पिछली कुछ शताब्दियों के झटकों के बाद, अब चीन और भारत फिर से ग्लोबल अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने की राह पर हैं। एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस दशक के अंत तक दोनों देश ग्लोबल GDP का 30% से अधिक योगदान देंगे। डॉलर के हिसाब से अमेरिका सबसे अमीर देश रहेगा, लेकिन खरीदारी की क्षमता (PPP) के हिसाब से भारत और चीन तेजी से बढ़ रहे हैं। यह बदलाव ग्लोबल आर्थिक और राजनीतिक संतुलन में बड़ा असर डाल सकता है।
DBS बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अर्थव्यवस्था में पिछले 10 सालों में ज्यादा ध्यान पश्चिमी देशों के साथ संबंध और निर्यात बढ़ाने पर रहा। अप्रैल-जून 2025 में GDP ने 7.8% की बढ़त दिखाई, लेकिन देश के अंदर सामान और सेवाओं की मांग कमजोर रही। निवेश कम हुआ, GDP और मजदूरी में वृद्धि धीमी रही, और लोग कम बचत कर पाए। बैंक जमा और कर्ज की बढ़त भी पिछले चार साल में सबसे कम रही। शेयर बाजार में भी पिछले सालों जैसा उत्साह नहीं दिखा। इन सभी संकेतों ने सरकार और नीति बनाने वालों को साफ बता दिया कि घरेलू मांग और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस चुनौती का सामना करने के लिए 2025 की शुरुआत से ही तीन बड़े कदम उठाए गए। फरवरी में मध्यम और निम्न-आय वाले लोगों के लिए आयकर दरें कम की गईं। फरवरी से जून तक, RBI ने नीतिगत ब्याज दर 100 बेसिस पॉइंट घटाई, ताकि अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी को बढ़ावा मिले। सितंबर की शुरुआत में GST सुधार लागू किए गए, जिसमें कई हाई टैक्स स्लैब हटा दिए गए। इन कदमों से घरेलू खपत, आय और निवेश को बढ़ावा मिलेगा और भारत की आर्थिक वृद्धि मजबूत होगी।
अमेरिका ने अपने टैरिफ को 50% तक बढ़ाया है, जिससे फार्मा और सेमीकंडक्टर सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अमेरिका के साथ संबंध बनाए रखे हैं, लेकिन अब यूरोप, सिंगापुर और चीन के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने पर भी ध्यान दे रहा है। इस कदम से भारत की अर्थव्यवस्था को ग्लोबल झटकों से बचाने में मदद मिलेगी।
भारतीय शेयर बाजार में पिछले कुछ सालों की तेजी ने यह दिखाया है कि मल्टीनेशनल कंपनियां अब भारत में अपनी कंपनियों को लिस्ट करना चाहती हैं। इसके साथ ही, कई भारतीय कंपनियों ने हाई PE वाले बाजारों में निवेश किया और जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में M&A के जरिए अपना विस्तार किया। इससे न केवल पैसा बनेगा, बल्कि भारतीय मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नॉलजी सेक्टर को भी नई तकनीक और मौके मिलेंगे।
इस रिपोर्ट से साफ है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और देश के भीतर मांग बढ़ाने के लिए नए कदम उठा रहा है, ताकि दुनिया में होने वाले आर्थिक बदलावों के बीच स्थिरता और ग्रोथ बनी रहे।