अमेरिका के कैलिफोर्निया में वेब आधारित टैक्सी सेवा देने वाली कंपनी उबर और उस जैसी दूसरी कंपनियों ने उस वक्त राहत की सांस ली जब वहां की एक अदालत ने अस्थायी एवं स्वतंत्र रूप से काम करने वाले लोगों (गिग वर्कर) को ‘कर्मचारी’ के तौर पर मान्यता देने वाले कानून के प्रावधानों को स्वीकार नहीं किया। इस कानून में गिग वर्कर को अधिक सामजिक सुरक्षा लाभ दिए जाने का भी प्रावधान था। लेकिन भारत में ठीक इसका उलटा हुआ। हाल में ही संसद में सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 पारित हुई, जिसमें अस्थायी तौर पर काम करने वाले लोग पहली बार सामाजिक सुरक्षा ढांचे के तहत लाए गए हैं। इस संहिता के अनुसार अस्थायी एवं विशेष अनुबंध के तहत काम करने वाले लोगों को उस श्रेणी के तौर पर परिभाषित किया गया है, जो एक विशेष कार्य अनुबंध के तहत काम करती है और परंपरागत नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के दायरे से बाहर आय अर्जित करते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे कामगार अब असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले दूसरे लोगों से अलग नहीं होंगे। इस संहिता के पारित होने से गिग कंपनियों (ओला, उबर, स्विगी सहित वेब आधारित सेवाएं देने वाली सभी कंपनियों) को काफी राहत मिली है। ये कंपनियां कैब चालक या खान-पान पहुंचाने वाले कर्मियों को ‘स्वतंत्र कामगार’ मानती हैं, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से ग्राहकों के साथ सीधे काम करते हैं। उबर के मुख्य कार्याधिकारी दारा खुसरोशाही ने एक समाचारपत्र में अपने एक लेख में भारत के कदम की सराहना की और कहा कि दुनिया के अन्य देश इससे सीख ले सकते हैं।
वैश्विक स्तर पर अस्थायी एवं स्वतंत्र कामगारों के कार्य की प्रकृति और उनके लिए सामाजिक सुरक्षा ढांचे पर चर्चा होती रही है। भारत में भी ओला, उबर, स्विगी और जोमैटो जैसी वेब आधारित सेवाएं देने वाली कंपनियों की तादाद पिछले चार-पांच साल में खासी बढ़ी है। लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद ऐसी कंपनियों की कमाई एवं इनके साथ काम करने वाले कर्मचारियों की आमदनी में कमी आई है। ऐसे में कैब चालक या लोगों के घर तक खान-पान पहुंचाने वाले कामगारों समेत सभी की कमाई कम हुई है, जिससे उनके लिए जीवन-यापन करना मुहाल हो रहा है। दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में किसी न किसी काम में लगे सभी लोगों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिया जाता है, लेकिन भारत में ऐसी बात नहीं है। यहां सामजिक सुरक्षा कुछ सीमित इकाइयों के कर्मचारियों तक ही सीमित है। गिग उद्योग अपने साथ काम करने वाले लोगों को परंपरागत कर्मचारी नहीं मानता है, लेकिन इसमें मौजूद कई कंपनियां अपने कामगारों को दुर्घटना, स्वास्थ्य या जीवन बीमा लाभ देती हैं। इस वर्ष लॉकडाउन के दौरान ओला, उबर और स्विगी जैसी कंपनियों ने अपने कामगारों को वित्तीय मदद पहुंचाई थी।
हाल में आई सामाजिक सुरक्षा संहिता के अनुसार सभी गिग कंपनियों को अपने राजस्व का 1 से 2 प्रतिशत हिस्सा अस्थायी कर्मचारियों के लिए तैयार एक साझा कोष में देना होगा। संहिता के अनुसार सरकार इस कोष का प्रबंधन करेगी। लेकिन इस अंशदान की सीमा अस्थायी कर्मचारियों के प्रति कंपनियों के वित्तीय उत्तरदायित्व के 5 प्रतिशत तक सीमित होगी।
गिग कंपनियों की चिंताएं दूर करने के लिए भारत के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने 30 अक्टूबर को इस खंड की शीर्ष कंपनियों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में इन कंपनियों को यह आश्वासन दिया गया था कि कमाई की गणना अस्थायी कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली बिक्री पर आधारित होगा और पूरे समूह की कमाई पर विचार नहीं किया जाएगा।
एक प्रश्न यह उठता है कि नए श्रम कानून से गिग कंपनियों पर वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा या कर्मचारियों की खर्च करने योग्य आय कम हो जाएगी? बिगबास्केट में उपाध्यक्ष (मानव संसाधन) तनुजा तिवारी कहती हैं, ‘नई संहिता आने से अस्थायी कर्मचारियों की कमाई का एक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा लाभ के मद में चला जाएगा। इससे उनकी शुद्ध आय कम हो जाएगी। शुरू में ऐसे लोग इस प्रावधान का विरोध कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि जब कामगार दीर्घ अवधि में मिलने वाले इन सामाजिक सुरक्षा लाभों को समझेंगे तो उनका विरोध खत्म हो जाएगा। सरकार को लगता है कि अस्थायी कर्मचारी भी कुछ खास योजनाओं-कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा योजना आदि-के लिए कुछ अंशदान करेंगे। केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि कोष की स्थापना होने के बाद कंपनियों को सामाजिक सुरक्षा के मद में अलग से कोई प्रावधान नहीं करना होगा और अगर वे चाहें तो अपनी मौजूदा योजनाएं बंद कर सकती हैं।
