प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
वाणिज्य विभाग और वित्त मंत्रालय विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में तैयार उत्पादों को देसी बाजार में बेचने की अनुमति देने के लिए विचार-विमर्श कर रहा है। इनका कहना है कि तैयार उत्पादों पर शुल्क लेने के बजाये कच्चे माल पर शुल्क नहीं लिया जाए। यह जानकारी इस मामले के जानकार सूत्रों ने दी।
अभी सेज की कंपनियों को इन क्षेत्रों के बाहर तैयार उत्पाद बेचे जाने पर पूर्ण सीमा शुल्क का भुगतान करते हैं जिसे घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) के रूप में जाना जाता है। वाणिज्य विभाग ने उद्योग के लंबे समय से जारी अनुरोध पर कच्चे माल पर शुल्क की गणना करने का प्रस्ताव दिया है।
यदि यह बदलाव लागू हो जाता है तो इससे मूल्यवर्धन और एसईजेड में विनिर्माण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। इसका कारण यह है कि इकाइयों पर आयात कर कम होने की उम्मीद है। सेज में मौजूद विनिर्माताओं के पास अतिरिक्त क्षमता है और वे उत्पादन को बढ़ावा देने में सक्षम होंगे।
देश में सेज क्षेत्रों में अलग-अलग आर्थिक विनियमन हैं और इन्हें विदेशी क्षेत्र माना जाता है। इसमें प्रमुख ध्येय निर्यात को बढ़ावा देने पर केंद्रित किया जाता है। इन क्षेत्रों में संचालन कर रही कंपनियां को सरकार से कर छूट मिलती है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में शुल्क मुक्त बिक्री पर प्रतिबंध लागू होते हैं।
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इस मामले की जानकारी देने वाले व्यक्ति ने बताया, ‘हमने राजस्व विभाग से मसौदे (ड्यूटी फॉरगान) को साझा किया है। अभी सेज संशोधन विधेयक को पारित (संसद से) और लागू होने में पर्याप्त समय लगेगा। हम सेज अधिनियम में कुछ नीतिगत बदलाव लागू करने की कोशिश कर रहे हैं और इन्हें सेज अधिनियम में संशोधन किए बिना लाया जा सकता है।’
सूत्र ने बताया, ‘इस मामले में नीति परिवर्तन को क्रियान्वित करने के लिए कार्यकारी आदेश ही पर्याप्त हो सकता है।’ उन्होंने यह भी कहा कि नए सेज संशोधन कानून के अभाव में वाणिज्य मंत्रालय इस आदेश को यथाशीघ्र क्रियान्वित करने पर जोर दे रहा है।
वाणिज्य विभाग ने सेज (संशोधन) विधेयक को डेढ़ साल पहले तैयार किया था। दरअसल, सरकार का मानना था कि उभरते वैश्विक व्यापार, विश्व स्तरीय आधारभूत ढांचे वाले औद्योगिक पार्क को मदद करने और विनिर्माण में निवेश को आकर्षित करने की कवायद के अनुरूप नए मसौदा विकसित करने की जरूरत थी। यह विचार घरेलू बाजार को शेष भारत से आसानी से एकीकृत करने में सक्षम बनाने के लिए भी था ताकि विशेष आर्थिक क्षेत्रों की कंपनियां प्रतिबंधित मार्केट तक पहुंच को खो नहीं दें। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव और वित्त मंत्रालय के साथ आम सहमति नहीं होने से कार्यान्वयन में देरी हुई है।