त रफ्तार खाद्य आपूर्ति के झटकों की वजह से है, न कि मांग के दबाव की वजह से है।
आपने यह भी कहा है कि धनात्मक वास्तविक ब्याज दर 2.1 फीसदी है और रीपो रेट में 50 आधार अंक कटौती करने की गुंजाइश है। ऐसा विचार है कि तटस्थ दर या वास्तविक दर एक सैद्धांतिक अवधारणा है और नीति निर्माण के मकसद से यह भ्रमित करने वाली है। आपकी क्या राय है?
यह सही है कि तटस्थ दर का अनुमान लगाने में कई कठिनाइयां है, लेकिन मौद्रिक नीति तय करते समय कुछ अनुमानों (चाहे इकोनॉमेट्रिक हों या जजमेंटल) की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। मौद्रिक नीति की सख्ती के लिए मूल्यांकन का सिर्फ एक मानदंड वास्तविक ब्याज दर है। इस मकसद के लिए नॉमिनल रीपो रेट बेकार है।
मौद्रिक नीति का असर 3 से 5 तिमाही बाद दिखता है। अगर मौद्रिक नीति में ढील देने में 2025-26 तक की देरी की जाती है तो इससे वित्त वर्ष 2026-27 की वृद्धि दर जोखिम में पड़ेगी। हम पहले ही 2024-25 में जीडीपी की एक फीसदी वृद्धि गंवाने की ओर हैं और एक बार फिर 2025-26 में ऐसा होगा। इस नुकसान को एक और साल खींचना दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
मौद्रिक नीति समिति के पास सरकार द्वारा तय वैधानिक आदेश है। हमारा काम उस लक्ष्य के अनुरूप काम कहना है, जो समग्र (हेडलाइन) खुदरा महंगाई से जुड़ा है। यह सरकार को फैसला करना होगा कि जरूरी होने पर वह लक्ष्य में संशोधन करे।
मैं महंगाई के लचीले लक्ष्य के पक्ष में रहा हूं, जो अनपेक्षित झटकों से निपटने का प्रभावी साधन है। कुल मिलाकर मैं अपने अनुभव से संतुष्ट हूं और इसमें सुधार करने को लेकर मेरा कोई सुझाव नहीं है।