प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
नवंबर में विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियां 9 माह के निचले स्तर पर आ गईं। अमेरिकी शुल्क की वजह से निर्यात ऑर्डर में कमी आने और वस्तु एवं सेवा कर की दर में कटौती का असर कम होने की वजह से ऐसा हुआ है।
एसऐंडपी ग्लोबल द्वारा संकलित आज जारी समग्र एचएसबीसी पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) आंकड़ों से पता चलता है कि नवंबर में विनिर्माण पीएमआई गिरकर 56.6 पर आ गया है, जो अक्टूबर में 59.2 पर था। इसके पहले फरवरी में समग्र विनिर्माण पीएमआई 56.3 पर था। एचएसबीसी में चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी ने कहा कि भारत के नवंबर के पीएमआई आंकड़ों से पुष्टि होती है कि अमेरिकी शुल्कों का विनिर्माण के विस्तार पर असर पड़ा है और इसमें सुस्ती आई है। नए निर्यात ऑर्डर घटकर 13 महीने के निचले स्तर पर आ गए हैं।
उन्होंने कहा, ‘भविष्य की उम्मीदों का संकेत देने वाले कारोबारी विश्वास में नवंबर में बड़ी गिरावट आई है। यह शुल्क के असर की चिंता को दिखाता है। वस्तु एवं सेवा कर में कटौती से मिली ताकत भी संभवतः शुल्क के असर को कम करने के लिए अपर्याप्त है।’
सर्वे में 50 से अधिक अंक प्रसार और इससे कम अंक संकुचन का संकेतक है। बहरहाल समग्र आंकड़े लगातार 53वें महीने प्रसार के क्षेत्र में बने हुए हैं।
सर्वे में कहा गया है, ‘भारत के विनिर्माताओं के ऑर्डर बुक वाल्यूम में तेजी दिखी, जिसकी वजह प्रतिस्पर्धी मूल्य, सकारात्मक मांग और ग्राहकों की व्यापक रुचि है। कुल मिलाकर वृद्धि 9 माह के निचले स्तर पर है। बाजार की चुनौतीपूर्ण स्थिति की खबरों, परियोजना शुरू होने में देरी और फर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण ऐसा हुआ है।’
बिक्री में सुस्त वृद्धि के कारण खरीद की मात्रा में वृद्धि और नौकरियों का सृजन सुस्त रहा है। नवंबर में महंगाई दर भी कम हुई है, जबकि इनपुट लागत और बिक्री का शुल्क क्रमशः 9 और 8 महीनों की तुलना में सुस्त दर से बढ़ा है।
हालांकि कंपनियों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बिक्री अनुकूल बनी हुई है। इससे अफ्रीका, एशिया, यूरोप व पश्चिम एशिया में अधिक बिक्री के संकेत मिलते हैं। कुल मिलाकर वृद्धि की गति में थोड़ी कमी आई है। औसतन नए निर्यात ऑर्डर एक साल में सबसे सुस्त गति से बढ़े हैं।
रोजगार के मोर्चे पर देखें तो सर्वे में कहा गया है कि भारत के विनिर्माताओं ने अपनी भर्ती गतिविधियां और खरीद गतिविधियां नए ऑर्डर में वृद्धि के मुताबिक सुस्त की है। खरीद गतिविधियां फरवरी के बाद सबसे सुस्त रही हैं।