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नरम रुपये का सरकार के वित्त पर असर

Last Updated- December 11, 2022 | 5:27 PM IST

गिरता रुपया मंगलवार को दिन के कारोबार में 80 रुपये प्रति डॉलर के निचले स्तर पर पहुंच गया। ज्यादा सब्सिडी बिल होने से केंद्र सरकार के वित्त पर असर पड़ सकता है। हालांकि ज्यादा महंगाई से सरकार का राजस्व भी बढ़ सकता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल व उर्वरक के दाम पहले से बढ़े हुए हैं। रुपये में गिरावट से आयात बिल और बढ़ेगा तथा इसकी सब्सिडी का बोझ सरकार पर पड़ेगा। सरकार सस्ती दर पर किसानों को उर्वरक की बिक्री करती है और उज्ज्वला योजना के माध्यम से रसोई गैस सब्सिडी मुहैया कराती है।
भारत सरकार के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा, ‘रुपये की कीमत घटने के साथ ही सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा क्योंकि हमारी सब्सिडी का बड़ा हिस्सा उर्वरकों व पेट्रोलियम उत्पादों पर जाता है। उर्वरक की वैश्विक कमी की वजह से इसकी कीमत पहले ही बढ़े स्तर पर बनी हुई है।’
वित्त मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि वित्त वर्ष 23 में भारत में उर्वरक सब्सिडी बढ़कर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी, जो बजट में 1.05 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था। यूक्रेन में युद्ध और वैश्विक आपूर्ति में कमी की वजह से वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है।
उर्वरक सब्सिडी में 1.10 लाख करोड़ रुपये की पहले की घोषणा के नरेंद्र मोदी सरकार ने पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) को मोदी सरकार ने सितंबर तक बढ़ाने की घोषणा की है। इससे सितंबर तक खाद्य सब्सिडी पर आवंटन वित्त वर्ष 23 में बढ़कर 2.87 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा, जबकि बजट अनुमान 2.07 लाख करोड़ रुपये का लगाया गया था।
इसके साथ ही सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 9 करोड़ लाभार्थियों को साल में 12 सिलिंडर तक पर 200 रुपये प्रति सिलिंडर सब्सिडी देने की घोषणा की है। खजाने पर इसका 6,100 करोड़ रुपये बोझ पड़ेगा।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी  कहा कि अगर कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है तो बढ़ी महंगाई से ग्राहकों को राहत देने के लिए ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कमी करने पर सरकार पर इसका दबाव आगे और बढ़ सकता है ।
उन्होंने कहा, ‘अगर कच्चे तेल के वैश्विक दाम में कमी नहीं आती है तो सरकार शुल्क में आगे और कमी कर सकती है। इसका भी राजस्व पर असर पड़ेगा।’
खुदरा महंगाई 7 प्रतिशत से ऊपर जून तक लगातार तीन महीने से बनी हुई है। यह केंद्रीय बैंक द्वारा तय 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से ऊपर लगातार छठे महीने भी बनी हुई है।
मई में पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में की गई कटौती से साल भर में खजाने पर 85,000 करोड़ रुपये बोझ पड़ने की उम्मीद है, जबकि अन्य सामान पर आयात शुल्क में कटौती करने पर 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है।
बहरहाल सीमा शुल्क और जीएसटी सहित केंद्र सरकार के ज्यादातर कर मूल्य पर आधारित है। ऐसे में रुपये में गिरावट के कारण ज्यादा महंगे आयात से आदर्श रूप से कर राजस्व बढ़ सकता है। बढ़ी महंगाई के कारण उच्च नॉमिनल जीडीपी  होने से भी राजकोषीय चूक कम होने की संभावना है, लेकिन महंगाई बढ़ने से अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है, ऐसे में राजस्व संग्रह ज्यादा होने की संभावना सीमित रह सकती है। सेन ने कहा कि सरकार का राजस्व ऊपर जाएगा तो दरअसल वह कर दरों में बढ़ोतरी के कारण होगा। वहीं कर की दर में बढ़ोतरी निश्चित रूप से एक संकुचन की नीति है।

First Published - July 20, 2022 | 1:03 AM IST

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