क्रिसिल के मुताबिक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि की दर वित्त वर्ष 2024 में गिरकर छह फीसदी हो सकती है जबकि राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (NSO) ने वित्त वर्ष 2023 के लिए सात फीसदी का अनुमान जताया था। क्रिसिल ने भारतीय रिजर्व बैंक के जीडीपी की वृद्धि की दर 6.4 फीसदी से कम अनुमान जताया है। जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर का आकलन मुद्रास्फीति को हटाकर किया जाता है।
स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (Standard and Poor’s) की इकाई क्रिसिल ने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर कम होने के तीन कारण हैं। पहला, विश्व की अर्थव्यवस्था का मंद पड़ना। इसका प्रमुख कारण मुद्रास्फीति बढ़ना और प्रमुख केंद्रीय बैंकों की ब्याज दर बढ़ना है। इससे भारत की वृद्धि के लिए जोखिम पैदा होगा। ऐसे में अगले वित्त वर्ष के दौरान घरेलू मांग अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाएगी।
दूसरा ब्याज दर बढ़ाने का पूरा प्रभाव अगले वित्त वर्ष तक पड़ेगा। मौद्रिक कदमों के कारण तीन-चार तिमाहियों की वृद्धि पर असर पड़ता है। तीसरा, जटिल भूराजनैतिक स्थिति का असर भारत पर पड़ता है। क्रिसिल के मुताबिक कच्चे तेल और जिसों के दामों में उतार-चढ़ाव होने से भारत भी प्रभावित होगा।
लिहाजा अर्थव्यवस्था नरमी का सामना कर सकती है। हालांकि घरेलू मुद्रास्फीति के मोर्चे पर कुछ आशावाद है। क्रिसिल के मुताबिक ऊंचे आधार प्रभाव की वजह से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित उपभोक्ता मुद्रास्फीति अगले वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 24) में औसतन 5 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि इस वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 23) में 6.8 फीसदी थी। आरबीआई ने जोखिमों को संतुलित ढंग से आकलन कर सीपीआई मुद्रास्फीति 5.3 फीसदी होने का अनुमान जताया है।
रबी की अच्छी फसल होने से खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट होने में मदद मिलेगी। हालांकि अच्छी फसल पर भी गर्मी बढ़ने का जोखिम मंडराने लगा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुमान के मुताबिक अगले कुछ महीनों में अलनीनो की चेतावनी जारी की है। क्रिसिल के मुताबिक इससे किसानों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।