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जीएसटी : कंपनी जगत ने कहा अच्छा, ले​किन…

Last Updated- December 11, 2022 | 6:03 PM IST

एक जुलाई को परिचालन के पांच साल पूरे करने वाले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के संबंध में हालांकि भारतीय कंपनी जगत काफी हद तक सकारात्मक है, लेकिन ज्यादातर मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) का कहना है कि कर दरों को दुरुस्त करने और मुकदमेबाजी को कम करने के लिए और भी काफी कुछ करने की जरूरत है।
विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग के प्रमुखों का कहना है कि हालांकि जीएसटी सुधार का अच्छा हिस्सा रहा है, लेकिन कर दरों के संबंध में और भी अधिक सुव्यवस्था तथा स्पष्टता होनी चाहिए।
एक प्रमुख इंजीनियरिंग, खरीद और विनिर्माण कंपनी केईसी इंटरनेशनल के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी विमल केजरीवाल ने एक उदाहरण देते हुए कहा ‘रेलवे और मेट्रो परियोजनाओं पर लगने वाले जीएसटी की दर 12 प्रतिशत है। अलबत्ता हम सीमेंट जैसे इनपुट पर 28 प्रतिशत का भुगतान करते हैं। शेष 16 प्रतिशत कार्यशील पूंजी में फंस जाता है। इन विसंगतियों को ठीक करना होगा।’
कंपनी प्रमुख इस बात की सराहना करते हैं कि जीएसटी में कई प्रकार के शुल्कों और करों को शामिल करने से परस्परव्याप्त कई कर सुव्यवस्थित हुए हैं। हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में इसके कार्यान्वयन की समय-सीमा अलग-अलग रही है। उदाहरण के लिए पेट्रोलियम उत्पादों को अभी तक जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया है।
टाटा स्टील के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक टीवी नरेंद्रन ने कहा कि जीएसटी अप्रत्यक्ष कराधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सुधार है। नरेंद्रन ने कहा ‘इतना बड़ा सुधार अपनी चुनौतियों के बिना नहीं हो सकता। सरकार के निरंतर प्रयास, व्यापार और उद्योग की सक्रिय भागीदारी तथा सूचना प्रौद्योगिकी के मजबूत सहारे के जरिये एक राष्ट्र के रूप में हमने भारत में एक बाजार, एक कर के दृष्टिकोण को लागू करने में अच्छा प्रदर्शन किया है।’
ज्यादातर मुख्य कार्याधिकारियों का यह मानना है कि जीएसटी पिछले पांच सालों के दौरान परिपक्व हुआ है। वोल्वो आयशर मोटर्स के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी विनोद अग्रवाल ने कहा कि इसके बावजूद इसमें और सुधार की गुंजाइश है। उन्होंने कहा ‘सरकार को दर संरचना की जांच करनी चाहिए और ट्रकों जैसी गैर-लक्जरी वस्तुओं पर 28 प्रतिशत की अधिकतम जीएसटी दरें नहीं लगानी चाहिए। माल ढुलाई आवश्यक सेवाओं के अंतर्गत आती है और इस पर लक्जरी सामान जैसा कर नहीं लगाया जाना चाहिए।’
हालांकि रियल एस्टेट जैसा क्षेत्र जीएसटी के संबंध में कम उत्साहित रहा है। रियल एस्टेट में, जो अर्ध-कुशल श्रमिकों का सबसे बड़ा नियोक्ता है, यह सुधार पूरे तौर पर लागू नहीं किया गया है, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में किया गया है।
एक प्रमुख रियल एस्टेट फर्म हीरानंदानी ग्रुप के प्रबंध निदेशक निरंजन हीरानंदानी ने कहा कि अगर कोई रियल एस्टेट परियोजना देखता है, तो आप पहले चरण के दौरान एक समूह के शुल्क का भुगतान करते है और दूसरे चरण में अन्य समूह का भुगतान करते हैं और फिर आखिर में संपत्ति की बिक्री को स्टैंप ड्यूटी के भुगतान के साथ पंजीकृत करना पड़ता है। जाहिर है कि कर और शुल्क एक-दूसरे के दायरे में चले जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप एक उद्योग के रूप में रियल एस्टेट के लिए बड़ी चुनौतियां पेश आती हैं।
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि आने वाले सालों में जीएसटी से संबंधित मुकदमों में इजाफा होने वाला है, क्योंकि कंपनियां और सरकार कर दरों और डेटा समाधान जैसे मसलों पर एक-दूसरे के विपरीत हैं। सरकार अनुपालन लागू करना चाहती है और उस दिशा में वह डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर रही है तथा कंपनियों में अधिकारियों द्वारा डेटा और जीएसटी क्रेडिट से संबंधित कई सवल उठाए जा रहे हैं।
(साथ में राघवेंद्र कामत, विवेट पिंटो, शैली मोहिले, ईशिता दत्त और शर्लीन डिसूजा )

First Published - June 24, 2022 | 12:25 AM IST

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