प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.8 फीसदी रही जो पिछली पांच तिमाही में सबसे अधिक है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में आई तेजी से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि को गति मिली जबकि उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों के आधार पर पहले इसमें नरमी की आशंका जताई जा रही थी।
अधिकतर अर्थशास्त्री मानते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए 50 फीसदी के उच्च शुल्क के कारण वित्त वर्ष 2026 की बाकी तिमाहियों में वृद्धि की गति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। सबसे आशावादी अनुमान भारतीय स्टेट बैंक का था, जिसने पहली तिमाही में 6.8 से 7 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया था।
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जून तिमाही में नॉमिनल जीडीपी 8.8 फीसदी की धीमी गति से बढ़ी जबकि वित्त मंत्रालय ने पूरे वित्त वर्ष 2026 के लिए 10.1 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया है। अनुमान से कम नॉमिनल जीडीपी वृद्धि से सरकार के लिए राजकोषीय घाटे और कर्ज-जीडीपी अनुपात के लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि वृद्धि मजबूत रहने की उम्मीद थी मगर जून तिमाही का प्रदर्शन ‘उम्मीदों से परे’ रहा है। उन्होंने कहा, ‘शुल्क का प्रभाव भले ही 0.2 से 0.4 फीसदी तक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है मगर अर्थव्यवस्था इस साल 6.5 फीसदी की वृद्धि दर दर्ज करने के लिए तैयार दिख रही है।’
क्रिसिल की प्रधान अर्थशास्त्री दीप्ति देशपांडे ने कहा कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे शुल्क और वैश्विक अनिश्चितताओं का असर इस वित्त वर्ष में घरेलू निजी निवेश पर पड़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘भारत और अमेरिका के बीच व्यापार करार नहीं होने की स्थिति में कुछ क्षेत्रों को बड़े प्रभाव के लिए तैयार रहना होगा, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। देश के कुल निर्यात में करीब 45 फीसदी योगदान इसी क्षेत्र का है।’
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान सेवा क्षेत्र में आठ तिमाही में सबसे अधिक 9.3 फीसदी की तेजी आई। लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं (9.8 फीसदी) और वित्तीय, रियल एस्टेट तथा पेशेवर सेवाएं (9.5 फीसदी) की बदौलत सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन में तेजी आई। हालांकि ऋण आवंटन में नरमी देखी गई।
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व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट, संचार और प्रसारण सेवाओं का प्रदर्शन पहली तिमाही में 8.6 फीसदी बढ़ा, जो आठ तिमाही में सबसे अधिक है। वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र चार तिमाही में सबसे अधिक 7.7 फीसदी बढ़ा। श्रम बहुल निर्माण क्षेत्र की वृद्धि 9 तिमाही में सबसे कम 7.6 फीसदी रही। जून तिमाही में कृषि उत्पादन में 3.7 फीसदी का इजाफा हुआ जो वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में दर्ज की वृद्धि की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है। वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में निर्यात बढ़ा था मगर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह फिर से घट गया।
वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में निजी खर्च की वृद्धि पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही की तुलना में 7 फीसदी बढ़ी है जो बेहतर ग्रामीण मांग को दर्शाती है। सरकारी व्यय 7.4 फीसदी की दर से बढ़ी, जिसे कम आधार का फायदा मिला। सकल स्थिर पूंजी निर्माण के आधार पर मापी गई निवेश मांग में 7.8 फीसदी की मजबूत वृद्धि दिखी जो सार्वजनिक पूंजीगत व्यय की बदौलत रही।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘आयकर में राहत, रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती, खरीफ की बोआई में अच्छी प्रगति और वस्तु एवं सेवा कर में सुधार जैसे घटनाक्रम से निजी खपत के परिदृश्य को बढ़ावा मिला है, भले ही परिवारों द्वारा गैर-जरूरी खरीद को दूसरी तिमाही में तब तक के लिए टाला जा सकता है, जब तक कि जीएसटी में कटौती लागू नहीं हो जाती। इसके अलावा अमेरिकी शुल्क से प्रभावित क्षेत्रों में संभावित छंटनी का भी थोड़ा असर दिख सकता है।’
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आनंद राठी वेल्थ के मुख्य अर्थशास्त्री सुजन हाजरा ने कहा कि भारतीय निर्यात पर 50 फीसदी अमेरिकी शुल्क महत्त्वपूर्ण जोखिम बना हुआ है, फिर भी भारत निराशाजनक वैश्विक पृष्ठभूमि में सबसे आकर्षक वृहद आर्थिक गाथा के साथ खड़ा है, जिसमें सुधारों को गति मिल रही है और महंगाई मामूली बनी हुई है। उन्होंने आगे कहा, ‘शुल्क संबंधी अड़चनों को ध्यान में रखने के बाद भी पूरे साल के लिए वृद्धि औसतन 6.5 फीसदी रहने की संभावना है।’